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________________ ६९६ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे एवं विजयानुसारेण जाव अप्पेगइयादेवा आसिअ संमजिओवलित्तसित्तसुइसम्मट्टरत्थंतरावणवीहिअं करेंति जाव गंधवट्टिभूति अप्पेगइया हिरण्णवास वासंति एवं सुवण्णरयणवइर आभरणपत्तपुप्फफलबीअमल्ल गंधवण्ण जाव चुण्णवासं वासंति, अप्पेगइया हिरण्णविहि भाइंति एवं जाव चुण्णविहिं भाइंति अप्पेवाइया चउव्विहं वज्जं वाएंति तं जहा - ततं १ विततं २ घणं ३ झुसिरं ४ अप्पेगइया चउव्विहं गेयं गायंति तं जहा - उक्खित्तं १ पायन्तं २ मंदा गईयं ३ रोईआवसाणं ४ अप्पेगइया चउव्विहं ण णच्चति तं जहा - अंचिअं १ दुअं २ आरभडं ३ भसोलं ४ अप्पेगइया चउव्विहं अभिणयं अभिणति तं जहा-दितिअं १ पडिसुएइयं २ सामण्णोवणिवाइयं ३ लोगमज्झावसाणियं, अगबत्तीस विहं दिव्वं हविहिं उवदति अप्पेगइया उप्पयं निवयं निवयउप्पयं संकुचिअपसारिअं जाव अंतसंभतणामं दिव्वं हविर्हि उवदसंतीति, अप्पेगइया तंडवेंति अप्पेगइया लासेंति, अप्पेगइया पीर्णेति, एवं वृक्कारेंति, अप्फोडेंति, वग्गंति सीहणायं णदंति अप्पेगइया सव्वाई करेंति अप्पेगइणा हयहेसिअं एवं हत्थि गुलुगुलाइअं रहघणघणाइअं अप्पेगइया तिणिवि, अप्पेगइया उच्छोलंति अप्पेगइया पच्छोलंति, अप्पेगइया तिवई छिंदंति पायदद्दरये करेंति, भूमिचवेडे दलयंति, अप्पेगइया महया सदेणं रावेंति एवं संजोगा विभासियव्वा अप्पेगइया हक्कारेंति एवं पुकारेंति वक्कारेंति ओवयंति परिवयंति जलंति तवंति पयवंति गज्जति विजआयंति वासिंति अप्पेगइया देवुकलिअं करेंति एवं देवकहकहगं करेंति, अप्पेगइया दुहु दुहुगं करेंति अप्पेगइया विकिय भूयाई रुवाई विउटिवत्ता पणच्चंति एवमाइ विभासेजा जहा विजयस्त जाव सव्वओ समंता आधावेंति परिधावेंति ॥ सू० १० ॥ छाया - ततः खलु सोऽच्युतो देवेन्द्रः दशभिः सामानिकसहस्रैः त्रयस्त्रिशता त्रयस्त्रिंशकैः चतुर्भिलोकपालैः तिसृभिः पर्षद्भिः सप्तभिरनीकैः सप्तभिरनीकाधिपतिभिः चत्वारिंशता आत्मरक्षकदेवसहस्रैः सार्द्धं संपरिवृतः ते स्वाभाविकैः वैक्रियैश्व वर જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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