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________________ waanwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे खण्डितम् , उत्तरस्यां दिशि खण्डत्रयं दक्षिणस्यां दिशि च खण्डत्रयमिति षड्धा खण्डितमिति भावः । इदं च भरतक्षेत्रम् जम्बू द्वीपस्यैकदेशभूतं तदिदम् आयामविष्कम्भतो जम्बू द्विपस्य कतितमे भागे भवति ? इति जिज्ञासानिवृत्त्यर्थमाह-'जंबु दीव दीवणउयसयभागे, इत्यादि । तदिदं भरतक्षेत्र 'जंबुद्दीव दीवणउयसयभागे' जम्बूद्वीप द्वीप नवतिशतभागे-जम्बूद्विपनामको यो द्वीपस्तस्य यो नवति शतभागो-नवत्यधिकैकशततमो भागस्तत्र वर्तते, जम्बूद्वीपापेक्षया आयामविष्कम्भेणेदं नवत्यधिकैकशतभागतो न्यूनमिति भावः । ननु जम्बूद्वीपापेक्षया भरतक्षेत्रं नवत्यधिकैकशतभागतो न्यूनमिति पर्यवसितं, तर्हि भरतक्षेत्रस्यायाम विष्कम्भतः प्रमाण कियद् भवति ? इति जिज्ञासायामाह-'पंचछब्बीसे', इत्यादि । इदं भरतक्षेत्रं 'पंच छन्वीसे' पञ्चषइविंशं 'जोयणसए' योजनशतम्-पइविंशत्यधिकानि एकशतयोजनानि वाला हो गया है. इसका विस्तार ५२६ ६/१९ योजन प्रमाण है. अर्थात् जम्बूद्वीप कि जिसका विष्कम्भ १ एक लाख योजन का है उसके १९० टुकड़े करने पर भरत क्षेत्र का विस्तार १९० वां टुकडा के रूप में आता है. और वह १९० वां टुकडा ५२६ ६/१९ रूप पड़ता है. यह इस प्रकार से समझना चाहिए जम्बूद्वीप लम्बाई चौड़ाई में १ लाख योजन का कहा गया, १ एक लाख में १९० का भाग देने पर ५२६ आते हैं और नीचे ६० बचते हैं, अब ६० को १० से भाजित करने पर ६ आते हैं, भाजक राशी जो १९० है उसे भी १० दस से भाजित करनेपर १९आते हैं। इस तरह करने से "पंच छवीसे जोयणसए छच्च एगूणवीसइभाए जोयणस्स,' यह सूत्रकार का कथन स्पष्ट हो जाता है । ___ शंका--जम्बुद्वीप के १९० वे भागरूप यह भरत क्षेत्र है इसमें युक्ति क्या है-सुनो-इस विषय में युक्ति यह है-भरत क्षेत्र का १ एक भाग है इसकी अपेक्षा द्विगुणित विस्तारवाला होने से हिमवत् पर्वत के दो भाग है, इसक्रम से पूर्व पूर्व की अपेक्षा दूने २ विस्तारे वाले છે. આ વિસ્તાર પર૬ ૬/૧૯ જન પ્રમાણ છે. એટલે કે જંબુદ્વીપ કે જેને વિષ્ક 1 લાખ જન જેટલું છે તેના ૧૯૦ કકડા કરવા થી ભરત ક્ષેત્ર ને વિસ્તાર ૧૯૦ મા કકડા જેટલે થાય છે. અને તે ૧૯૦ મે કકડે પર૬ ૬/૧૯ જેટલો થાય છે. જે બૂદ્વીપ લંબાઈ ચેડાઈમાં ૧ લાખ જન પ્રમાણ છે. ૧ લાખમાં ૧૯૦ ને ભાગાકાર કરવાથી પ૨૬ આવે છે અને શેષ ૬૦ વધે છે. હવે ૬૦ ને ૧૦ ભાજિત કરીએ તે ૬ આવે છે. ભાજક રાશિ જે १८० छ तेने ५ १० लित शत १८ मावे छे. २॥ प्रमाणे ४२वाथी "पंचछब्बीसे जोयणसए छच्च एगूण वीसइभाए जोयणस्स" मा सूत्रा२ नु' ४थन २५ट थ य छे. શંકા-જબૂદ્વીપના ૧૯૦ મા ભાગ રૂપે આ ભરતક્ષેત્ર છે. આમાં યુકિત શી છે ? સાંભળો આ સંબંધમાં યુકિત આ પ્રમાણે છે કે ભરતક્ષેત્રનો ૧ ભાગ છે, તેની અપેક્ષા દ્વિગુણિત વિસ્તારવાળે હોવાથી હિમવત્ પર્વતના બે ભાગ છે. આ કમથી પૂર્વની અપેક્ષા બમણા જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
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