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________________ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे 3 'तरमल्लिहायणाणं' तरोमल्लिहायनानाम्, तत्र तरो वेगो मल्लि-धरिकः हायन:- संवत्सरो येषां ते तथा तेषाम्, वरतुरङ्गमाणा मित्यग्रिमेण सम्बन्धः, 'हरिमेल मउलमल्लिकाऽच्छाणं' हरि मेल मुकुलमल्लिकाक्षाणाम्, तत्र हरिमेलको वनस्पति विशेष स्तस्य मुकुलं- कुड्मलम् तथा मल्लिका- विचकिलः तद्वदक्षिणी येषां ते हरिमेलकमुकुल मल्लिकाक्षास्तेषाम् ' चंचुचिय ललिय पुलिय चलचवलचंचलगईणं' चंचुरितललितपुलितचलचपलचञ्चलगतीनाम्, तत्र - चंचुरितं - कुटिलगमनम् अथवा चंचु :- शुकचञ्चु स्तद्वत् वक्रतया इत्यर्थः ' अञ्चितम् उच्चताकरणं पादस्योच्चितं वा उत्पाटनं पादस्यैव चंचूच्चितं च तत् ललितं च विलासद्गतिः पुलितं च-गतिविशेषः एवं रूपा, तथा चलतीति चलो वायुः कम्पनत्वात् तद्वत् चपलचञ्चला अतिशयेन चपला गतिर्येषां ते तथा तेषाम् तथालङ्घनं गर्तादेरतिक्रमणम् 'तरमल्लिहायणाणं' ये तर-वेग या बल धारक वर्षवाले होते हैं - अर्थात्-यौवनशाली होते है, 'हरि मेलमउल मल्लिकाच्छाणं' हरिमेल- वनस्पति विशेष के मुकुल - कुड्मल एवं मल्लिका के जैसी इनकी आंखें' हैं, 'चंचुचियललिय पुलिय चल चवल चंचल गईणं' इनकी गति क्रिया चंचुरित है, वायु के जैसा अत्यन्त चपलता भरी है, या कुटिलित है, शुक की चोंच के जैसी वक्रता लिये हुए है एवं ललित - विलास युक्त है, पुलकित अतएव आनन्दोत्पादक है, अथवा- 'चंचुचिचय' की संस्कृत छाया 'चंचितम् ' ऐसी भी हो सकती है इस पक्ष में इनकी गति तोते की चोंच जैसी वक्र इसलिये थी कि उसमें पैरों को ऊंचा किया जाता है और फिर रक्खा जाता है अतः इस स्थिति में पैरों का टेडा होना स्वाभाविक है इसलिये उस गति क्रिया को भी यहां वक्रतायुक्त कह दिया गया है, 'चल' शब्द का अर्थ यहां वायु है सो वायु की गति अतिशय चपलता भरी होती है इसी प्रकार की इनकी भी गति अतिशय चपलता युक्त है 'लंघणवग्गण धावण विलक्षाणु तेन विशिष्ट होय छे, 'तरमल्लिहायणानं ' तेथे तर वेग अथवा मजधार वर्षवाणा होय छे अर्थात्-यौवनशाणी होय छे, 'हरिमेल मउल मल्लिकच्छाणं' हरिमेसવનસ્પતિ વિશેષના મુકુલ-ખીલેલ કુડૂમલ કળિયા તેમજ મલ્લિકાના જેવી એમની આંખેા છે. 'चंचुचिय ललियपुलियचलचवलचंचलगईणं' ओमनी गतिडिया ययुरित छे, वायु देवी अत्यन्त ચપળતા ભરેલી છે અથવા કુટલિત છે, પોપટની ચાંચના જેવી વક્રતાવાળી છે અને ससित विद्यासयुक्त छे, युसहित - साथी मानन्ह उपन्नवनारी छे अथवा - 'चंचुच्चिय' नी संस्कृत छाया 'चंचितम्' मेवी पशु होई शडे छे. या पक्षमां खेभनी गति પેપટની ચાંચ જેવી વાંકી એટલા માટે હતી કે તેમના પગને ઊંચા કરવામાં આવે છે અને પછી નીચે રાખવામાં આવે છે આથી આવી સ્થિતિમાં પગાનુ... વાંકા હેવુ. સ્વાભવિક છે અને આથી જ તે ગતિક્રિયાને પણ અહીં જીતાયુક્ત કરી દેવામાં આવી छे. 'चल' शब्हनो अर्थ अत्रे वायु छे भने वायुनी गति अतिशय थपजतायुक्त होय छे या रीते खेभनी पशु गति अतिशय थपजतालरेसी छे, 'लंघणवग्गणधावण धोरण જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર ४९०
SR No.006356
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages567
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size35 MB
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