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________________ ३६० जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे नदी साधारणं तेन यथा तत्र नदी क्षेत्रस्याल्पपरिमाणत्वेनानुपपत्तौ तदुपपत्तय कोट्टाककरण - माश्रयणीयं भवति तथाऽत्रापि तमाश्रयणीयम्' 'उभओ पासिं' उभयोः द्वयोः पार्श्वयोः भागयोः 'दोहि य पउमवरवेइयाहिं' द्वाभ्यां च पद्मवरवेदिकाभ्याम् ' दोहि य वणसंडेर्हि' द्वाभ्यां च वनपण्डाभ्यां 'जाव' यावत् यावत्पदेन 'संपरिक्खिता' इति सङ्ग्रह्यम् संपरिक्षिप्तेति तच्छाया तदर्धश्व परिवेष्टितेति 'दुण्हवि' द्वयोरपि पद्मवेदिका - वनपण्डयोरपि वर्णकः वर्णनपरपदसमूहोऽत्र बोध्यः, स च चतुर्थपञ्चसूत्रतो ग्राह्यः अथ तृतीयं महाकच्छविजयं वर्णयितृमुपक्रमते - 'कहि णं भंते !" इसकी दोनों तरफ दो पद्मवरवेदिकाएं हैं और दो वनपण्ड हैं उनसे यह घिरी हुई है (जाव दुव्ह वि वण्णओ) यहां यावत् शब्द से बद्मवर वेदिका एवं वन पण्ड इन दोनों का वर्णन कर लेना चाहिए (कहि णं भंते! महाविदेहे वासे महाकच्छे णामं विजय पण्णत्ते) हे भदन्त ! महाविदेह क्षेत्र में महाकच्छ नामका विजय कहां पर कहा है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं(गोयमा ! णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं सीघाए महाणइए उतरेण परमकूडस्स वक्खारपच्चयस्स पच्चत्थिमेणं गाहावईए पुरत्थिमेणं एत्थ णं महाविदेहे वासे महाकच्छे णामं विजए पण्ण ते) हे गौतम ! नीलवंत वर्षधर पर्वत की दक्षिण दिशा में सीता महानदी की उत्तर दिशा में पद्मकूट वक्षस्कार पर्वत की पश्चिम दिशा में एवं ग्राहावती महानदी की पूर्व दिशा में महाविदेह क्षेत्र के भीतर महाकच्छ नामका विजय कहा गया है (सेसं जहा कच्छविजयस्स जाव महाकच्छे इत्थदेवे महिदीए अट्ठो अ भाणियव्वो) बाकी का और सब कथन इसके सम्बन्ध का जैसा कच्छ विजय के प्रकरण में कहा गया है वैसा ही जानना चाहिए इसका महाकच्छ विजय ऐसा जो नाम हुआ है उसका कारण यावत એના અને પા ભાગેામાં એ પદ્મર વેદિકા છે અને એ વનખડી છે, તેમ नाथी से परिवृत छे. 'जाव दुण्ह वि वण्णओ' हीं यावत् मन्नेनुं वर्णन पुरी सेवु लेह से 'कहिणं भंते ! महाविदेहे वासे महाकच्छे णामं विजए पण्णत्ते' हे लहंत ! महा વિદેહ ક્ષેત્રમાં મહાકચ્છ નામક વિજય કયા સ્થળે આવેલ છે. એના જવાબમાં પ્રભુ કહે छे- 'गोयमा ! णीव' तस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं सीआए महाणईए उत्तरेणं प उमकूडस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं णाहावईए पुरत्थिमेणं एत्थ णं महाविदेहे वासे महाकच्छे णामं विजय पण्णते' हे गौतम! नीसवन्त वर्षधर पर्वतनी दक्षिण दिशामां सीता भहानहीनी ઉત્તર દિશામાં પદ્મકૂટ વક્ષસ્કાર પર્યંતની પશ્ચિમ દિશામાં તેમજ ગ્રાહાવતી મહાનદીની पूर्व दिशामां महाविदेह क्षेत्रनी अंडर भडा १२ नामे विनय आवे छे. 'सेसं जहा कच्छविजयस्स जाव महाकच्छे इत्थ देवे महिद्वीए अट्ठो अ भाणियन्वो' शेष, मधु કથન એ સંબંધમાં જેમ કચ્છ વિજય પ્રકરણમાં કહેવામાં આવેલ છે, તેવુ' જ સમજવું જોઇએ. એ વિજયનુ` મહાકચ્છ વિજય એવું જે નામ પ્રસિદ્ધ થયું છે તેનુ કારણ યાવત્ જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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