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________________ प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सू०२० उत्तरकुरूस्वरूपनिरूपणम् १९१ 'देवाण' देवयोः यमकारख्यपर्वताधिपत्योः सुरयोः 'सोलसण्हं आयरक्खदेवसाहस्सीण' षोडशानाम् आत्मरक्षकदेवसाहस्रीणां-षोडशसहस्रसंख्यकात्मरक्षकदेवानाम् 'सोलसभदासणसाहस्सीओ' पोडश भद्रासनसाहस्यः-पोडशसहभद्रासनानि, 'पण्णत्ताओ' प्रज्ञप्ताः, अथानयोनामार्थं प्रश्नोत्तराभ्यां वर्णयितुमाह-'से केण हेणं भंते !' इत्यादि-'से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चई' अथ-तदनन्तरं हे भदन्त ! केन अर्थेन कारणेन एवमुच्यते यत् 'जमगा पध्वया' यमको पर्वतौर ? भगवानुत्तरयति-'गोयमा !' हे गौतम ! 'जमगपव्वएसु णं तत्थर' यमक पर्वतयोः खलु तत्र तत्र-तस्मिंस्तस्मिन् 'देसे तहिर' देशे तत्र २ तस्य देशस्यावान्तरे तस्मि स्तस्मिन् प्रदेशे 'खुडूडाखुड्डियासु वावीसु जाव' क्षुद्राक्षुद्रिकासु वापीसु यावत्-यावत्पदेनपुष्करिणीषु, दीपिकासु, गुञ्जालिकासु, सर पक्तिकासु, सरःसर पङ्क्तिकासु' इत्येषां पदानां संग्रहो बोध्यः, तथा 'बिलपंतियासु' बिलपति कासु, एषां पदानां व्याख्या राजप्रश्नीय. सूत्रान्तर्गतचतुष्पष्टितमसूत्रस्य मत्कृतसुबोधिनी टीकातो बोध्या, 'बहवे' बहु मि-पुष्कलानि देवके 'सोलसण्हं आयरक्खदेवसाहस्सीणं' सोलह हजार आत्मरक्षक देवोंके 'सोलस भद्दासणसाहस्सीओ' सोल हजार भद्रासन 'पण्णत्ताओ' कहे गए हैं अब उनके नामकी अन्वर्थता प्रश्नोत्तर द्वारा दिखलाते हैं-'से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चई' हे भगवन् किस कारणसे ऐसा कहा जाता है कि 'यमगपव्वया ! ये यमक नामके पर्वत है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं 'गोयमा !' हे गौतम ! 'जमगपव्वएसुणं तत्थ २' यमक पर्वत के उस उस 'देसे तहिं २' देश एवं प्रदेशमें 'खुड्डाखुड्डियासु वावीसु जाव' क्षुद्राक्षुद्र वाव में यावतू पुष्करिणीमें, दीर्घिकामें गुञालिकामे, सरपंक्तियों में, सरः सरपंक्तियों में 'विलपंतियासु' बिल. पंक्ति में (इन पदों की व्याख्या राजप्रश्नीय सूत्रान्तर्गत ६४ चोसठवें सूत्र की मेरे द्वारा की गई सुबोधिनी नाम की टीका से जानलेवे) 'बहवे' अनेक-पुष्कल 'उप्पलाइं जाव' उत्पल यावत् कुमुद, नलिन, सुभगसौगन्धिक पुंडरीक,-महा यम नामना वना अर्थात् यम पतन स्वामी हेपना 'सोलसण्हं आयरक्खदेवसाहस्सीण' सो ६१२ मात्मरक्ष४ हेवाना 'सोलस भदासणसाहसीओ' साप M२ मद्रासन 'पण्णत्ताओ' ४३पामा मावेला छे. वे प्रश्नोत्तर वा। तेनानामनी साता मताव 2. 'से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चई' इ लगवन् ॥ ४॥२९थी मेम हेपामा भाव 2. -'यमगपव्वया' मा यम नामना पति छ ? २॥ प्रश्न उत्तरमा प्रमुश्री ४३ छ.-'गोयमा!' हे गौतम ! 'जमगपव्वएसु णं तत्थ तत्थ' यम नाम पतन ते ते 'देसे तहिं तहि' देश मने प्रशभा 'खुड्डाखुड्डीयासु बावीसु जाव' नानी नानी पावमायावत् १४२६योम, सिमां, गुगल मामा, स२५तियोमा, स२: स२ पतियोमi. बिलपंतियासु' मिसतियामा मा તમામ પદેને અર્થે રાજપ્રક્ષીય સૂત્રના ૬૪ ચોસઠમાં સૂત્રની મેં કરેલ સુધિની टीम मावामां आवेत छ त। सुमे त्यांथी समझ से. 'बहवे' मने४ 'उप्पलाई જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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