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________________ प्रकाशिका टीका तृ० वक्षस्कारः सू० १३ सुषेणसेनापतेर्विजयवर्णनम् ६७१ 'farerna भो देवापिया ! आभिसेवक हत्थिरयणं पडिकप्पेह' क्षिप्रमेव भो देवानुप्रियाः ! आभिषेक्यम् अभिषेकयोग्यं हस्तिरत्नं प्रधान हस्तिनं प्रतिकल्पयत सज्जीकुरुत ' हयगयरहपवर जाव चउरंगिणं सेण्णं सण्णा हेह' हयगजरथप्रवर यावत् पदात् योधकलितां चातुरङ्गिणीं सेनां सन्नाहयत सन्नद्धां कुरुत 'चिकट्टु' इतिकृत्वा 'जेणेव सज्जणघरे तेणेव उवागच्छ इ' यत्रैव मज्जनगृहं स्नानगृहं तत्रैव उपागच्छति 'आगच्छित्ता' उपागत्य 'मज्जणघरं अणुपवस' मज्जनगृहम् अनुप्रविशति 'अणुपविसित्ता' अनुप्रविश्य 'व्हाए' स्नातः 'areena' कृतबलिकर्मा - कृतं बलिकर्म येन स तथा वायसादिभ्यो दत्तान्नभागः 'कयकोउयमंगलपायच्छते कृतकौतुकमङ्गलप्रायश्चित्तः - कृतं कौतुकेन कुतूहलेन मङ्गलं पापशान्त्यर्थे प्रायश्चित्तं च येन स तथा 'सन्नद्धं शरीरारोपणात् बद्धं कसाबन्धनतः व लोह कत्तलादिरूपं सञ्जातमस्येति वर्मितम् एतादृशं कवचं तनुत्राणं यस्य स तथा, पुनश्च कीदृशः सुषेण: 'उपपीलिय सरासणपट्टिए' उत्पीडितशरासन पट्टिक: उत्पीडिता - गाढं गुणारोपणाद् ऐसा कहा - ( खिप्पामेव भो देवाणुविया ! आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिक पेह) हे देवानुप्रियो ! तुम लोग बहुत ही शीघ्र अभिषेक योग्य प्रधान हस्ती को सज्जित करो ( हयगय रहपवर जाव चउरंगिण सेण्णं सण्णा हेह) तथा हय, गज रथ, प्रवर, पदाति जनों से युक्त चतुरंगिणी सेना को सज्जित करो (इति कट्टु जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ ऐसा आदेश अपने कौटुम्बिक पुरुषों की देकर वह जहां पर स्नान गृह था वहां पर आगया (अणुपविसित्ता हाए कयबलिकम्मे ) वहां पर आकर के उसने स्नान किया और वलिकर्म किया काक आदिकों के लिये अन्न का वितरण किया ( कयकोउय मंगलपायच्छित्ते ) कौतूहल से मंगल और दुस्वप्न शान्त्यर्थ प्रायश्चित किया (ease वम्मिय कवए) शरीर पर आरोपण कर के वर्मितलीह के मोटे २ तारों से निर्मित हुए कवच को कसा बन्धन से बांधा खूब - जकड़ कर शरीर पर बन्धन से बद्ध कर पहिरा (उप्पीलिय सरासणपट्टिए) धनुष पर बहुत ही मजबूती के साथ प्रत्यञ्चा का आरोपण पुरिसे सदावे) त्या भावाने ले सुरेश पोताना दुजिङ पुरुषाने मोलाच्या ( सदावित्ता एवं वयासी) साने पछी ते सुषेणे तेभने मामा - खिप्पामेव भो देवाणुपिया ! अभिसेक्क हत्थरयणं पडिकप्पेह ) हे देवानुप्रियो ! तसे बोडो हम शीघ्र अलिषे योग्य प्रधान हस्तिने सुषक्ति । ( हयगय रहपवर जाव चउरंगिणं सेण्णं सण्णा) ते हय, गन, रथ, अवर पहाति बनोथी युक्त खेवी यतुरंगीली सेना ४। (इतिकटु जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ) पोताना भेटु भिड पुरुषाने येथे। आदेश यायीने ते ज्यां स्नान गृह हेतु त्यां भावी गये. (अणुपचिसित्ता पहाए कयवलकम्मे ) ત્યાં આવીને તેણે સ્નાન કર્યુ અને લિકમ કર્યું' કાક વગેરે માટે અન્નનુ વિતરણ કર્યુ ( कयक जयमंगलपाय च्छित्ते ) ौतूहलथी मंगल भने दुस्वरन शान्त्यर्थं प्रायश्चित 5. ( सन्नद्धवद्ध वम्मिय कवए) शरीर पर आरोप ने पति बोना मोटा मोटा તારાથી નિર્મિત કચને કથા અધનથી આખદ્ધ કયુ એટલે કે એકદમ મજબૂતીથી श्र्वयने सांध्यु ( उदपीलिय सरासणपट्टिए) धनुष्य उचर यूमन मन्यूतीया अत्यंयानु જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
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