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________________ प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सू०२२ नीलवन्तादिह्रदवर्णनम् २४९ णः-विस्तारयुक्तः, तस्य च 'जहेव यउमदहे' यथैव पदमहदः 'तहेव वणी यवो' तथैव वर्णको नेतव्यः-ग्राह्यः, ‘णाणत' नानात्वं-विशेषश्वायम्-'दोहिं पउमवरवेश्याहिं दोहि य वणसंडेहिं संपरिक्खित्ते' द्वाभ्यां पद्मपरवेदिकाभ्यां द्वाभ्यां च वनषण्डाभ्यां संपरिक्षिप्त:परिवेष्ठितः,-अयं भावः- पद्महदस्तु एकया पद्मवरवेदिकया एकेन च वनषण्डेन सम्परिक्षिप्तः, अयं नीलवान् हृदस्तु द्वाभ्यां२ ताभ्यां सम्परिक्षिप्तः सोतामहानया द्विभागीकृतत्वेन उभयपार्श्ववर्ति वेदिकाद्वययुक्तत्वात् , अत्र 'णीलवंते णामं णागकुमारे देवे' देवश्च नीलवान् नागकुमारः इति विशेपः 'सेसं तं चेव' शेषं तदेव पदमहदोक्तमेव 'णेयच्वं' नेतव्यम्-ग्राह्यम्, पद्मादिकं शेषं पद्म हुदवद्बोध्यम् , तन्मानसंख्या परिक्षेपादिकं च तथैव ।। ___ अथ काश्चनगिरिव्यवस्थामाह-'णीलवंतहहस्स' इत्यादि-'णीलवंत दहस्स पुवावरे' हृदका वर्णन 'जहेव पउमद्दहे' इस कथनानुसार पद्महृद के वर्णन के समान तहेव वण्णो णेयच्वो' उसका वर्णन समझलेवे' 'णाणतं' उसवर्णन एवं इस वर्णन में जो विशेषता है वह इस प्रकार है 'दोहिं पउमवरवेइयाहिं दोहिय वणसंडेहिं संपरिक्खिते' यह हृद दो पद्मवर वेदिका और दो वनषंडसे परिवेष्टित है। कहने का भाव यह है कि पद्महृद एक पद्मवरवेदिका और एक वनषण्ड से परिवेष्टित है तब की यह नीलवंत हृद दो पद्मवर वेदिका एवं दो वनडसे परिवेष्टित है। सीता महानदी का दो भाग करने से दोनों पार्श्ववति दो वेदिका युक्त होने से दो दो कहा है। यहां पर 'नीलवंते नागकुमारेदेवे' नीलवान् नामका नागकुमारदेव है यह विशेष है 'सेसं तं चेव' अन्य सब कथन पद्महृद के समान ही 'णेयचं' कहना चाहिए, पद्मादिक शेष सब कथन पद्महृद के समान ही समझलेवें, उसका मान परिक्षेप आदि भी उसी प्रकार है। पूर्व पश्चिम ६॥ त२५ विस्तारपा छ. ते नु न 'जहेव पउमद्दहे' 2 ४थन प्रमाणे पहना qgन स२ छे. 'तहेव वण्णओ णेयव्वो' तेनु एन सभ : 'णाणतं' थे प न मने मा १ नमारे विशेषता छ ते 21 प्रभावोनी छे. 'दोहिं पउमवरवेइयाहिं दोहिय वणसंडेहिं संपरिक्खित्तो' (१६ मे ५५१२ मन में न था વિટળાયેલ છે. કહેવાને ભાવ એ છે કે પદ્મફુદ એક પદ્મવર વેદિકા એને એક વનપંડથી વીટળાયેલ છે. અને નીલવંત હદ બે પદ્મવર વેદિકા અને બે વનખંડથી વીંટળાયેલ છે, સીતા મહા નદીના બે ભાગ કરવાથી બંને બાજુથી બે વેદિકા યુક્ત હોવાથી બલ્બ કહેલ છે. मडीया 'नीलवंते नाम नागकुमारे देवे' नासवान् नामना नमार है छे. थेट विशेष छ. 'सेसं त चेव' मी तमाम ४थन पटना ४थन सर ४ ‘णेयव्वं' ही લેવું પડ્યાદિક બાકીનું તમામ કથન પદ્ધહુદના સરખું જ સમજી લેવું, તેનું માપ પરિક્ષેપ વિગેરે પણ એજ પ્રમાણે છે. ज० ३२ જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્રા
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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