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प्रकाशिका टीका तृ ०३ वक्षस्कारः सू० ३० भरतराज्ञः राज्याभिषेकविषयकनिरूपणम् ९१३
टीका- 'तए णं तस्स' इत्यादि 'तए णं तस्स भरहस्स रण्णो अण्णया कयाइ रज्जधुरं चिंतेमाणस्स इमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था ' ततः खलु तदनन्तरं किल तस्य षट्खण्डाधिपतेर्भरतस्य राज्ञः अन्यदा कदाचिद अन्यस्मिन् कस्मिंश्चित्काले राज्यधुरं राज्यभारं चिन्तयतः अयमेतद्रूपो यावत्समुदपद्यत समुत्पन्नः अत्र यावत्पदात् 'अज्झत्थिए चितिए कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे' एतेषां सङ्ग्रहः तत्र अयमेतद्रूपः स राज्यभारविषयक विचार: 'अज्झत्थिए' आध्यात्मिकः प्रथमम् आत्मनि जातोऽङ्कुर इव तदनु' चितिए' चिन्तितः पुनः पुनः स्मरणरूपः सएव विचारो द्विपत्रित इव समुत्पन्नः २, तदनु 'कप्पिए' कल्पितः व्यवस्थायुक्तः इत्थंरूपेण राज्यभारव्यवस्था करिष्यामीति कार्याकारेण स एव परिणतो विचारः पल्लवित इव जातः ३, तदनु 'पत्थर' प्रार्थितः स एव विचार:
भार को चलाने के सम्बन्ध में विचारमग्न थे तब उन्हें इस प्रकार का संकल्प उत्पन्न हुआ यहां यावत्पद से संकल्प के “अज्झथिए चितिए, कप्पिए, पत्थिए मणोगए संकप्पे" इन विशेषण पदों गृहीत हुए है। इन पदों की व्याख्या इस प्रकार से है - यह संकल्प सर्व प्रथम अङ्कुर के जैसा आत्मा में उत्पन्न हुआ इस कारण इसे आध्यात्मिक कहा गया है. फिर बार २ भरत चकी ने इसे याद किया इसलिये द्विपत्रित अङ्कुर की तरह इसे चिन्तित विशेषण से विशिष्ट किया गया है फिर यही विचार व्यवस्थायुक्त बनगया - मैं इसी प्रकार से राज्य भारकी व्यवस्था करूंगा" इस रूप से वह कार्य के आकार में परिणत हो गया अतः वह कल्पित पद से कहा गया है. इष्टरूप से यह विचार स्वीकृत हो गया इसलिये इसे, 'पत्थिए' पद से अभिहित किया गया है, तथा इसे अभी तक
"तरणं तस्स भरहस्स रण्णो अण्णया कयाइ" इत्यादि सूत्र - ३० ॥
टी अर्थ - (तरणं तस्स भरहस्ल रण्णो अण्णया कयाइ रज्जधुरं चितेमाणस्स इमेयारूये जाव समुपज्जत्था ) ऊ हिवसनी बात छे है न्यारे महाराज पोताना राज्य शासन ચલાવવાના સબંધમાં વિચારમગ્ન હતા. ત્યારે તેમના અન્ત:કરણમાં એ જાતને समुदय उहूलव्यो अडीं यावत् पहथी संमुढपना " अज्झत्थिए चितिए कल्पिए पथिए मनोग संकपे” मे विशेषण होना संग्रह थयोछे, शोभनी व्याख्या या प्रमाणे છે. એ સંકલ્પ સ`પ્રથમ અંકુરની જેમ આત્મામાં ઉભબ્યાએથી આને આધ્યાત્મિક કહેવામાં આવેલછે. પછી ભરત ચક્રીએ આને વારવાર યાદ કર્યા એથી આ દ્વિપત્રિત અ‘કુરની જેમ આને ચિન્તિત વિશેષણથી વિશિષ્ટ કહેવામાં આવેલ છે, પછી એજ વિચાર વ્યવસ્થાયુક્ત ખની ગયા. “હું આ પ્રમાણેજ રાજ્યભારની વ્યવસ્થા કરીશ” એ રૂપમાં એ સંકલ્પ કા' રૂપમાં પરિણત થઇ ગયા એથી એ કલ્પિત પદથી સ્પષ્ટ કરવામાં मावेस छे. छष्ट ३५थी मे विचार स्वीकृत थ गये. मेथी याने 'पस्थिए' पहथी अलिહિત કરવામાં આવેલ છે. તથા આ સંબંધમાં હજી સુધી ચક્રવતી એ ફાઈનેય કહ્યુનથી
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જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર