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________________ ११४ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे अच्छा, 'हरिकंता णं महाणई जहि पक्डइ' हरिकान्ता खलु महानदी यत्र प्रपतति, 'एत्थ णं महं एगे हरिकंतप्पवायकुंडे णामं कुंडे पण्णत्ते' अत्र खलु महदेकं हरिकान्ता प्रपातकुण्डं नाम कुण्डं प्रज्ञप्तम् , 'दोण्णि य चत्ताले जोयणसए आयामविक्खंभेणं सत्त य उणटे जोयणसए परिक्खेवेण' चत्वारिंशे चत्वारिंशदधिके द्वे च योजनशते आयामविष्कम्भेण-दैर्घ्यविस्ताराभ्याम् , एकोनषष्टानि-एकोनपष्टयधिकानि सप्तयोजनशतानि परिक्षेपेण, 'अच्छे एवं कुंडवत्तव्वया सव्वा नेयवा जाव तोरणा' अच्छम् एवं कुण्डवकव्यता सर्वा नेतव्या यावत् तोरणाः, 'तस्स णं हरिकंतप्पवायकुडस्स बहुमज्झ देसभाए एत्थ णं महं एगे हरिकंतदीवे णामं दीवे पन्नत्ते' तस्य खलु हरिकान्ता प्रपातकुण्डस्य बहुमध्यदेशभागः, अत्र खलु महान् एको हरिकान्ता द्वीपो नाम द्वीपः प्रज्ञप्तः 'बत्तीसं जोयणाई आयामविक्खंभेणं एगुत्तरं जोयणसयं जैसा आकार होता है वैसा हो इसका आकार है। यह सर्वात्मना रत्नमयी है तथा आकाश और स्फटिक के जैसी निर्मल है। (हरिकंताणं महाणई जहिं पवडइ एत्थ णं महं एगे हरिकंतप्पवायकुंडे णामं कुंडे पण्णत्ते) हरिकान्त नामकी यह महानदी जहां पर गिरती है वहां पर एक विशाल हरिकान्त प्रपातकुण्डनामका कुण्ड है (दोणिय चत्ताले जोयणसए आयामविक्ख भेणं सत्तअउण? जोयणसए परिक्खेवेणं अच्छे एवं कुंडवत्तव्वया सव्वा णेया जाव तोरणा) यह कुण्ड आयाम और विष्कम्भ की अपेक्षा दो सो चालीस योजन का है तथा इसका परिक्षेप ७५९ योजनका है। यह कुण्ड आकाश और स्फटिक के जैसा बिलकुल निर्मल है। यहां पर कुण्ड के सम्बन्ध की पूरीवक्तव्यता तोरण के कथन तक की कहलेनी चाहिये (तस्सणं हरिकंतप्पवायकुंडस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं महं एगे हरिकंतदीवे णामं दीवे प.) उस हरिकान्त प्रपातकुण्ड के ठीक बीच में एक विशाल हरिकान्त द्वीप नामक द्वीप कहा गया है । (बत्तीसं जोयणाई જેટલું છે. ખુલ્લા મુખવાળા મગરનો જે આકાર આવે છે. એ સર્વાત્મના રત્નમયી छ तेम २१॥ अने २३टिवत् सनी निniति छ. 'हरिकताणं महाणई जहिं पवडइ एत्थणं महं एगे हरिकंतप्पवायकुडे णामं कुडे पण्णत्ते' ६२त नाम से महानही न्यi ५७ छ त्यो मे विश २४न्त प्रपात ' नाम४ छ ‘दोण्णिय चत्ताले जोयणसए आयामविक्खंभेणं सत्तअउणद्वे जोयणसए परिक्खेवेणं अच्छे एवं कुडवत्तव्वया सव्वा णेया जाव तोरणा' से 33 मायाम भने मिनी अपेक्षाये पसेयासीस यौन । તેમજ આને પરિક્ષેપ ૭૫૯ જન જેટલું છે. એ કુંડ આકાશ અને સફટિકવત્ એકદમ નિર્મળ છે. અહીં કુંડ સંબંધી પૂરી વક્તવ્યતા તેરણના કથન સુધીની અધ્યાહુત કરી देवीन. 'तस्स णं हरिकंतप्पवा यकुडस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थणं महं एगे हरिकंतदीवे णामं दीवे पण्णत्ते' ते २id प्रपात 3ना ही मध्य भागमा मे पिश हरि. आन्त द्वीप नाम द्वी५ मावत छ. 'बत्तीसं जोयणाई आयामविक्खंभेणं एगुत्तरं जोयणसयं જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006355
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages806
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size51 MB
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