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________________ प्रकाशिका टीका - पञ्चमवक्षस्कारः सू. ३ पौरस्त्यरुचक निवासिनीनामव सरवर्णनम् ६०१ लोकप्रसिद्धं काष्ठविशेषं घटयन्ति संयोजयन्ति 'अरणि घडित्ता' अरणि घटयित्वा संयोज्य 'सरणं अरणि महिंति' शरकेण अरणि मध्नन्ति 'महित्ता' मथित्वा 'अरिंग पार्डेति' अग्नि पातयन्ति 'पाडित्ता' पातयित्वा 'अरिंग संधुवखंति' अग्नि संधुक्षन्ति सदीपयन्ति 'संधुक्खित्ता' संधुक्ष्य 'गोसीस चंदणकट्ठे पक्खिवंति' गोशोर्षचन्दनकाष्ठानि खण्डशः कृतानि यादृशैश्चन्दनकाष्ठैः अग्निरुदीपितः स्यात् तादृशानि प्रोक्तकाष्ठानि प्रक्षिपन्ति 'पक्खिवित्ता' प्रक्षिप्य 'अरिंग उज्ज लंति' अग्निमुज्ज्वालयन्ति 'उज्जा लित्ता' उज्ज्वाल्य 'समिहा कट्ठाई पक्खिविति' समित्काष्ठानि प्रादेशप्रमाणानि इन्धनानि समिधस्तद्रूपाणि काष्ठानि अग्नौ प्रक्षिपन्ति पूर्व हि गोशोर्षचन्दनकाष्ठप्रक्षेपोऽग्न्युद्दीपनाय अयं च प्रक्षेपः रक्षाकरणायेति विशेषः, 'पक्खिवित्ता' प्रक्षिप्य 'अग्गिहोमं करेंति' अग्निहोमं कुर्वन्ति अग्नि विशेषतः प्रज्वालयतीत्यर्थः 'करिता' कृत्वा 'भूतिकम्मं करेंति' भूतिकर्म कुर्वन्ति भूतेः भस्मनः कर्म क्रियातां कर्वन्ति 'करिता' कृत्वा 'रक्खापोट्टलियं बंधेति' रक्षा पोट्टलिकाम् - जिनजनन्योः अरणि महिति' संयोजित करके फिर दोनों को उन्होंने रगडा 'महित्ता अरिंग पार्डेति' रगड करके अग्नि को उनमें से निकाला 'पाडित्ता अगिंग संधुक्खति' निकाल कर उस अग्नि को उन्होंने धोंका 'संधुक्खिता गोसीसचं दणकट्ठे पक्खिविंति ' धोंक कर अग्नि में उन गोशीर्ष चन्दन की लकडियों को डाला 'पक्खिवित्ता रिंग उज्जालयंति' डाल करके फिर उन्होंने अग्नि को प्रज्ज्वलित किया 'उज्जालित्ता समिहाकट्ठाई पक्खिविति' अग्नि को प्रज्वलित करके फिर उसमें उन्होंने समित्काष्ठों को डाला पहिले तो गोशीर्ष चन्दन की लकडियों से उन्होंने अग्नि को चेताया जलाया बाद में जब अग्नि चेत चूकी तब फिर उसमें उन्होंने इन्धन डाला 'पक्खिवित्ता अग्निहोमं करेति' इन्धन डालकर फिर उन्होंने अग्नि होम किया 'करिता भूतिकम्मं करेंति' अग्नि होम करके फिर उन्होंने भूतिकर्म किया 'करिता रक्खापोट्टलियं बंवंति' भूतिकर्म करके उन्हों ने मरशिष्ठने संयोजित 3. 'अरणि घडित्ता सरएणं अरणिं महिंति' संयोजित ने छी जन्नेने तेथे घस्यां 'महित्ता अगिंग पोडेति' धसीने अग्निने तेमांथी अढये. 'पडित्ता अग्गि संधुक्खति' अढीने ते अग्निने तेभाणे समगाव्या. 'संधुक्खित्ता गोसीसचंदणकट्ठे पक्खिविति' सणगावीने ते गोशीर्ष यन्दनना साडा तेमां नाच्या 'पक्खिवित्ता अग्गिं उज्जालयंति' नामीने तेभाणे अग्निने अन्वसित र्या. 'उज्जालित्ता समिहाक्ट्ठाई पक्खिविति' अग्निने પ્રજ્વલિત કરીને પછી તેમાં તેમણે સમિત્ ક ઠે નાખ્યાં. પહેલાં તેમણે ગેાશી`ચન્હનના લાકડાએથી અગ્નિ પ્રજ્વલિત કર્યાં ત્યાર બાદ જ્યારે અગ્નિ પ્રજ્વલિત થઈ ગયા ત્યારે तेभाणे तेमां ईंधन नाभ्या. 'पक्खिवित्ता अग्गिहोमं करेति' ईंधन नामीने पछी तेभा अग्नि होय ये. 'करिता भूतिकम्मं करेति' अग्नि होय रोने पछी तेभो लूर्तिप्रभ यु" 'करित्ता रक्खापोट्टलियं बंधंति' भूति कुरीने पछी तेथे रामनी पोट्टसिडा मनावी ज ७६ જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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