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________________ प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः सू० १६ सूर्यस्योदयास्तमननिरूपणम् २५७ ___ आलापप्रकारस्तु सर्वत्र पूर्ववदेव स्वयमहनीयो विस्तरभयान लिख्यते । वर्षाकाले समयादीनां प्रतिपतिं प्रदर्य शीतकालादौ समयादीनां प्रतिपतिं दर्शयितुमाह-'जयाणं भंते !' इत्यादि, 'जयाणं भंते ! जंबुद्दीवे दोवे हेमंताणं पढमे समए पडिवज्जइ' यदा खलु भदन्त ! जम्बूद्वीपे द्वीपे हेमन्तानां शीत कालिकचतुर्मासानाम् प्रथमः समय:-क्षणः प्रतिपद्यते-भवति 'जहेव वासाणं अभिलावो तहेव हेमंताण वि गिम्हाण वि भाणियचो' यथैव वर्षाणामभिलापो भणितः तथैव हेमन्तानामपि ग्रीष्माणामपि भणितपः, कियत्पर्यन्तं पूर्ववदेव अभिलापो वक्तव्य स्तत्राह-'जाव उत्तरे वि' यावदुतरेऽपि उतरभागपर्यन्तं सर्व वक्तव्य मिति 'एवं एए तिण्णि वि' एवमे ते त्रयोऽपि वर्षा हेमन्तग्रीष्मकाला अपि वक्तव्याः 'एएसि तीसं आलाचगा भाणियव्वा' एतेषां त्रयाणामपि वर्षादि ग्रीष्मान्तकालानां त्रिंशदाविस्तार हो जाने के भय से हम उसे यहां नहीं लिख रहे हैं। इस तरह वर्षा काल में समयादिकोंकी प्रतिपत्ति को प्रकट कर के अब सूत्रकार शीतकाल आदि में समयादिकोंकी प्रतिपति को प्रकट करते हैं-इस में गौतमस्वामी ने प्रभु से ऐसा पूछा है-'जयाणं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे हेमंताणं पढमे समए पडिज्जइ' हे भदन्त ! जम्बूद्वीप नामके द्वीप में शीत काल के चार माहिनों का प्रथम समय होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं, 'जहेव वासाण अभिलावो तहेव हेमंताण वि गिम्हाण विभाणियव्यो' हे गौतम ! जैसा वर्षा काल के चार मासों के सम्बन्ध में अभिलाप कहा गया है उसी तरह से हेमन्त के चार मासों के सम्बन्ध में एवं ग्रीष्मकाल के चार मासों के सम्बन्ध में भी अभिलाप पूर्व की तरह कहलेना चाहिये और इनके सम्बन्ध के ये अभिलाप 'जाव उत्सरे वि' यावत् उतर भागतक कहना चाहिये 'एवं एए तिणि चि' इस तरह ये तीन भी-वर्षा हेमन्त और ग्रीष्मकाल भी कहना चाहिये और 'एएसिं तीसं आलापगा भाणियઅભિલાપનો પ્રકાર આવલિકાની સાથે પહેલાં લખવામાં આવેલ છે. વિસ્તારમયથી અમે અહીં લખતા નથી. આ પ્રમાણે વર્ષાકાળમાં સમયાદિકેની પ્રતિપત્તિને પ્રકટ કરીને હવે સૂત્રકાર શીતકાળ વગેરેમાં સમયાદિકેની પ્રતિતિને પ્રકટ કરે છે. આમાં ગૌતમસ્વામીએ प्रभुने सेवी रीते प्रश्न थे-'जयाणं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे हेमंताणं पढमे समए पडिवज्जइ' : महत ! दी५ नाम पभो तन यार भासाना शु प्रथम समय हाय छ ? सेना १४ाममा प्रभु ४३ छ-'जहेव वासाणं अभिलावो तहेव हेमंताण वि गिम्हाण वि भाणियव्यो' है गौतम ! २ प्रमाणे ना यार मासाना समयमा અભિલાપ કહેવામાં આવેલ છે તેમજ હેમંતના ચાર માસોના સંબંધમાં ગ્રીષ્મકાળના ચાર માસોના સંબંધમાં પણ અભિલાપ પૂર્વની જેમજ કહી લેવો જોઈએ અને એમનાથી समर मे मनियापी 'जाव उत्तरे वि' यावत् २मा सुधी . 'एवं एए तिण्णि वि' या प्रमाणे येणे ५५ वर्षा, मत भने श्रीभ ५५ ही सेवा ज०३३ જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006356
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages567
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size35 MB
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