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प्रकाशिका टीका तृ ० वक्षस्कारः सू० १९ आपात चिलायानां देवोपासनादिकम्
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पगच्छंति परस्परं साक्षीकृत्य प्रतिज्ञातं कार्यमवश्यं कर्त्तव्यमिति दृढी भवतीत्यर्थः 'षड सुत्ता' प्रतिश्रुत्य अभ्युपगत्य 'ताए विकट्ठाए तुरिआए जाव वोतिवयमाणा वीतिवयमाणा जेणेव जंबुद्दीवे दीवे उत्तर भरहेवा से जेणेव सिंधू महाणई जेणेव आवाडचिलाया तेणेव उवागच्छति' तेदेवास्तया उत्कृष्टया त्वरितया यावत् चपल्या चण्डया सिंहया दिव्यया देवगत्या व्यतिव्रजन्तो यत्रैव जम्बूद्वीपो द्वीपो यत्रैव उत्तरभरतार्द्ध वर्षे यत्रैव सिन्धुमहानदी यत्रैव चापातकिराताः तत्रैवोपागच्छंति 'उवागच्छित्ता' उपागत्य 'अंतलिक्खपडवणा सखिखिणियाई पंचवण्णाई वत्थाई पवरपरिहिया ते आवाड चिलाए एवंवयासी' अंतरिक्षप्रतिपन्ना आकाशमार्गावलम्बिनः सकिकिणीकानि पञ्चवर्णानि शुक्लनीलादि पञ्चवर्णयुक्तानि वस्त्राणि प्रवराणि परिहिताः सन्तः तान् आपातकिरातान् एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादिषुः उक्तवन्तः, किमुक्तवन्त इत्याह 'हंभो' इत्यादि 'हंभो आवाडचिलाया ! जणं तुब्भे देवाणुपिया ! वालुयासंथारोवगया उत्ताणगा अवसणा अट्टमभत्तिया• अम्हे कर्तव्य है. कि अब हमलोग उन आपातकिरातों के पास चलें इस प्रकार से आपस में विचार करके उनलोगों ने उनके पास आने का निश्चय कर लिया (पडिसुणेता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए जाव वीइवयमाणा-वीइवयमाणा जेणेव आवाडचिलाया तेणेव उवागच्छति ) पूर्वोक्तरूप से निश्चय करके फिर वे उस उत्कृष्ट त्वरित दिव्य देवगति से चलते २ जहाँ पर जम्बूद्वीप नाम का द्वीप था और उसमें भो जहां पर उत्तरार्द्ध भरत क्षेत्र था और उसमें भी जहां पर सिंधु नाम को महानदी थी वहां पर आये ( उवागच्छित्ता अतलिक्ख पडिवन्ना सखिखिनियाई पंचवण्णाई वत्थाई पवरपरिहिया ते आवाडचिलाए एवं वयासी ) वहां आकर के नोचे नहीं उतरे किन्तु आकाश में ही रहे और वहीं से उन्होंने जोकि क्षुद्र घंटिआओं से युक्त श्रेष्ठ वस्त्रों को अच्छी तरह से अपने-२ शरीर पर धारण किये हुए हैं उन आपातकिरातों से ऐसा कहा - (हं भो ! आवाडचिलाया ! जण्णं तुब्भे देवाणुपिया वालुयासंथारोवगया उत्ताणगा अवसणा अट्ठमभत्तिया अम्हे कुलदेवए मेहमुहे णागकुमारे देवे मणसी करेमाणा - २ चिट्ठह ) हे आपातकिरातों ! जो तुम लोग देवानुप्रिय वालुका निर्मित संथारो के ऊपर नग्न સવે તે આપાત કરાતા પાસે જઇએ આ પ્રમાણે પરસ્પર વિચાર કરીને તેમણે તેમની પાસે भवान। निश्चय पूरी सीधे (पडिसुणेता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए जाव वोइवयमाणा २ जेणेव जंबुद्दीवे दीवे उतरद्धभर हे वासे जेणेव सिंधू महाणई जेणेव आवाडचिलाया तेणेव उपागच्छति या प्रमाणे निश्चय नेपछी ते सर्वे उत्कृष्ट त्वरित यावत् हिव्य देवગતિથી ચાલતા-ચાલતા જ્યાં જમૂદ્રીપ હતા અને તેમાં પણ જ્યાં ઉત્તરાદ્ધ ભરતક્ષેત્રહતુ मने तेमां पशु नयां सिधु नाम महानही ती त्यां याव्या. ( उवागच्छित्ता अन्तलिक्ख पन्ना सखिखिणियाई पंचवण्णाई वत्थाई पवरपरिहिया ते आवाडचिलाए एवं वयासी ત્યાં પહેાંચીને તેએ નીચે નહિ ઉતરતા આકાશમાં જ સ્થિર રહ્યા. અને ત્યાંથી જ તેમણે કે જેમણે ક્ષુદ્રઘટિકાઓથી યુક્ત શ્રેષ્ઠવàાને સારી રીતે પેાતાનાં શરીર ઉપર ધારણ કરી राया छे वा नागकुमारहेवेथे ते भाषात तिने या प्रभा (हं भो ! आवा
જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર