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________________ प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सू० २३ सुदर्शनाजम्बूवर्णनम् २५९ टीका-'कहि णं भंते !' इत्यादि-'कहि णं भंते ! उत्तरकुराए २ जंबूपेढे णामं पेटे पण्णते' क खलु भदन्त ! उत्तरकुरुषु जम्बूपीठं नाम पीठं प्रज्ञप्तम् ? भगवानाह-'गोयमा! णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दक्खिणेणं' हे गौतम ! नीलवंतो वर्षधरपर्वतस्य दक्षिणेनदक्षिणस्यां दिशि 'मंदरस्स' मन्दरस्य-तनामक पर्वतस्य 'उत्तरेणं' उत्तरेण-उत्तरस्यां दिशि'मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं' माल्यवतो वक्षस्कारपर्वतस्य पश्चिमेनपश्चिमायां दिशि 'सीयाए' सीतायाः-एतन्नाम्न्याः 'महाणईए पुरथिमिल्ले' महानद्याः पौरस्त्ये पूर्व दिग्भवे 'कूले' कूले-तटे-सीताद्विभागी कृतोतरकुरुपूर्वाः तत्रापि मध्यभागे 'एत्थ णं उत्तरकुराए जंबूपेढे णामं पेढे पण्णत्ते' अत्र खलु उत्तरकुरूणां जम्बूपीठं नाम पीठं प्रज्ञप्तम् , अस्य मानाद्याह-'पंच जोयणसया' पञ्च योजनशतानि-तत् पीठं पञ्चशतयोजनानि 'आयामविक्खंभेणं' आयामविष्कम्भेण-दैयविस्ताराभ्यां प्रज्ञप्तम् एवमग्रेऽपि कहिणं भंते ! इत्यादि। ____टीकार्थ-'कहिणं भंते ! उत्तरकुराए कुराए जंबूपेढे णामं पेढे पण्णते' हे भगवन् उत्तरकुरु में जंबूपीठ नामका पीठ कहां पर कहा है ? इस प्रश्र के उत्तर में महावीर प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा ! णीलवंतस्स वासहरपच्चयस्स दक्खिणेणं' हे गौतम! नीलवंत वर्षधर पर्वत के दक्षिण दिशा में 'मंदरस्स' मंदर पर्वत के 'उत्तरेणं' उत्तर दिशाकी ओर 'मालवंतस्स वक्वारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं' माल्यवान् वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम दिशा में 'सीयाए महाणइए पुरथिमिल्ले कूले' सीता महा नदी की पूर्व दिशा के किनार में अर्थात् दो भाग कि गइ सीता महानदी के उत्तर कुरु रूप पूर्वार्द्ध में उसके भी मध्य भाग में 'एत्थ ण उत्तरकुराए जंबूपेढे णाम पेढे पण्णत्ते' यहां पर उत्तर कुरु का जंबू पीठ नामका पीठ कहा है। अब इसका मानादि प्रमाण कहते हैं-पंच जोयणसयाई वह पीठ पांचसौ 'कहि णं भंते' त्यादि टीथ - 'कहि ण भंते ! उत्तरकुराए कुराए जंबूपेढे णामं पेढे पण्णत्ते' ३ लापन उत्तर કુરૂમાં જંબૂ પીઠ નામનું પીઠ કયાં કહેલ છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં મહાવીર પ્રભુશ્રી કહે छ.-'गोयमा ! णीलवंतस्स वासहरपव्वयस्स दक्खिणेणं' हे गौतम ! नlaq २ ५तनी क्षि दिशामा 'मंदरस्स' म २ पतनी 'उतरेणं' उत्तर हशानी त२५ 'मालवंतस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं' माध्यवान् पक्ष४२ पतनी पश्चिम दिशामा 'सीयाए महाणईए पुरथिमिल्ले कूले' सीता महानहीन पू (नारे अर्थात् मेलामा वित थयेट सीता भई। नहीनत२ ३ ३५ पूर्वाभा ना ५९ मध्य लाभ 'एत्थणं उत्तरकुराए जंबूपेढे णामं पेढे पण्णते' त्या उत्त२४३नु 8 नामनुपी हे छ. हवे तेनु मानाति प्रमाण हे छ.-'पंच जोयणसयाई' ते पी8 पांयस योसन જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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