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________________ ६३८ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे चातुर्धण्टम् अश्वरथम् आरूढः सन् शेषं तथैवेति वचनात् 'हयगयरहपवरजोहकलियाए सद्धि संपरिबुडे महया भडचडगरपहगरवंदपरिक्खित्ते चक्करयणदेसियमग्गे अणेग रायवरसहस्साणुयायमग्गे महया उक्किट सीहणायबोलकलकलवेणं पक्खुभिय महासमुद्दरवभूयं पिव करेमाणे' इत्यन्तं ग्राह्यम् हयगजरथप्रवरयोधकलितया सार्द्ध संपरिवृतः महाविस्तारवत्समूहवृन्दपरिक्षिप्तः चक्ररत्नादेशितमार्गः अनेकराजवरसहस्त्राणुयातमार्गः महता उत्कृष्ट सिहनाद बोलकलकलरवेण प्रक्षुभितमहासमुद्ररवभूतमिव कुर्वन् कुर्वन् 'दाहिणाभिमुहे वरदामतित्थेणं लवणसमुदं ओगाहइ' दाक्षिणात्यभिमुखो वरदामतीर्थेण-वरदामनाम्नाऽवतरणमार्गेण लवणसमुद्रमवगाहते प्रविशति किय९रं लवणसमुद्रमवगाहते इत्याह -'जाव से रहवरस्स कुप्परा उल्ला' यावत् तस्य रथवरस्य कूर्परौ--कूपराकारौ रथावयवौ आद्रौं स्याताम् आद्रीभूतौ भवेताम् 'जाव पीइदाणं से' यावत् प्रीतिदानं तस्य वरदामतीर्थाधियदेवस्य अत्रापि यावत् पदात् मागधदेवसाधनाधिकारोक्तं प्रीतिदानपर्यतं सूत्रं ग्राह्यम् विलोकनीयं च अत्रैव तृतीय वक्षस्कारे ६-७ सूत्रे चढा. "लोयविस्सुयजसो" यह भरतचक्री का विशेषण है और इसका अर्थ लोक में जिसका यश विख्यात है ऐसा है 'पोसहिए" यह भो भरत चक्री का विशेषण है और इसका अर्थ पौषधवत को पारणा किये जिसे विशेष समय नहीं हुआ है ऐसा है। "तएणं से भरहे राया" इत्यादि- जब भरत महाराजा अश्वरथ पर बैठ चुके-तब वे "हयगयरहपवरजोहकलियाए सद्धिं संपरिवुडे महया भडचडगर पहगरवंदपरिक्खित्ते चक्करयणदेसियमग्गे, अणेगराजन्यवर सहस्साणुयायमग्गे, महया, उक्किटू सीहणाय बोलकलकलरवेणं पक्खुभिय महासमुदरवभूयंपिव करेमाणे२" इस पूर्वेकथित पाठ के अनुसार दक्षिणदिशा की ओर मुंह किये हुए वरदाम नाम के अवतरण मार्ग से होकर लवण समुद्र में उतरे (जाव से रह वरस्स कुप्परा उल्ला) यावत् उनके उस रथ के कूपराकारवाले रथावयव ही गीले हो पाये इतनी दर तक ही वे उस लवण समुद्र में गये (जाव पीइदाणं से) यावत् वहां पर यावत्पद से मागध લાભ એ નામથી પ્રસિદ્ધ તેમજ સર્વાવયવ યુક્ત એવા તે ચાર ઘંટાએથી મંડિત રથ ઉપર सवार था. "लोयविस्सुयजसो" से मरतयी भार प्रयुत विशेष छ. सन ने। अछे सध्यात. 'पोसहिए' से ५५ लरतयी माटे प्रयुत विशेषण छ, भने से विशेष शहना म छ-२२ पौषध प्रतनी पा२५ पछी अपि समय थयो नथी. 'तपणं से મતે ' ઈત્યાદિ, જ્યારે તે ભરત રાજા અશ્વરથ ઉપર સવાર થઈ ગયો ત્યારે તેઓ (हयगयरहपवरजोहकलियाए सद्धि संपरिवुडे महया भडचडगरपहारवंदपरिक्खित्ते चक्कायणदेसियमग्गे अणेगराजन्यबरसहस्साणुयायमग्गे महया उक्किह सीहणाय बोलकलकलरवेणं पक्खु भयमहासमुदश्वभूयं विव करेमाणे) से पूर्व प्रथित पाठ भु क्षिण દિશા તરફ મુખ કરીને વરદામ નામક અવતરણ માર્ગથી પસાર થઈને લવણ સમુદ્રમાં પ્રવિષ્ટ यया. जाव से रहवरस्स कुप्परा उल्ला यावत् तमना २२५२१४१२ पापा २थायवार लीना यया थेटले १२ सुधामय सुभद्रमा गया (जाव पीइदाणं से ) यावत् त्यो तेमणे જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્રા
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
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