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________________ ८४७ प्रकाशिका टीका तृ०३वक्षस्कारःसू०२७ दक्षियर्द्धगतभरतकायेवर्णनम् पट्टविही णाडगविही कव्वस्स य चउब्विहस्स उप्पत्ती । संखे महाणिहिंमी तुडिअंगाणं च सव्वेसि ॥९॥ चक्कट्ठ पइट्ठाणा अठुस्सेहाय णव य विक्खंभा । बारस दीहा मंजूससंठिआ जण्हवीइ मुहे ॥१०॥ वेरुलिअ मणि कवाडा कणगमया विविहिरयणपडिपुण्णा । ससिसुरचक्कलक्खण अणुसम वयणोववत्ती वा ॥११॥ पलिओवमट्टिईआ णिहि सरिणामा य तत्थ खलु देवा । जेसिं ते आवासा अश्किज्जा आहि वच्चाय ॥१२॥ एए णव णिहि रयणा पभूय धणरयण संचय समिद्धा । जेव समुपगच्छंति भरहाविव चक्कवट्टीणं ॥१३॥ तएणं से भरहे राया अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ एवं मज्जणघरपवेसो जाव सेणिपसेणि सहा वणया जाव गिहिरयणाणं अट्ठाहियं महामहिम करेइ, तएणं से भरहे राया णिहिरयणाणं अठाहियाए महामहिमाए णिव्वत्ताए समाणीए सुसेणं सेणावइरयणं सदावेइ, सदावित्ता एवं वयासी गच्छण्णं भो देवाणुप्पि या ! गंगा महाणईए पुरथिमिल्लं णिक्खुडं दुच्चंपि सगंगासागागिरिमेरागं समविसमणिक्खुडाणि य ओअवेहि ओअवित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहित्ति । तएणं से सुसेणे तंचेव पुववणियं भाणियव्वं जावओअवित्ता तमाणत्तिय पच्चप्पिणइ पडिविसज्जेइ जाव भोगभोगाइं भुजमाणे विहरइ। तएणं से दिव्वे चक्करयणे अन्नया कयाइ आउह घरसालाओ पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे जक्खसहस्स संपरिवुडे दिवतुडिय जाव आपूरते चेव विजयवंधावार णिवेसे मज्झं मुज्झेणं णिग्गच्छइ, दाहिणपच्चत्थिमं दिसि विणीयं रायहाणि अभिमुहे पयाए यावि होत्था। तएणं भरहे राया जाव पासइ पसित्ताहठ्ठतुट्ठ जाव कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ सद्दावित्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! आभिसेक्कं जाव पच्चप्पिणंति ॥ सू०२७॥ જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
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