________________
इनमें निरयावलिका उपाङ्गमें काल आदि दस कुमारोंका वर्णन काल आदि दस अध्ययनों में किया गया है। जो संक्षिप्तमें इस प्रकार है
महाराज श्रेणिककी अनेक रानियाँ थीं। उनमें नन्दा,
चेल्लना, काली,
सुकाली, महाकाली, कृष्णा, सुकृष्णा, महाकृष्णा, वीरकृष्णा, रामकृष्णा, पितृसेन कृष्णा, और महासेनकृष्णा, ये उनकी मुख्य रानियाँ थीं। इनमें नन्द के पुत्र अभयकुमार थे, चेलनाके पुत्र कूणिक, वैहल्य, और वैहायस थे । काली आदि दसों रानियों के पुत्र क्रमशः काल, सुकाल, महाकाल, कृष्ण, सुकृष्ण, महाकृष्ण, वीरकृष्ण, रामकृष्ण, पितृसेनकृष्ण और महासेनकृष्ण थे । इन कुमारोंमें अभयकुमार प्रब्रजित हो गये । चेल्लनाके पुत्र कूणिकने काल आदि दस कुमारोंको अपनी ओर मिलाकर महाराज श्रेणिकको कैद कर लिया और उन्हें अनेक प्रकारको तकलीफें देने लगा । एक दिन कूणिक अपनी माताके चरण वन्दनके लिये आया । माताने उसे देखकर अपना मुंह फिरा लिया। यह देख कूणिक हाथ जोड इस प्रकार बोला - हे माता ! मैं अपने पराक्रमसे राज्यका सम्राट् बना, यह देखकर भी तुझे आनन्द नहीं होता, तुम्हारे मुखपर खुशीका कोई चिह्न नहीं दिखायी देता, तुम उदासीन हो, क्या यह तुम्हारे लिये उचित है ? भला तुम्ही सोचो, कौन ऐसी मा होगी जो अपने पुत्रकी उन्नति पर खुश न होगी । यह सुनकर महारानी चेल्लनाने कहा- बेटा ! तुम्हारी इस उन्नतिसे मुझे किस प्रकार आनन्द हो ? क्यों कि तुमने अपने पिता महाराज श्रेणिकको कैद कर लिया है, जो तुम्हारे देव गुरुके समान हैं, जिन्होंने तुम्हारे उपर अनेक उपकार किये हैं। उन्हींके साथ तुम्हारा यह व्यवहार समुचित है ! जरा तुम्ही सोचो !
कूणिकने कहा- -मा ! जो श्रेणिक राजा मुझे मार डालना चाहते थे, वे मेरे परम उपकारी हैं, यह कैसे ! स्पष्ट बताओ ।
रानीने कहा- बेटा ! जब तुम मेरे गर्भमें आये, उस समय मुझे दोहद उत्पन्न हुआ कि मैं राजा श्रेणिकके उदरबलिका मांस तल भूनकर मदिराके साथ खाऊँ । इसके लिये मैं उदास रहने लगी और दिनानुदिन क्षीण होने लगी । जब
શ્રી નિરયાવલિકા સૂત્ર