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________________ प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः सू० ३१ चन्द्रस्याग्रमहिष्याः नामादिनिरूपणम् ५०९ स्स णवरं सूरवडंसए विमाणे सूरंसि सीहासणंसि' इति वक्तव्यम् (सूर्यस्य ज्योतिष्कराजस्य कतिअग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! चतस्रोऽग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ता स्तद्यथा सूर्यप्रभा, आत्मामा, अचिमाली, प्रभङ्करा, एवमवशेषं यथा चन्द्रस्य नवरं सूर्यावतंसके विमाने सूर्ये सिंहासने इतिच्छाया ।। अथ ग्रहादीनामग्रमहिषी वक्तव्यतामाह-'विजया' इत्यादि, 'विजया' विजया 'वेजयंति' वैजयन्ती 'जयंती जयन्ती 'अपराजिया' अपराजिता 'सव्वेसिं गहाईणं एयाओ अग्गमहिसीओ' सर्वेषामपि पूर्वोक्तविजया वैजयन्तीत्यादि चतुभिर्नामभिरेव अग्रमहिण्यो वक्तव्या:-सर्वत्र एतन्नाम्न्य एव अग्रमहिष्यो भवन्तीति ज्ञातव्याः। उक्तमेवार्थ विशिष्य दर्शयति-'छावत्तरस्स' इत्यादि, 'छावत्तरस्सवि गहसयस्स एयाओ अग्गमहिसीओ वत्तवाओ' षट् सप्तत्यधिकस्यापि ग्रहशतस्य जम्बूद्वीपवर्ति चन्द्रद्वयपरिवारभूतानां ग्रहाणां द्विगुणिताया सूर्य की चार अग्रमहिषियां कही गई हैं 'तं जहा' उनके नाम इस प्रकार से हैं -'सरप्पभा, आयवाभा, अच्चिमाली, पभंकरा' सूर्यप्रभा १ आत्माभा, २ अचिमाली ३, और प्रभंकरा 'एवं अवसेसं जहा चंदस्स णवरं सूरवडे सए विमाणे सूरंसि सीहासणंसि' इस सम्बन्ध में बाकी का और सब कथन जैसे चंद्र प्रकरण में कहा गया है वैसा ही जानना चाहिये इस प्रकरण की अपेक्षा केवल यही अन्तर है कि यहां पर सूर्यावतंसक विमान है उसमें जो सिंहासन है उसका नाम सूर्य सिंहासन हैं ग्रहादिकों की अग्रमहिषियों का कथन इस प्रकार से है 'विजया, वेजयंती, जयंती, अपराजिया सव्वेसि गहाईणं एयाओ अग्गमहिसीओ' कहा गया है समस्त ग्रहादिकों की विजया, वैजयन्ती, जयन्ती और अपराजिता' इन नामों की चार अग्रमहिषियां हैं नक्षत्र और तारका आदिको की भी इसी नाम की चार २ अग्रहिषियां हैं ! इसी बात को सूत्रकार आगे के सूत्रों द्वारा स्पष्ट करते हुए कहते हैं-'छावत्तरस्स वि गहसयस्स एया अग्गचत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ' गौतम ! सूर्य ना यार अप्रभाषियोनामा भावी छ. 'तं जहा' तमना नाम ॥ प्रमाणे छे-'सूरप्पमा, आयवाभा, अच्चिमाली पभेकरा' सूर्यप्रभा (१) मात्भात। (२) मायभासी (3) मने प्रम२१. “एवं अवसेसं जहा चंदस्स णवरं सूरवडेंसए विमाणे सूरंसि सीहासणंसि' मा सम्पन्धमा मीनु मधु थन यन्द्र પ્રકરણમાં કહેવામાં આવ્યું છે તે પ્રમાણે જ જાણવું. આ પ્રકરણમાં તે પ્રકરણની અપેક્ષા કેવળ એટલે જ તફાવત છે કે અહીં સૂર્યાવર્તસક વિમાન છે તેમાં જે સિંહાસન છે तेनु नाम सूय सिंहासन छ. अहानी अभाषियानु थन मा प्रमाणे-विजया, वेजयंति, जयंति, अपराजिया, सव्वेसिं गहाईणं एयाओ अग्गमहिसीओ' पाम सावी छ. સમસ્ત પ્રહાદિકની વિજ્ય વૈજ્યન્તિ, જયન્તી અને અપરાજિતા એ નામની ચાર પટ્ટરાણીઓ છે. આ હકીકતને સૂત્રકાર પછીના સૂત્ર દ્વારા સ્પષ્ટ કરતાં થકાં કહે છે'छावत्तरस्स वि गहसयस्स एया अग्गमहिसीओ वत्तव्वाओ' १७६ अहानी- दीपपत्ता જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006356
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages567
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size35 MB
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