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________________ २८२ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे जिताः, तथाहि-नक्षत्रमासप्रयोजनं तु संप्रदायादेव ज्ञातव्यम्, । वैशाखे श्रावणे मार्गे पौषे फाल्गुन एवहि । कुर्वीतवास्तु प्रारम्भं नतु शेषेषु सप्तसु' इत्यादि स्थलेषु चान्द्रमासस्य प्रयोजनं प्रदर्शितम् ऋतुमासस्य प्रयोजनन्तु पूर्व प्रदर्शितमेव 'जीवे सिंहस्थे धनुमीनस्थितेऽर्के विष्णौ निद्राणे चाधिमासे न लग्न मित्यादौ सूर्यमासाभिवर्द्धितमासयोः प्रयोजनं प्रदर्शित मिति तु संक्षेपः॥ ____ अथ चतुर्यलक्षणसंवत्सरप्रश्नमाह-'लक्खणसंवच्छरेणं भंते' इत्यादि, 'लक्खणसंवच्छरे णं भंते करविहे पनत्ते' लक्षणसंवत्सरः लक्षणनामकः खलु भदन्त ! संवत्सरः कतिविधः कतिप्रकारकः प्रज्ञप्त इति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'पंचविहे पन्नत्ते' पञ्चविधः-पञ्चप्रकारकः प्रज्ञप्तः-कथित इति, 'तं जहा' तद्यथा 'समयं णक्खत्ता जोगं जोयति समयं उउं परिणामंति, णच्चुलाइसीओ बहूदओ होइ णक्खत्तो' समकं कार्यों में नियोजित किया है नक्षत्रमासों का प्रयोजन संप्रदाय से जानलेना चाहिये 'वैशाखे श्रावणे मागें पौषे फाल्गुन एवहि । कुर्वीत वास्तु प्रारम्भं नतु शेषेषु सप्तसु। इत्यादि स्थलो में चन्द्र मासका प्रयोजन प्रदर्शित किया गया है ऋतुमासका प्रयोजन तो हमने पहिलेही दिखा दिया है, 'जीवे सिंहस्थेधनु मीनास्थितेऽर्के विष्णो निद्राणे चाधिमासे न लग्न' मित्यादि स्थलो में सूर्यमास और अभिवद्धित मासोंका प्रयोजन दिखाया है। 'लक्खणसंवच्छरे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते' हे भदन्त ! जो लक्षण संवत्सर है वह कितने प्रकार का कहा गया है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा पंचविहे पनत्ते' हे गौतम! लक्षण संवत्सर पांच प्रकार का कहा गया है। 'तं जहा' वे उसके पांच भेद इस प्रकार से हैं-'समयं णक्खत्ता, जोगं जोयंतिसमयं उउ परिणामंति णच्चुहणाइसीओ बहूदओ होइ णक्खत्तो' इस गाथा का તે બધા માને તત્ તત્ વ્યાવહારિક કાર્યોમાં નિયજિત કર્યા છે. નક્ષત્રમાસનું પ્રજન સંપ્રદાયથી જાણું લેવું જોઈએ. वैशाखे श्रावणे मार्गे पौषे फाल्गुन एव हि । __ कुर्वीत वास्तु प्रारम्भं न तु शेषेसु सप्तसु ॥ વગેરે સ્થળમાં ચન્દ્રમાસનું પ્રયોજન પ્રદર્શિત કરવામાં આવેલું છે. ઋતુમાસનું प्रयोग अभीये पडसा ॥ २५ष्ट श दी छे. 'जीवे सिंहस्थे धनुमीनास्थितेऽर्के विष्णौ निद्राणे चाधिमासे न लग्नमित्यादि' स्थगोमा सूर्य भास भने मलितमासानु પ્રજને બતાવવામાં આવેલું છે. 'लक्खणसंवच्छरणं भंते ! कइविहे पण्णत्ते' ३ महत ! सक्ष सवत्स२ छ ते टसा नु । छ-'गोयमा ! पंचविहे पन्नत्ते' गौतम ! पक्ष सत्स२ पांय ४३पाम आवे छ. 'तं जहा' तेमन मे । ॥ प्रमाणे छे–'समयं णक्खत्ता, जोग जोयंति, જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006356
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages567
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size35 MB
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