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________________ ८३८ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे यावत् खण्डप्रपातगुहाया मागच्छतीति पिण्डार्थः, ततः यत्रैव खण्डप्रपातगुहा तत्रैव उपागच्छति 'उवागच्छिता' उपागत्य 'सव्वा कयमालकवतव्वया णेयव्वा' सर्वा कृतमालवक्तव्यता तमिस्त्रागुहाधिपसुरवक्तव्यता नेतव्या ज्ञातव्या 'णवरं णट्टमालगे देवे पीइदाणं सेआलंकारियभंड कडगाणि य सेसं सव्वं तहेब जाव अढाहियमहामहिमा' नवरम् अयं विशेषः नाट यमालको देवः प्रीतिदानं 'से' तस्य अलंकारिकमाण्डम् आभरणभ्रतभाजनम्, पटकानि च शेषम् उक्तविशेषातिरिक्तं सर्वम् तथैव पूर्ववदेव सत्कारसन्मानादिकं कृतमालदेवतावद् वक्तव्यम् यावदष्टाहिका महामहिमेति 'तएणं से भरहे राया णहमालगस्स देवस्स अट्ठाहियाए महिमाए णिव्यत्ताए समाणोए मुसेणं सेणावई सदावेइ' ततः खलु स भरतो राजा नाट्यमालकस्य देवस्य अष्टाहिकायां महामहिमायां निवृत्तायां परिपूर्णायां सत्यां सुषेणं सेनापति शब्दयति आह्वयति 'सदायित्ता' शब्दजैसा कहा गया है वैसा ही यहां पर संगृहीत हुआ है (उवागच्छित्ता सव्वा कयमालगवतव्वया णेयव्वा णवरि णहमालगे देवे पीइदाणं से आलंकारियभंड कडगाणि य सेसं सव्वं तहेव अद्राहिया महा महिमा)वहां पहुंचकर उसने जो कार्य वहां पर किया वह कृतमालक देव की वक्तव्यता में जैसा कहा गया है वैसा हो यहांपर जानना चाहिये, कृतमालक देव तमिस्त्रा गुहा का अधिपति देव है. उस वक्तव्यता में और इस वक्तव्यता में यदिकोई अन्तर है. तो वह ऐसा है कि नाटयमालक देवने भरतके लिये प्रोति दान में आभरणों से भरा हुआ भाजन और कटकदिये इससे अतिरिक्त और सब अवशिष्ट कथन सत्कारसन्मान आदि करने का कृतमालक देव की तरह से ही आठदिन तक महामहोत्सव करने तक का है. (तएणं से भर हेराया णट्टमालगस्स देवस्स अट्राहिआए महिमाए णिवत्ताए समाणीए सुसेणं सेणावई सद्द।वेइ) जब नाट्य मालक देव के विजयोपलक्ष्य में कृत आठ दिन का महोत्सव समाप्त हो चुका तव भरत महाराजा ने अपने सुषेण सेनापति को बुलाया (सदावित्ता जाव सिंधुगमो गेयव्यो' बुलाकर उसने जो उससे कहा वह सब सिंधुनदी के प्रकरण सावा. प्रमाणे मात्र ५९५ सगडीत थये। छे. (उवागच्छित्ता सव्वा कयमालगवतव्वया यध्वा णवरि णमालगे देवे पीइदाणं से अलंकारियभंड़ कडगाणिय सेस सव्वं तहेव अट्ठाहिया महामहिमा) त्यां पांयी तो त्या ४ ते विषेतमाल દેવની વક્તવ્યતા પાં જેમ વર્ણવવામાં આવેલ છે તેમ અહીં પણ જાણી લેવું જોઈએ. કૃતમાલક દેવ તમિસ્રા ગુહાને અધિપતિ દેવ છે. તે વકતવ્યતામાં અને આ વક્તવ્યતામાં તકાવત આટલો જ છે કે નાયમાલક દેવે ભરત મહારાજા માટે પ્રીતિદાનમાં આભરણ થી પરિત ભાજન અને કટકો આપ્યા. એના સિવાયનું શેષ બધું કથન સત્કાર, સન્માન વગેરે કરવા અંગેનું કૃતમાલક દેવની જેમ જ આઠ દિવસ સુધી મહામહોત્સવ કરવા સુધીનું છે. (तएणं से भरहे राया णट्ठमालगस्स देवस्स अट्ठाहिआए महिमाप णिवत्ताए समाणीए सुसेणं सेणावइं सदावेइ) पारे नद५ भावना विया५४३यमा आयोजित म सि संघाना મહોત્સવ સંપૂર્ણ થઈ ચૂફર્યો ત્યારે ભારત રાજાએ પોતાના સુષેણ નામક સેનાપતિ ને લા. व्या. (सहावित्ता जाव सिंधुगमो व्वो) मातापी न तो रे ते सेनापति ने उर्जा ते જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્રા
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
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