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यह समाचार तुम्हारे पिताको मिला तो उन्होंने इसका कारण शपथ पूर्वक पूछा, तो मैंने अपना दोहद बतलाया । बाद में तुम्हारे पिताने मेरा दोहद पूरा किया । दोहद पूरा हो जानेके बाद मैंने सोचा - यह बालक गर्भावस्थामें ही पिताका मांस खाया, उत्पन्न होनेपर न जाने क्या करेगा ? इस लिये जिस किसी प्रकार इस गर्भको गिरा देना ही श्रेयस्कर है । पर अनेक प्रकारकी ओषधीसे भी गर्भ न गिरा । फिर नौ महीनेके बाद उस गर्भसे तुम पैदा हुए, मैंने तुम्हें अनिष्ट समझ कर उकरडी पर फिकवा दिया । यह बात तुम्हारे पिताको मालुम हुई, वह तुम्हें खोज कर ले आये और मुझे उन्होंने इस कार्यके लिये बडी भर्त्सना की । तेरी उङ्गलीको उकरडी पर मुर्गेने काट खाया जिससे वह सूज गयी उसमें पीप भर आया, तुझे असह्य वेदना होने लगी, तँ चिल्लाने लगा, उस समय तेरे पिता तुम्हारे पास बैठे रहते थे, दिन रात तुम्हारी परिचर्या करते व्रणकी वेदनासे रो पडते थे, उस समय तुम्हारी अङ्गुलीको पीप चूसकर थूक देते थे, उससे तुझे शान्ति मिलती थी हो गया। बेटा ! तूं ही सोच, एसे परम उपकारी पिताके साथ तेरा यह वर्तान उचित है ? अपनी मां के मुखसे यह सुन कूणिक बहुत दुखी हुआ । परम उपकारी पिताका बन्धन तोहूँ इस भावनासे उसी समय हाथमें कुल्हाडी लेकर जिस पिंजरे में महाराजा श्रेणिक कैद थे, उस पिंजरेको तोडनेके लिये चल पडा । लेकिन राजा श्रेणिकने कूणिको हाथमें कुल्हाडी लेकर आते हुए देख मनमें सोचा-न जाने यह कूणिक मुझे किस कुमौत से मारेगा ? इस भयसे उन्होंने अपनी अंगूठीमें जडा हुआ तालपुट विषसे अपना अन्त कर लिया । पिताकी मृत्युसे कूणिक अत्यधिक दुखी हुआ, उसे राजगृहकी प्रत्येक वस्तु पिताकी स्मृति दिलाकर दुखित करने लगी, पिताके प्रति किये हुए अन्याय उसकी आत्माको कष्ट देने लगे । वह राजगृहमें नहीं रह सका, राजगृह छोडकर चम्पा नगरीको उसने राजधानी बनायी । वहाँ अपने भाई बन्धुओंके साथ रहने लगा और राज्यको ग्यारह भागो में बाँटकर
और तँ धीरे २ चंगा
શ્રી નિરયાવલિકા સૂત્ર
रहते
अपने
थे, तुम जब
मुँह मे
डाल