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________________ ४९८ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे दिति प्रश्नः, भगवानाह-गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'चंदेहितो सूरा सव्व. सिग्धगई' चन्द्रेभ्य श्चन्द्रापेक्षया सूर्याः सर्वशीघ्रगतयो भवन्ति; 'सूर्येभ्यः-सूर्यापेक्षया ग्रहा:भौमादयः शीघ्रगतयः 'गहे हिंतो णक्खत्ता' सिग्धगई' ग्रहेभ्यो ग्रहापेक्षया नक्षत्राणि-अभि जिदादीनि शीघ्रगतीनि भवन्ति, तथा-'णवखत्तेहितो तारारूवा सिग्धगई' नक्षत्रेभ्योऽभिजिदादिनक्षत्रापेक्षया तारारूपाणि शीघ्रगतीनि, मुहर्तगतौ विचार्यमाणायाम् परेषां परेषा गतिप्रकर्षस्थागमप्रसिद्धत्वात् अत एव 'सव्वप्पगई चंदा' सर्वाल्पगतयश्चन्द्राः सर्वेभ्यः सूर्यादिभ्योऽल्पा-मन्दा गतिर्गमनं येषां ते तथा 'सव्वसिग्घगई तारारूवत्ति' सर्वेभ्यः-सर्वापेक्षया शीघ्रगतीनि तारारूपाणि इति दशमं द्वारम् ॥१०॥ सम्प्रति एकादशद्वारमाह-एएसिणं' इत्यादि, 'एएसिणं भंते !' एतेषां खलु भदन्त ! 'चंदिमस रियगहणक्खत्तताराख्वाणं' चन्द्रसूर्य ग्रहनक्षत्रतारारूपाणां मध्ये 'कयरे सव्वमहिगौतम ! चन्द्रमाओं की अपेक्षा सूर्यों की सर्व शीध्रगति है 'सूरेहितो गहा सिग्धगई सूर्यों की अपेक्षा ग्रहों की शीघ्रगति हैं 'गहेहितो णक्खत्ता सिग्धगई' ग्रहों की अपेक्षा नक्षत्रो की शीध्रगति है, तथा 'णक्ख तेहिं तो तरारूपा सिग्ध गई' अभिजितू आदि नक्षत्रों की अपेक्षा तारारूपों की शीध्रगति है क्यों कि मुहर्तगति की विचारणा में आगे २ के ज्योतिष्कों का गति प्रकर्ष आगम प्रसिद्ध है इसलिये 'सव्वप्पगई चंदा' सर्व से अल्प गति चन्द्रमाओं की है और 'सव्वसिग्धगई तारास्वत्ति' सर्व की अपेक्षा शीध्र गतिवाले तारारूप है। दशम द्वार समाप्त ॥ एकादश द्वार वक्तव्यता 'एएसि गं भंते ! चंदिमसूरियगहणक्खत्ततारारूवाणं' हे भदन्त ! इन चन्द्र, सूर्य ग्रह, नक्षत्र और तारारूपों में से 'कयरे सव्वमहिडिया कयरे सव्वप्र सुप्रसिद्ध है. माना उत्तरमा प्रभु है छ-'गोयमा ! चंदे हितो सूरा सव्वसिग्घगई' है गौतम ! यन्द्रमामानी अपेक्षा सूर्यानी सर्वशति छ 'सूरे हितो गहा सिग्घगई' सूर्यानी अपेक्षा अडानी प्रगति छे. 'गहे हितो णक्खत्ता सिग्घगई' अहानी अपेक्षा नक्षत्रानी शीति छ. तथा ‘णक्खत्तेहितो तारारूवा सिग्घगई' मHिAL PAL नक्षत्रानी અપેક્ષા તારારૂપની શીઘગતિ છે કારણ કે મુહૂર્તગતિની વિચારણામાં આગળ આગળ ज्योति गति : मा0 प्रसिद्ध छ रेया 'सच्चप्पगई चंदा' सपथा भगत यन्द्रमामानी छ भने 'सबसिग्घगई तारारूवत्ति' सबनी अपेक्षा शीप्रति ॥३५ छे. દશમદ્વાર સમાપ્ત એકાદશદ્વાર વક્તવ્યતા ___ 'एएसिणं भंते ! चंदिम सूरियगहणक्खत्ततारारूवाणं' हे लहन्त ! 20 यन्द्र, सूर्य, अ नक्षत्र भने २३पामाथी 'कयरे सव्वमहिढिया कयरे सवप्पड्ढिया' सब જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્રા
SR No.006356
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages567
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size35 MB
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