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जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे अथ नलिनकूटाख्यवक्षस्कारगिरौ कूटानि पिपृच्छिषुराह-'नलिणकूटे णं भंते' इत्यादिछायागम्यम्, नवरं तत्रो तरसूत्रे 'एए कूडा पंचसइया' एतानि कूटानि पंञ्चशतिकानि-पञ्चशतप्रमाणानि कूटवर्तिन्यो राजधान्यः कस्यां दिश्यवतिष्ठन्त इत्याह-'रायहाणीओ उतरेणं' राजधान्यः-राजवसतयः, उतरेण-उत्तरदिशि,
अथ षष्ठं विजयं वर्णयितुमुपक्रमते-'कहि णं भंते !' इत्यादि सुगमम्, नवरं 'पंकावईए' व्यतर देव-देवियां आकर विश्राम करती है और आराम करती है।
'लिणकूडेणं भंते ! कतिकूडा पन्नता' हे भदन्त ! नलिनकूट के ऊपर कितने कूट कहे गये हैं ! 'गोयमा ! चत्तारि कूडा पण्ण ता' हे गौतम ! चार कूट कहे गये हैं 'तं जहां उनके नाम इस प्रकार से हैं-'सिद्धाययणकूडे, णलिणकूडे, आवत्तकूडे मंगलावतकूडे, एए कूडापंचसइया रायहाणीओ उ तरेणं) सिद्धायतन कूट, नलिन कूट, आवर्त कूट, और मंगलावत कूट ये कूट, पांच सौ हैं यहां पर राजधानियां उतर दिशा में हैं। (कहिणं मंते ! महाविदेहे वासे मंगलावत्त णामं विजए पण्णत्ते) हे भदंत ! महाविदेह क्षेत्र में मंगलावर्त नामका विजय कहां पर कहा गया है (गोयमा ! नीलवंतस्स दक्षिणेणं सीयाए उत्तरेणं णलिणकूडस्स पुरस्थिमेणं पंकावईए पच्चत्थिमेणं एत्थ णं मंगलावते णामं विजए पण्णत्ते हे गौतम ! नीलवंत पर्वत की दक्षिण दिशा में, सीता महानदी की उत्तर दिशा में, नलिन कूट की पूर्व दिशा में एवं पंकावती की पश्चिम दिशा में महाविदेह क्षेत्र के भीतर मंगलावत नामका विजय कहा गया है। छ। सूत्रमाथी Meी सेवा नये. ‘णलिणकूडेणं भंते ! कति कूडो पन्नता' है लत ! नलिन इट ७५२ मा ट (शि५२) मावेसा छ ? 'गोयमा! च तारि कूडा पण्णता है ड गौतम ! या२ फूटे। मावा छे. 'तं जहा' तेना नाम मा प्रमाणे छ. 'सिद्धाययणकूडे, णलिणकूडे, आवत्तकूडे, मंगलाव तकूडे, एए कूडा, पंचसइया रायहाणी उत्तरेणं' सिद्धा યતનકૂટ, નલિન કૂટ, આવર્ત કૂટ અને મંગલાવત કૂટ એ ફૂટ ૫૦૦ છે. અહીં રાજ धानीमा उत्तर ६शामा ४ी छ. 'कहिणं भंते ! महाविदेहे वासे मंगलावत्ते णामं विजए पण्णत्ते'
महन्त ! भावि क्षेत्रमा भांगतात नाम qिय ४या स्थणे मावत छ ? 'गोयमा ! नीलवंतस्स दक्खिणेणं सीयाए उत्तरेणं णलिणकूडस्स पुरस्थिमेणं पंकावईए पच्चत्थिमेणं एत्थ णं मंगलाव ते णाम विजए पण्णत्ते' हे गौतम ! नासवत पतनी क्षिा हिशमां, સીતા મહાનદીની ઉત્તર દિશામાં નલિન ફૂટની પૂર્વ દિશામાં તેમજ પકાવતીની પશ્ચિમ हिशमां महाविड क्षेत्रनी ४२ मावत नामे विन्य मावस छ. 'जहा कच्छस्स
(१) यहां यावत् शब्द से" संयंति, चिटुंति, णिसीयंति, तुयदंति, रमंति, ललंति, कीलंति, किटंति, मोहंति" इन पदोंका ग्रहण हुआ है इनकी व्याख्या छठे सूत्र से जान लेनी चाहिए ।
જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર