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________________ ६०२ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे शाकिन्यादि दुष्टदेवताभ्यो दृग्दोषादिभ्यश्च रक्षाकरी पोट्टलिका बघ्नन्ति 'बंधेत्ता' बद्ध्वा 'णाणामणिरयणभत्तिचित्त दुविहे पाहाणवट्टगे गिण्हंति' नाना मणिरत्नभक्तिचित्रौ-नानामणिरत्नानां विविधचन्द्रकान्तहीरकादीनां भक्तीरचना तया विचित्रौ द्विविधौ पाषाणवृत्तको पाषाणगोलको गृह्णन्ति 'गहाय' गृहीत्वा 'भगवओ तित्थयरस्स कण्णमूलंमि टिट्टियाविति' भगवतस्तीर्थङ्करस्य कर्णमूले तौ पाषाणगोलको संयोज्य 'टिट्टियावेंति' परस्परं ताडनेन दिट्टीतिशब्दोत्पादनपूर्वकं वादयन्तीत्यर्थः 'टिट्टियावेंति' अनुकरणशब्दोऽयम अनेन हि बाललीलावशादन्यत्र व्यासक्तं भगवन्तं वक्ष्यमाणाशीवचनश्रवणे पटुं कुर्वन्तीतिभावः, 'भवउ भगवं पच्चयाउए २' भवतु भगवान् पर्वतायुः भवतु भगवान् पर्वतायुः इत्याशीर्वचनं ददाति इति । 'तए णं ताओ रुयगमज्झवत्थव्वाओ चत्तारि दिसाकुमारी महत्तरियाओ भगवं तित्थयरं राखकी पोलियां बनाई जिन और जिन जननी की शाकिनी आदि दुष्ट देवियों से एवं दृष्टिदोष से रक्षा करनेवालो ऐसी पोहलिका तैयार की और उसे उनके गलेमें बांध दिया 'बंधेत्ता गाणामणिरयणभत्तिचित्ते दुविहे पाहाणवट्टगे. गिण्हंति' बांधने के बाद फिर उन्हों ने अनेक मणि और रत्नों से जिनमें रचना हो रही है और इसी से जो विचित्र प्रकार के हैं ऐसे दो गोलपाषाण को-वटईयों को शालिग्राम की जैसी छोटी-छोटी दो वटइयों को उठाया-'गहाय भगवो तित्थयरस्स कण्णमूलंमि टिहियावेंति' और उठाकर उन्हें भगवान् तीर्थकर के कर्णमूल पर ले जाकर बजाया-कि जिस से उनके वचन से टी टी ऐसा शब्द निकला 'टिटियाति' यह अनुकरण शब्द है । इससे यह प्रकट किया गया है कि बाललीला के वश से यदि भगवान् का चित्त अन्यत्र आसक्त हो तो वह एक जगह आजावे ताकि वक्ष्यमाण इस आशीर्वाद के वचनों को वे सावधान से सुन सकें 'भवउ भगवं पचयाउए' आप भगवान पर्वत के बराबर आयुवाले हों જિન અને જિન જનની ની શાકિની વગેરે દુષ્ટ દેવીઓથી તેમજ દકિટ દેષથી રક્ષા કરનારી એવી તેમણે પિટ્ટલિક તૈયાર કરી અને પછી તે પટ્ટલિકા તે તેમના ગળામાં બાંધી દીધી. 'बंधेत्ता णाणामणिरयणभत्तिचित्ते दुविहे पाहाणवट्टगे गिण्हंति' माध्या माई तो भने મણિઓ અને રત્નોની જેમાં રચના થઈ રહી છે અને એનાથી જ જે વિચિત્ર પ્રકારના सेवा मे गोण पाषाण-शाम २१ मारनामे पाषाण-381041. 'गहाय भगः वओ तित्थयरस्स कण्णमूलंमि टिट्टियावें ति' मनवीन तभणे भगवान् तीर्थ ४२॥ ४६॥ - મૂલ ઉપર લઈ જઈને વગાડયા કે જેથી તેમના વજનથી જ “ટી-ટી' એ શબ્દ નીકળે 'टिट्रियाति' 240 मनु४२९।।त्म४ २५६ छ. सेनाथी २॥ वात ५४८ ४२वामा मापी छ । બાળલીલાના કારણથી જે ભગવાનનું ચિત્ત અન્ય સ્થળે આસક્ત હોય તે તે એક સ્થાને ખાવી જાય, જેથી વક્ષ્યમાણ આ આશીર્વાદના વચનેને તેઓશ્રી સાવધાન થઈને સાંભળી श. 'भवउ भगवं पव्वयाउए' मा५ लगवान पत ५२५२ आयुष्यवाणा था. 'तराएणं જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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