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________________ १३२ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे पुरत्थिमलवणसमुदस्स पच्चत्थिमेणं पच्चत्थिमलवणसमुहस्स पुरथिमेणं एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे णिसहे णामं वासहरपव्यए पण्णत्ते' महाविदेहस्य वर्षस्य दक्षिणेन हरिवर्षस्य उत्तरेण पौरस्त्यलवणसमुद्रस्य पश्चिमेन पश्चिमलवणसमुद्रस्य पौरस्त्येन, अत्र खलु जम्बूद्वीपे द्वीपे निषधो नाम वर्षधरपर्वतः प्रज्ञप्तः, 'पाईणपडीणायए उदीण दाहिण विच्छिण्णे दुहा लवणसमुदं पुढे' प्राचीनप्रतीचीनायतः उदीचीनदक्षिणविस्तीर्णः द्विधा लवणसमुद्रं स्पृष्टः, पुरस्थिमिल्लाए जाव पुढे पच्चस्थिमिल्लाए जाव पुढे' नवरं पौरस्त्यया यावत् यावत्वदेन 'कोटया पौरस्त्यलवणसमुद्रम्' इति सङ्ग्राह्यम् स्पृष्टः स्पृष्टवान् पाश्चात्यया यावत् यावत्पदेन 'कहिणं भंते ! जंबुद्दीवे २ णिसहे णामं वासहरपव्वए' इत्यादि टीकार्थ-गौतमने प्रभु से पूछा है-(कहिणं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे णिसहे णामं वासहरपव्वए पण्णत्ते) हे भदन्त ! इस जम्बुद्वीप नामके द्वीप में निषध नाम का वर्षधर पर्वत कहां पर कहा गया है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गोयमा ! महावि. देहस्स वासस्स दक्खिणेणं हरिवासस्स उत्तरेणं पुरथिमलवणसमुदस्स पच्चत्थि. मेणं, पच्चत्थिमलवणसमुदस्स पुरथिमेणं एत्थणं जंबुद्दीवे दीवे णिसहे णाम वासहरपब्बए पाणत्ते) हे गौतम ! महाविदेह की दक्षिण दिशा में और हरिवर्ष क्षेत्र की उत्तर दिशा में पूर्वदिग्वर्ती लवणसमुद्र की पश्चिमदिशा में एवं पश्चिम दिग्वर्ती लवण समुद्र की पूर्व दिशा में जम्बूद्वीप के भीतर निषध नामका वर्षधर पर्वत कहा गया है। (पाईणपडीणायए) यह पर्वत पूर्व से पश्चिम तक लंबा है (उदीणदाहिणविच्छिण्णे) तथा उत्तर से दक्षिण तक विस्तृत है (दुहालवणसमुदं पुढे) यह अपनी दोनों कोटियों से लवणसमुद्र को छू रहा हैं-(पुरस्थि मिल्लाए जाच पुढे पच्चस्थिमिल्लाए जाव पुढे) पूर्वदिग्वर्ती कोटि से पूर्व दिग्वर्ती लवणसमुद्र को और पश्चिमदिरवर्ती कोटि से पश्चिदिग्वर्ती लवणसमुद्र को छूता 'कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे २ णिसहे णाम वासहरपब्वए' इत्यादि ट -गौतमे प्रभुने प्रश्न ये-'कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे णिसहे णाम वासहरपव्वए पण्णत्ते' हे मत ! ॥ पूदीमा निषध नाम४ १९५२ ५त या स्थणे मावेल छ १ ४ाममा प्रभु ४ छ-'गोयमा ! महाविदेहस्स वासस्स दक्खिणेणं हरिवासस्स उत्तरेणं पुरथिम लवणसमुदस्स पच्चत्थिमेणं पच्चत्थिमलवणसमुदस्स पुरथिमेणं एत्थ ण जंबुदीवे दीवे णिसहे णामं वासहरपव्वए पण्णत्ते' गौतम ! भाविनी दक्षिण दिशामा અને હરિવર્ષ ક્ષેત્રની ઉત્તર દિશામાં પૂર્વ દિગ્વતી લવણુ સમુદ્રની પશ્ચિમ દિશામાં તેમજ પશ્ચિમ દિગ્વતી લવણ સમુદ્રની પૂર્વ દિશામાં જંબુદ્વીપની અંદર નિષધ नाम ध२ ५' आस छे. 'पाईणपडीणायए' थे ५१त पूथी पश्चिम सुधा ain छ. 'उदीण दाहिणवित्थिण्णे' तेभ उत्तरथी क्षिर सुधी विस्तृत छ. 'दुहा लवणसमुदं पुढे' पोतानी मन्ने टिमोथी सव) समुद्रने २५० रहेस छ. 'पुरथिमिल्लाए जाव पुढे पच्चथिमिल्लाए जाव पुढे पूर्व हित थी पूहिवती समुद्र भने જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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