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________________ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे अथास्य कूटानां वर्णनं चिकीर्षुः संख्यां प्रदर्शयितुमाह- 'चित्तकूडे ' चित्रकूटे 'णं' खलु 'वक्खा' वक्षस्कार पर्वते 'क' कति 'कूडा' कूटानि 'पण्णत्ता' प्रज्ञप्तानि ? इति प्रश्ने भगवानाह - 'गोयमा !' भो गौतम ! ' चत्तारि' चत्वारि 'कूडा' कूटानि 'पण्णत्ता' प्रज्ञप्तानि, 'तं जहा ' तद्यथा 'सिद्धाययणकूडे ' सिद्धायतनकूटम् इदं च द्वितीयस्य चित्रकूटस्य दक्षिणस्यां दिशि १, 'चितकूडे' चित्रकूटम् इदं च सिद्धायतनकूटस्योत्तरदिशि २, 'कच्छ कूडे ' कच्छकूटम् इदं च चित्रकूटस्यास्य उत्तरदिशि ३, 'सुकच्छकूडे ' सुकच्छकूटम् इदं च कच्छकूटा दक्षिणस्यां दिशि, इमानि च सीता महानद्या नीलवद्वर्षवरपर्वतस्य च कस्यां दिशि सन्तीत्याह - 'पढमं प्रथमं सिद्धायतनकूटम् 'सीयाए उत्तरेणं' सीताया उत्तरेण उत्तरदिशि 'उत्थे' चतुर्थ सुकच्छकूटम् 'नीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स' नीलवतो वर्षधर पर्वतस्य 'दाहिणेणं' दक्षिणेन दक्षिणदिशि द्वितीयं चित्रकूटं तु सूत्रोकक्रमबलात् सिद्धायतनान्तरं बोध्यम् तृतीयं कच्छकूटं च सुकच्छात् प्राक् अवसेयं । ३४६ चत्तारि कूडा पण्णत्ता' हे गौतम ! चार कूट कहे गये हैं 'तं जहा' वे इस प्रकार से हैं - 'सिद्धाययणकूडे ' सिद्धायतनकूट - यह द्वितीय चित्रकूट की दक्षिण दिशामें है 'चितकडे' चित्रकूट- यह सिद्धायतनकूट की उत्तर दिशा में है 'कच्छकूडे ' कच्छकूट - यह कच्छकूट चित्रकूट की उत्तर दिशा में है । 'सुकच्छकूडे' और चतुर्थ सुकच्छकूट यह कच्छकूट से दक्षिणदिशा में है । ये सीतामहानदी और नीलवान् वर्षधर पर्वत की किस दिशा में है अब इस बात को सूत्रकार प्रकट करते हैं । 'पढमं सीयाए उत्तरेणं, चउत्थे नीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं' प्रथम जो सिद्धायतनकूट है वह सीता महानदी की उतरदिशा में है। तथा चतुर्थ जो 'सुकच्छकूट है वह नीलवन्त वर्षधर पर्वत की दक्षिण दिशामें द्वितीय चित्रकूट सूत्र क्रम के बल से सिद्धायतनकूट के बाद है तीसरा कच्छकूट सुकच्छकूट के पहिले है । 'एत्थ णं चित्तकूडे णामं देवे महिद्धिए जाव परिवसइ) चित्रकूट जो णं वक्खारपव्वए कइ कूडा पण्णत्ता' हे महंत ! म चित्रट पक्षस्र पर्वत उपर डेंटला टो आवेसा छे? श्वामभां अनुश्री हे छे - 'गोयमा ! चत्तारि कूडा पण्णत्ता' हे गौतम! यार छूटी आवेला छे. 'तं जहा' ते छूटा था प्रमाणे छे-' सिद्धाययणकूडे ' सिद्धायतन छूट या द्वितीय चित्रकूटनी दृक्षिण दिशामा छे. 'चित्तकूडे' चित्रट मे सिद्धायतन छूटनी उत्तर दिशामा छे. 'कच्छकूडे' कु२छछूट-२मा कुछछूट चित्रटनी उत्तर दिशामा छे. 'सुकच्छकूडे' अने यतुर्थ સુકચ્છ ફૂટ એ કકૂટથી દક્ષિણ દિશામાં આવેલ છે. એ સીતા મહાનદી અને નીલવાન્ વघर पर्वर्तनी कुछ दिशा तर आवे छे, ते अगे सूत्रहारे स्पष्टता रे छे- 'पढमं सीयाए उत्तरेणं, चउत्थे नीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं' प्रथम ने सिद्धायतन छूट छे, ते સીતા મહાનદીની ઉત્તર દિશામાં આવેલ છે, તેમજ ચતુર્થાં જે સુકચ્છ ફૂટ છે તે નીલવન્ત વધર પર્વાંતની દક્ષિણ દિશામાં-દ્વિતીય ચિત્રકૂટ સૂત્રેાક્ત ક્રમના બળથી સિદ્ધાયતન ફૂટ पछी यावेस छेत्रीले १२छ छूट छे ते सुकुच्छ छूटनी पहेला छे. 'एत्थ णं चित्तकडे णामं देवे જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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