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________________ ७६४ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे विकलाः सर्वतो बलवर्जितत्वात् अबला:- शारीरिकशक्तिविकलाः अवीर्या:- वीर्यरहिताः आत्मसमुत्पन्नोल्लासवर्जितत्वात् , अपुरुषपराक्रमाः-पुरुषकारपराक्रमरहिता:सर्वसाधनवजितत्वात् अधारणीयं धारयितुमशक्यं परबलमिति शत्रुसैन्योग्ने स्थानुमसमर्था इति कृत्वा अनेकानि योजनानि अयक्रामन्ति पलायन्ते ततः किं कुर्वन्ति इत्याह-'अवक्कमित्ता' इत्यादि। 'अवकमित्ता' अपक्रम्य पलायित्वा 'एगयो मिलायंति' एकतः-एकस्मिन्स्थाने मेलयन्तिएकत्रो भवन्ति, 'मिलाएत्ता' मेलयित्वा-एकत्रीभूय 'जेणेव सिंधू महाणई तेणेव उवागच्छंति' यत्रैव खिन्धुर्महानदी तत्रैव उपागच्छन्ति 'उवागच्छित्ता' उपागत्य 'वालुया संथारए संथरेंति' वालुकासंस्थारकान् संस्तृणन्ति सिकतामयान् संस्तारकान् कुर्वन्ति 'संथरित्ता' संस्तीर्य 'वालुयासंथारए दुरूहंति' वालुकासंस्तारकान् दूरोहन्ति आरोहन्ति उपविशन्ति 'दुरुहित्ता' दूरूह्य आरूह्य उपविश्य 'अट्ठमभत्ताइं पगिण्हंति' अष्टमभक्तानि प्रगृह्णन्ति, 'पगिण्हित्ता' प्रगृह्य 'वालुयासंथारोवगया उत्ताणगा अवसणा अट्ठमभत्तिा ' वालुकासंस्तारोपगताः प्राप्तवालुकासंस्ताराः उत्तानकाः ऊर्ध्वमुखशायिनः अवसना:-नग्नाः वस्त्ररहिताः परमातापनाकष्ठमनुभवन्त इत्यर्थः, अष्टमभक्तिकाः दिनत्रयमनाहारिणः ये आपातकिराताः शिर तक उठा सके, वे बिलकूल शारीरिक शक्ति से हीन हो गये थे। ईसलिये उनसे आत्म समुत्पन्न उल्लास विदाले चुका था, सर्वसाधनों से वर्जित हो जाने के कारण वे पुरुषकार और पराक्रम से इकदम रहित हो चुके थे। और परबल का सामना करना अब सर्वथा अशक्य है इस झ्याल से वे अनेक योजनों तक दूर भाग गये थे । ( अवक्कमित्ता एगयो मिलायति ) भागकर फिर वे एक स्थान पर एकत्रित हुए ( मिलाएत्ता जेणेव सिंधु महाणई तेणेव उवागच्छंति ) और एकत्रित होकर फिर वे सबके सब जहां पर सिन्धु महानदो थी वहां पर आये । (उवागच्छित्ता वालुआसंथारए संथरेंति) वहां आकरके उन्होंने सिकतामय संतारकों को किया, ( संथरित्ता बालुया संथारए दुरूहंति ) सिकतामय संथारकों को करके फिर वे सबके सब अपने बालुकामय संथारों के ऊपर बैठ गये ( दुरूहित्ता अदममत्ताई पगिण्हंति ) बैठकर वहां पर उन्होंने अष्टम भक्त को तपस्या धारण करली । ( पगिण्डित्ता સામે તેઓ માથું ઊંચું કરી શકે. તેમની શારીરિક શક્તિ સંપૂર્ણ પણે નાશ પામી હતી. એથી તેમના થી આત્મસમુત્પન્ન ઉલ્લાસ સમાપ્ત થઈ ચૂક્યો હતો. સર્વસાધનથી વર્જિત થઈ જવાથી તે એ પુરુષકાર અને પરાક્રમથી સાવ રહિત થઈ ચૂક્યા હતા પરબળ સામે લડવું હવે સર્વથા અશકય છે એ વિચારથી તેઓ અનેક ચીજનો સુધી હર નાસી ગયા हता. (अवनमित्ता एगयओ मिलायंति) नासीन पछी तमा स्थान से गया (मिलाएत्ता जेणेव सिंधु महाणइ तेणेव उवागच्छंति) भने ४ ४ने पछी तमासा ri सिन्धु महानही ती त्यो माया. (उवागच्छित्ता वालु आसंथारए संथरेति) त्यां पाहायीन तमाशे पादुमय सस्तार बनाया. (संधरित्ता वालुया संथारए दुरूहति) पादु કામય સસ્તારકને બતાવીને પછી તેઓ સર્વે પોત પોતાના વાલુકામય સસ્તારકે ઉપર બેસી गया. (दुरूहित्ता अट्टममत्ताई पणिहति) मेसात त्या तमो मटम सतनी तपस्या धारा 30. (पण्हित्ता बालुयासंथारोवगया उत्ताणगा अवसणा अट्ठमभत्तिया जे ते सिं कुलदेवयां જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
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