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________________ प्रकाशिका टीका - सप्तमवक्षस्कारः सू० ६ दिनरात्रिवृद्धिहानिनिरूपणम् ६९ www म्य-संप्राप्य 'चारं चरइ' चारम् - गतिं चरति करोति 'तयाणं के महालय दिवसे के महालिया राई' तदा तस्मिन्काले को महालयः को महान - अतिशयेनाधिक आलय: व्याप्यक्षेत्र लक्षण आयो यस्यासौ किं महालयः कियात् इत्यर्थः दिवसो भवति, तथा-किं महालय-कियत्प्रमाणा रात्रिः - निशा च भवतीति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! 'तया णं उत्तम पत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ' तदा तस्मिन् काले खलु उत्तमकाष्ठा प्राप्तः उत्तम काष्ठाम् अवस्थां प्राप्तः - आदित्य संवत्सरसम्बन्धि षट् पष्ट्यधिक त्रिशतदिवसमध्ये यतो न कश्चिदपरोऽधिक इत्यर्थः, अत एवोत्कर्षक उत्कृष्ट इत्यर्थः अष्टादश मुहूर्तो दण्डः तत्प्रमाणको दिवसो भवति, सर्वतोऽधिकोऽष्टादश मुहूर्त्त प्रमाणं दिनं भवति इत्यर्थः : । तथा - ' जहणिया दुवालसमुहुता राई भवई' जघन्या - सर्वतो न्यूना द्वादशमुहूर्त्त प्रमाण रात्रि भवति, यत्र खलु मण्डले यावत्प्रमाणो दिवस स्तत्र मण्डले दिवसापेक्षया शेषा अहोरात्रप्रमाणा रात्रि रिति जघन्या द्वादशमुहूर्त्ता रात्रि रिति, सर्वस्मिन् क्षेत्रे काले वा त्रिंशप्राप्त करके 'चारं चरइ' गति करता है 'तयाणं के महालए दिवसे' उस समय दिवस कितना बडा होता है ? और 'के महालिया राई' कितनी बडी रात्रि होती है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा ! उत्तमकट्टपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुते दिवसे भव' हे गौतम ! उस काल में उत्तम अवस्था को प्राप्त हुआ- आदित्य संवत्सर सम्बन्धी ३६३ दिवसों के बीच में जिससे कोई और दिन बडा न होता ऐसा सबसे बडा दिन १८ मुहूर्त्त का होता है तथा - ' जहण्णिया दुवालासमुहुत्ता राई भवई' सर्व से जघन्य १२ मुहूर्त्त की रात्रि होती है जिस मण्डल में जितने प्रमाण का दिन होता है उस मंडल में दिवस की अपेक्षा शेष अहोरात्र के प्रमाण से कम प्रमाणवाली रात्रि होती है इस कारण जघन्य प्रमाणवाली कही गई है ? समस्त क्षेत्र में अथवा काल में तीस मुहूर्त्त का रात दिन का प्रमाण नियत कहा गया है । तो जब दिवस १८ मुहूर्त्त का होता है तब रात्रि १२ मुहूर्त्त की होने 'चार' चरइ' गति ४२ छे. 'तयाणं के महालय दिवसे' ते वसते हिवस डेटला सांभा होय छे ? भने 'के महालिया राई' रात डेंटली सांगी होय छे ? भवामां अलु आहे छे'गोयमा ! उत्तमकदृपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ' हे गौतम! ते अजभां ઉત્તમ અવસ્થા પ્રાપ્ત થયેલ આદિત્ય સંવત્સર સંબંધી ૩૬૩ દિવસેાની વચ્ચે જેમા ખીને કેઈ દિવસ લાંખે। થતે નથી એવા લાંખે। દિન ૧૮ મુહૂ`ના થાય છે. તેમજ 'जहणिया दुवालसमुत्ता राई भवई' सर्वथी धन्य १२ मुहूर्तनी रात होय छे. भे મડળમાં જેટલા પ્રમાણના દિવસ થાય છે, તે મડળમાં દિવસની અપેક્ષાએ શેષ અહે રાત્રના પ્રમાણથી અલ્પપ્રમાણવાળી રાત હેય છે. આથી રાત જઘન્ય પ્રમાણવાળી કહેવામાં આવી છે. સમસ્ત ક્ષેત્રમાં અથવા કાળમાં તીસ મુહૂનુ` રાત-દિવસનું પ્રમાણુ નિયત કરવામાં આવેલુ છે. તા જ્યારે દિવસ ૧૮ મુહૂત્તના થાય છે ત્યારે રાત્રિ ૧૨ મુહૂત જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006356
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages567
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size35 MB
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