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प्रकाशिका टीका - चतुर्थवक्षस्कारः सू० २१ यमका राजधान्योर्वर्णनम्
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माओ' सुधर्मे - सुष्टु शोभनो धर्मः - सापराध निरपराध निग्रहानुग्रहलक्षणो राजधर्मो यत्र ते तथा, एतन्नान्यौ 'सहाओ' सभे प्रत्येकमेकैकैति द्वे 'पण्णत्ताओ' प्रज्ञप्ते, तयोर्मानाद्याह- 'अद्धतेरस' इत्यादि 'अद्धतेरसजोयणाई' अर्द्धत्रयोदशयोजनानि 'आयामेणं छस्सकोसाई' आयामेन षट् सक्रोशानि 'जोयणाई' योजनानि 'विक्खंभेणं' विष्कम्भेण विस्तारेण 'णव जोयणाई' उद्धं उच्चतेणं' नव योजनानि ऊर्ध्वमुच्चत्वेन, अनयोर्वर्णकसूत्रमतिदिशति - ग्रन्थलाघवार्थम् 'अगखं भसयस णि विट्ठाओ' अनेकस्तम्भशतसन्निविष्टे इत्यादिपदघटितं तद्वर्णनपरं सूत्रं बोध्यम् एतावताऽपरितुष्यन्नाह - 'सभावण्णओ' इति स च जीवाभिगमोक्तो ग्राह्यः, स चैवम्'अगखं भसयस णि विट्ठाओ अब्भुग्गय सुकयवइरवेड्या तोरणवररइयसालभंजिया सुसिलिडविसिद्धसंठियप सत्थवे रुलियविमलखंभाओ णाणामणिकणगरयणख इय उज्जल बहुसम सुविभत्तइशान (कोण) 'दिसीभाए' दिशा की ओर 'एत्थणं' यहा पर 'जमगाणं देवाणं' यमक देव के 'सुहम्माओ' सुधर्मा नाम की 'सहाओ' दो सभा प्रत्येक की एक एक के क्रम से 'पण्णत्ताओ' कही गई है।
अब सूत्रकार उसका मानादि प्रमाण कहते हैं- 'अद्धतेरस जोयणाई आयामेणं' इसका आयाम - लंबाई साडे बारह योजन की है । 'छ सक्कोसाई जोयणाई विक्खंभेणं' इसकी चोडाई एक कोस अधिक छ योजन की है- 'णव जोयणाई उद्धं उच्चत्तेणं' नव योजन की इनकी ऊंचाई कही है 'अणेग खंभसयसण्णिविहाओ' अनेक स्तंभ शत सन्निविष्ट इत्यादि पद घटित उसका वर्णन समझलेवें ! वह 'सभा वण्णओ' सुधर्मा सभा का वर्णन जीवाभिगम सूत्र में कहे अनुसार ग्रहण कह लेना वहां पर सभा का वर्णन इस प्रकार है 'अणेग खंभसयसन्निविट्ठाओ अब्भुग्गय सुकय वइरवेइयातोरणचररइयसालभंजिया सुसलिड विसि संठिय पसत्थ वेरुलियविमलखंभाओ णाणामणिकणगरयण खड्य उज्जल बहुसमसुविभत्तभूमिभायाओ ईहामिग उसभ तुरगणरमगर विहग हिशानी तर 'एत्थणं' अहीं आगण 'जमगाणं देवाण' यभ हेवनी 'सुहम्माओ' सुधर्भा नामनी 'सहाओ' मे सलामी हरेउनी मे उना उभथी 'पण्णत्ताओं' हे छे.
हवे सूत्रार तेनु मानाहि प्रमाण मतावे छे. - ' अद्धतेरस जोयणाई आयामेनं ' तेना मायाम-समाई साडा भार योजननी छे, 'छ सकोसाई जोयणाई विक्खंभेणं तेनी रहे।जायेगा अधिक छ योनी छे, 'णव जोयणाई उद्ध उच्चत्तेणं' नव योवन भेटला ते Ğया छे. ‘अणेगखंभसयसण्णिविट्ठाओ' भने सेकडो स्तलोथी वोटजायेस त्यिाहि यह युक्त तेनुं वर्णन सभल सेवु ते 'सभा वण्णओ' सुधर्भासलानु वर्णन वालिगभ સૂત્રમાં કહ્યા પ્રમાણે સમજી લેવું જોઇએ. જીવાભિગમસૂત્રમાં સભાનુ વર્ણન આ પ્રમાણે છે.'अणेगखंभसयसन्निविद्वाओ अब्भुग्गय सुकय वइरवेड्या तोरणव ररइयसालभंजिया सुसिलिट्टविसि संठियपसत्थ वेरुलियविमलखंभाओ णाणामणिकणगर यणखइयउज्जल बहुसमसुविभत्त-भूमिभागाओ
જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર