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________________ प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः सू०२९ चन्द्रसूर्याणां विमानवाहकदेवसंख्यानि० ४९१ उत्कूदनं धावनं-शीघ्रमृजुगमनं धोरणं गतिचातुरी त्रिपदी-भूमौ पदत्रयन्यासः जयिनीवगमनान्तर जयवतीव यद्वा जविनीवेगवती शिक्षिता-अभ्यस्ता गतियैस्ते तथा तेषाम्, 'ललंतलामगललायवरभूसणाणं' ललन्तलामगललातवरभूषणानाम्, तत्र-ललन्ति-दोलायमानानि लामानि प्राकृतत्वात् रम्याणि गललातानि कण्ठेन्यस्तानि वरभूषणानि येषां ते तथा तेषाम्, 'संनयपासाणं' सनतपार्थानाम् 'संगयपासाणं' सङ्गतपार्थानाम्, 'सुजायपासाणं' सुजातपार्थानाम्, 'पीवर वट्टिय सुसंठिय कडीणं' पीवरवर्तितसुसंस्थितकटीनाम्, “ओलंब पलंबलक्खणप्पमाण जुत्त रमणिज्जवालपुच्छाणं' अवलम्ब प्रलम्बलक्षणप्रमाणयुक्त वाल. पुच्छानाम्, "तणु सुहुम सुजायणिद्ध लोमच्छविहराणं' तनुसूक्ष्य सुजात स्निग्ध लोमच्छविधोरण तिवइ जइण सिक्खियगईणं' ये सब गर्त आदि के लांघने में, वलान कूदने में, धावन-दौडने में, धोरण-गति की चतुराई में, त्रिपदी में-भूमि पर तीन पैरों के रखने में जो इनकी चाल है वह जयिनी है-गमनान्तर को जीतने वाली है अथवा-वेगवती है, इससे ऐसा ज्ञात होता है कि इस प्रकार की चाल इन्होंने पहिले से ही सीख रखी है 'ललंत लामगललायवर भूसणाणं' दोलायमान एवं सुरम्य आभूषण इन्होंने अपने २ गलों में धारण कर रखे है 'संनयपासाणं' दोनों पार्श्वभाग इनके नीचे की ओर प्रमाण रूप में नत है 'संगतपासाणं' इसी कारण वे संगत और 'सुजायपासाणं' सुजात-जन्मदोष से रहित है 'पीवरवटिय सुसंठियकडीणं' इनके कटि भाग पीवर-पुष्ट और गोल हैं तथा सुन्दर आकारवाले है 'ओलंब पलंब लक्खणप्पमाणजुत्तरमणिज्जवालपुच्छाणं' इनके बाल प्रधान पुच्छों के अर्थात् चामरों के बाल अवलम्ब अपने २ स्थानों पर खुब अच्छी तरह से जमे हुए हैं बडे २ हैं, लक्षण युक्त हैं और प्रमाणोपेत हैं 'तणु. तिवइजइण सिक्खियगइण' से मां गति दिन inwi, दान-पामां, पावनદેડવામાં ધોરણ-ગતિની ચતુરાઈમાં, ત્રિપદીમાં-ભૂમિ પર ત્રણ પગ રાખવામાં જે એમની ચાલ છે તે જયિની છે-ગમનાક્તરને જિતવાવાળી છે, આનાથી એવું જ્ઞાન થાય છે કે मा ४२नी यास तमामे 24203थी मी साधी छे. 'ललंतलामगललायवरभूसणाणं' होतायमान भने सुरभ्य मासूपए सेमणे पातपाताना मामा धारय । राभ्यां छ. 'संनयपासाणं' ५२ पाश्वमा समनी नायनी मानुषे प्रमाणस२ नभेदां छ. 'संगतपासाणं' 24॥ २ ॥ तेथेसात तमा 'सुजायपासाणं' सुनत-ममोथी २हित है. 'पावरवट्टिय सुसंठियकडीणं' मेमनी टिमा पी१२-Yष्ट मन छ तथा सुन्२ मारवाणी छे. 'ओलंब पलंबलक्खणप्पमाण जुत्त रमणिज्जवालपुच्छाणे' यमनी વાળ પ્રધાન પૂંછડીઓના અર્થાત્ ચામરના વાળ અવલમ્બ પિતા પોતાના સ્થાને ઘણી सारी ते असा छ, मोटा मोटा छ, सक्षायुत छ प्रमापित छ. 'तणुसहम सुजाय णिद्ध लोमच्छविहराणं' मेमना शरी२ ५२ २ ३। छे ते तनुसूक्ष्म-giar જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્રા
SR No.006356
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages567
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size35 MB
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