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________________ प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः सू०२९ चन्द्रसूर्याणां विमानवाहकदेवसंख्यानि० ४८५ द्धानाम् अश्लथानां लक्षणोन्नतानाम्-प्रशस्तलक्षणानामित्यर्थः, तथा ईषदानतं-किश्चिनम्र मावतामापनमुपागतं वृषभौष्ठं वृषभौ-प्रधानौ लक्षणयुक्तत्वेन ओष्ठौ यत्र तादृशं यद् मुर्ख तादृशमुखवताम्, 'चंकमियललिय पुलिय चलचवल गवियगईणं' चंक्रमितं-कुटिलं गमनम्, ललितं-विलासवद्गमनम्, पुलितं-गति विशेषा सचाऽऽकाश क्रमणरूपः एवं रूपा चलचपलाअत्यन्त चपला गर्विता गतिर्येषां ते तथा तादृशानाम् 'संनतपासाणं' सनतनपार्खानाम् अधोऽधः पार्श्वयोरवनतत्वात, तथा-'संगतपासाणं' संगतपार्थानाम्-देहममाणोचितपाववतामित्यर्थः 'सुजायपासाणं' सुजातपार्थानाम्-सुनिष्पन्नपार्खानामित्यर्थः 'पीवरवट्टिय सुसं. ठिय कडीणं' पीवरवर्तित सुसंस्थित कटीनाम्, तत्र-पीवरा-पुष्टा वर्तिता-वृत्ता सुसंस्थिताविलक्षणसंस्थानयुक्ता कटिर्येषां ते तथा तादृशानाम्, तथा-'ओलंब पलंबलक्खणपमाणजुत्त रमणिज्जवालगंडाणं' अवलम्ब प्रलम्बलक्षणप्रमाणयुक्तरमणीयवालगण्डानाम्, तत्र अव. वह अयोधन की तरह लोहे के हथौडे की तरह मजबूत होता है, सुबद्ध-शिथिल नही होता है-नीचे की ओर कुछ २ झुका हुआ होता है ऐसे वृषभ-श्रेष्ठ ओष्ठ से इनका मुख सुशोभित रहता है । 'चंकमिय ललिय पुलियचलचवलगविय गईणं' इनकी गति कुटिल होती है विलासयुक्त गमनवाली होती है गर्वित होती है और अत्यन्त चपलता से भरी हुई होती है 'संनतपासाणं' इनके दोनों पार्श्वभाग देह के प्रमाणानुसार नीचे की ओर झुके हुए होते हैं । 'संगतपासाणं देह के प्रमाण के अनुसार इन का प्रमाण भी संगत- उचित होता है 'पीवर वहिय सुमंठिय कडीणं' इनका कटिभाग पुष्ट होता है, वर्तित-गोल होता है और अच्छे संस्थान से सहित होता है 'ओलंबपलंब लक्खण पमाणजुतरमणिज्ज वालगंडाणं' इन पर जो चामर लटके रहते हैं जहां उनके लटकने के स्थान हैं वहीं पर लटके रहते हैं ये चामर लम्बे २ होते हैं तथा लक्षणों से एवं હોઠ હોય છે તે અઘનની જેમ લેઢાના હડાની માફક મજબૂત હોય છે, સુબદ્ધશિથીલ હોતું નથી. લક્ષણેનત હોય છે–પ્રશસ્ત લક્ષણવાળો હોય છે. ઈષદાનત હોય છે નીચેની તરફ થેડે થડે નમેલે હેય છે આવા વૃષભ શ્રેષ્ઠ એઠથી એમનું મુખ सुशोभित रहे छे. 'चंकमियललिय पुलिय चलचवलगव्वियगईणं' भनी गति रिस डाय છે વિલાસયુક્ત ગમનવાળી હોય છે. ગાવિત હોય છે તેમજ અત્યન્ત ચપળતાથી ભરેલી हाय छे. 'संनतपासाणं' मेमना भने पावला शरीरना प्रभार अनुसार मेनु प्रमाण ५५ सत-लयित हाय छे. 'पीपरवद्वियसुसंठियकडीणं' भने। मरने। मास पुष्ट हाय छ, पतित-पाय छ भने सारा मावण हाय छे. 'ओलंबपलंबलक्खण पमाण जुत्त रमणिज्जवालगंडाणं' अमना ५२२ याभर सटसा हाय छे ते याम२ सामा લાંબા હોય છે તેમજ તેઓ જ્યાં લટકવાનું સ્થાન છે ત્યાં જ લટકેલા રહે છે. તથા લક્ષણેથી અને યાચિત :પ્રમાણુથી યુક્ત હોય છે આથી ઘણાં જ રમણિય લાગે છે, જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006356
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages567
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size35 MB
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