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________________ ७८ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे क्षेत्रे वृद्धिर्भवति इति ॥ प्रकृतमेव वस्तु पश्चानुपूर्ध्या दर्शयितुं प्रश्नयत्राह-'जयाणं' इत्यादि, 'जयाणं भंते ! सूरिए' यदा-यस्मिन् काले खलु भदन्त ! सूर्यः 'सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ' सर्व बाह्यमण्डलमुपसंक्रम्य-सम्प्राप्य चारं गति चरति-करोति 'तयाणं के महालए दिवसे भवइ' तदा-तस्मिन् काले खलु किं महालय:-कियान-कियत्प्रमाणक इत्यर्थः दिवसो भवति तथा-'के महालिया राई भवई' किं महालया-कियती कियत्प्रमाणा इत्यर्थः रात्री-रजनी भवतीति प्रश्नः भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'तयाणं उत्तमकट्ठपत्ता उक्कोसिया' तदा तस्मिन्काले उत्तमकाष्ठाप्राप्ता-प्रकृष्टावस्थां गता अतएवोस्कर्षिका-सर्वत उत्कृष्टा, यतो न काचित्तदन्या प्रकर्षवती रात्रि भवति एतादृशी 'अद्वारस मुहुता राई भवई' अष्टादशमुहूर्तप्रमाणा एतादृशी तदा रात्री रजनी भवति । रात्रि दिवसस्य त्रिंशन्मुहूर्त्तप्रमाणत्वात त्रिंशन्मुहूर्त्तलक्षणसंख्यापूरणायाह-'जहण्णए' इत्यादि, 'जहण्णए दुवालसमुहत्ते दिवसे भवइति' जघन्यकोऽल्पीयान् द्वादशमुहूर्तप्रमाणकस्तत्काले-दक्षिणायनकाले दिवसो भवति त्रिंशन्मुहूर्तखा दहोरात्रस्येति । अयं चाहोरात्रो दक्षिणायनस्य चरमो अब सूत्रकार इस प्रकृत विषय को ही पश्चानुपूर्वी द्वारा दिखाते हैं-इसमे गौतमस्वामीने प्रभु से ऐसा पूछा है-'जयाणं भंते ! सूरिए सव्ववाहिरं मंडलं उवसंकमिता चारं चरइ' हे भदन्त ! जिस समय सूर्य सर्वबाहय मंडल को प्राप्त कर गति करता है-'तयाणं के महालए दिवसे भवई' तब उस समय कितना बड़ा दिन होता है और 'के महालिया राई भवई' कितनी बडी रात होती है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! तयाणं उतमकहपता उक्कोसिया अट्ठारसमुहता राई भवई' हे गौतम! उस समय सब से अधिक प्रमाणवाली जिस से अधिक प्रमाणवाली और दूसरी रात्रि नहीं होती ऐसी रात्रि १८ मुहूर्त की होती है रात और दिवस का-दोनों का काल प्रमाण ३० मुहूर्त का होता है। 'जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ' सो दिनका प्रमाण जघन्य होता हैअर्थात् १२ मुहूर्त का तब दक्षिणायन काल में दिन होता है । यह दिन रात આ પ્રકૃત વિષયને જ પશ્ચાનુપૂવી દ્વારા સ્પષ્ટ કરતાં કહે છે-આમાં ગૌતમસ્વામીએ प्रभुने मारीते प्रश्न ये छ-'जया णं भंते ! सूरिए सव्वबाहिर मंडलं उबसंकमित्ता चार चरई महत२ समये सूर्य सामने प्रत घरी गति 3रे छे 'तयाणं के महालए दिवसे भवई' त्यारे ते मते | ainस डाय छ मन 'के महालिया राई भवई' उसी inी २ डाय छ ? सेनाममा प्रभु हे छ -'गोयमा ! तयाणं उतमकदपता उक्कोसिया अदुरसमुहु ता राई भवइ' गौतम ! ते १मते सौथी पधारे प्रभाए। વાળી જેનાથી વધારે પ્રમાણવાળી બીજી કોઈ રાત હોતી નથી એવી રાત્રિ ૧૮ મુહૂર્તની हाय छे. रात मने सिनु-मन्ननु सपा ३० भुडूत रेसु डाय छे. 'जहण्णए दुवालसमुह ते दिवसे भवई' सिनु प्रभा पन्य थाय छे. मेट १२ मुहूतना જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006356
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages567
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size35 MB
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