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________________ २५० जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे दोवे मंदरस्स पब्वयस्त' तदा खलु जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य मेरोः पर्वतस्य 'पुरथिमपच्चत्थिमेणं उक्कोसिया अहारसमुहता राई भवई' पूर्वपश्चिमेन पूर्वस्यां दिशि पश्चिमायां च दिशि उत्कर्षतः किमष्टादशमुहुर्तप्रमाणा रात्रि भवति, इति प्रश्न:, भगवानाह-हंता गोयमा' इत्यादि, 'हंता गोयमा' हन्त, गौतम ! 'एवं चेव उच्चारेयव्वं जाव राई भवइ' एवमेवोच्चारयितव्यं यावद्रात्रि भवति, अत्र यावत्पदेन संपूर्णमपि प्रश्नवाक्यं संगृद्य ते । 'जया णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरपुरस्थिमेणं' यदा खलु भदन्त ! जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरपर्वतस्य पूर्वस्यां दिशि जघन्येन द्वादशमुहत्तों दिवसो भवति 'तयाणं पचत्थिमेण वि' तदा खल मन्दरस्य पर्वतस्य पश्चिमदिग्विभागेऽपि जधन्येन द्वादशमुहर्तप्रमाणो दिवसो भवति, 'जयाणं पच्चत्थिमेण वि' यदा खलु जम्बूद्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य पश्चिमदिग्भागे द्वादशमुहूर्त प्रमाणो दिवसो भवति 'तया णं जंबुद्दीवे दीवे मदरस्स पव्वयस्स उत्तर दाहिणेण उक्को पच्चस्थिमेणं उक्कोसिया अट्ठारसमुहु ता राई भवई' तब क्या जम्बूद्रोप नामके द्वीप में मन्दर पर्वत की पूर्व और पश्चिम दिशा में उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त की रात्रि होती है इसके उ तर में प्रभु कहते हैं-हंता गोयमा! एवं चेव उच्चारेयवं जाव राई भवइ' हां गौतम ! ऐसा ही होता है अर्थात् जब मंदर पर्वत के उत्तर भागमें जधन्य १२ मुहूर्त का दिवस होता है तब जम्बुद्धीप नामके द्वीप में मन्दर पर्वत की पूर्व और पश्चिम दिशा में उत्कृष्ट १८ मुहूर्त की रात्रि होती है। 'जयाणं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरपुरस्थिमेण.' हे भदन्त ! जब इस जम्बूद्वीप नामके द्वीप में मन्दर पर्वत की पूर्व दिशा में जधन्य १२ मुहर्त का दिन होता है 'तयाणं पच्चस्थिमेणं वि' तब मन्दर पर्वत की पश्चिम दिशा में भी जघन्य १२ मुहूर्ता का दिन होता है. 'जयाणं पच्चत्थिमेण वि' जब जम्बूद्वीप नामके द्वीप में मन्दर पर्वत के पश्चिम दिग्भाग में १२ मुहूर्त का दिन होता है 'तयाणं जवुद्दीवे. दीवे मंदरस्स पच्वयस्स उत्तरदाहिणेणं उक्कोसिया अट्टारसमुहु ता राई भवइ सिया अद्वारसमुहता राई भवइ' त्यारे शु दा५ नाम दीपमा म १२५ तनी पूर्व અને પશ્ચિમ દિશામાં ઉત્કૃષ્ટ ૧૨ મુહૂર્તની રાત્રિ હોય છે? જવાબમાં પ્રભુ કહે છે-“દંતા गोयमा ! एवं चेव उच्चारेयव्वं जाव राई भवई' .i, गौतम ! साम " थाय छे सेट में જ્યારે મંદર પર્વતને ઉતરભાગમાં જઘન્ય ૧૨ મુહૂર્તનો દિવસ હોય છે ત્યારે જબૂદ્વીપ નામક દ્વીપમાં મંદર પર્વતની પૂર્વ અને પશ્ચિમદિશામાં ઉત્કૃષ્ટ ૧૮ મુહૂર્તની રાત્રિ હોય छ. 'जयाणं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरपुरस्थिमेणं' 3 मत ! न्यारे दीप नाम: द्वीपमा भ६२५ तनी पूर्व दिशाम धन्य १२ भुताना हिवस ५ छ. 'तयाणं पच्चत्थिमेणं वि' त्यारे भ२५ तनी पश्चिमहिशामा ५९ धन्य १२ भुताना स शेय छ. 'जयाणं पच्चत्यिमेणं वि' यादी५ नाम द्वीपमा भ६२५ तन। पश्चिमEिMIIभा १२ मुतनी हिस होय छे. 'तयाणं जंबुद्दीवे दीबे मंदरस्स पव्वयस्स उत्तर જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006356
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages567
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size35 MB
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