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________________ ३९८ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे वर्णनरीतिः तथैषामपि बोध्या, सा च किम्पर्यन्ता ? इत्याह-'जाव अणुसज्जमाणा' यावद अनुषज्जन्त:-सन्तानेनानुवर्तमानाः सन्ति, तत्रानुषज्जन्तीति अनुपज्जन्त इति वर्तमाननिर्देशः कालत्रयेऽपि एषां सत्ता सूचनार्थः, तेऽनुपज्जन्तः के सन्ति ? इत्याह-'पम्हगंधा मियगंधा अममा सहा तेतली सणिचारीति ६' पद्मगन्धाः १, मृगगन्धाः २, अममाः ३, सहाः ४, तेतलिनः ५, शनैश्चारिणः ६ इति षड् मनुष्यजाति भेदाः, एषां विशेषतो विवरणं सुषमसुषमाकालवर्णनप्रसङ्गे प्रागुक्तं, तज्जिज्ञासुभिस्ततो बोध्यम् ॥सू० ३०॥ अथात्र वर्तिनौ चित्रविचित्रकूटौ गिरी वर्णयितुमुपक्रमते-'कहि णं भंते !' इत्यादि । मूलम्-कहि णं भंते ! देवकुराए चित्तविचित्तकूडा णाम दुवे पवया पण्णता ?, गोयमा । णिसहस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरिल्लाओ चरिमंताओ अट चोत्तीसे जोयणसए चत्तारि य सत्तभाए जोयणस्स अवाहाए सीयोयाए महाणईए पुरस्थिमपञ्चस्थिमेणं उभओ कूले एत्थ णं जाव अणुसज्जमाणा पम्हगंधमिअगंधा अमया सहा तेतली सणिचारीति) इनका विस्तार ११८४२ योजन और एक योजन के १९ भागों में से दो भाग प्रमाण है बाकी का इनका शेष वर्णन उत्तर कुरु के वर्णन जैसा है-यही बात सूत्रकारने (जहा उत्तरकुराए वत्तब्धया) इस सूत्रपाठ द्वारा प्रकट की है यहां वर्णन उत्तर कुरु के जैसा 'अणुसज्जमाणा पम्हगन्धा, मिअगंधा अमया सहा तेतली. सणिचारीति' वहां के इस वर्णन तक करना चाहिये 'अणुसज्जमाणा' पद् यह प्रकट करता है कि इनकी बंशपरंपरा का त्रिकाल में भी विच्छेद नहीं होता है इनके शरीर की गन्ध पद्म की गन्ध जैसी होती है इत्यादि रूपसे वहां की षट्र प्रकार की मनुष्यजाति के भेदों का वर्णन करनेवाले इन मृगगंध आदि पदों की व्याख्या सुषम सुषमाकाल वर्णन के प्रसङ्ग में हमने पहिले करदी है अतः वहीं से यह समझलेनी चाहिये ॥३०॥ अगंधा अमया सहा तेतली सणिचारीति' मेमनी विस्तार ११८४२ यो मन में જનના ૧૯ ભાગમાંથી બે ભાગ પ્રમાણ છે અમનું શેષ બધું વર્ણન ઉત્તરકુરુના વર્ણન छ. मे पात सूत्रधारे 'जहा उत्तरकुराए वत्तव्यया' ॥ सूत्रमा १3 4४८ ४२१ मही शेष व उत्त२४२ नी म 'अणुसज्जमाणा पम्हगंधा मिअगंधा अमया सहा तेतली सणिचारीति' मी सुधीनु सभा नसे. 'अणुसज्जमाणा' ५६ मा पात ४८ ४२ छ કે એમની વંશપરંપરાને ત્રિકાલમાં પણ વિદ શક્ય નથી. એમના શરીરને ગંધ પદ્મના ગંધ જેવો છે. વગેરે રૂપમાં ત્યાંના ૬ પ્રકારની મનુષ્યગતિઓના ભેદના વર્ણન કરનારા से 'मृगगंध' वगेरे पहानी व्याच्या सुषम सुषमा नना प्रसमा म पसारी छ. मेथी ज्ञावा त्यांची ४ onqा प्रयत्न ४२. ॥ सू.-३० ॥ જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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