SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 618
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६०६ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे वत स्नानविध्यनन्तरं धवलमहामेधान्निर्गच्छन चन्द्र इव सुधाधवलीकृत्तमज्जनगृहात् प्रियदर्शनः स भरतः चक्री निर्गच्छतीतिभावः 'परिणिक्खमित्ता' पतिनिष्क्रम्य निर्गत्य 'जेणेय भोयणमंडवे तेणेव उवागच्छइ' यत्रैव भोजनमण्डपस्तत्रैवोपागच्छति 'उवागच्छित्ता' उपागत्य 'भोयणमंडवंसि सहासणवरगए अट्ठमभत्तं पारेइ' भोजनमण्डपे सुखासनवरगतः सन् अष्टमभक्तं पारयति उपवासत्रयानन्तरं पारणां करोतीत्यर्थः 'पारित्ता' पारयित्वा पारणां कृत्वा 'भोयणमंडवाओ पडिणिक्खमइ' भोजनमण्डपात प्रतिनिष्क्रामति 'पडिणिक्खमित्ता' प्रतिनिष्क्रम्य निर्गत्य 'जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छई' यत्रैव याह्या उपस्थानशाला यत्रैव सिंहासनं तत्रैवोपागच्छति 'उवागच्छित्ता' उपागत्य ‘सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे णिसीअइ' सिंहासनवरगतः पौरस्त्याभिमुखः पूर्वाभिमुखः निषीदति उपविशति ‘णिसीइत्ता' निषद्य उपविश्य 'अट्ठारस सेणिप्पसेणोओ सदावेइ' अष्टादश श्रेणि प्रश्रेणी: शब्दयति आह्वयति सहावित्ता' शब्दयित्वा आय ‘एवं वयासी' एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादीत् उक्तवान् अथ किमवादीत् इत्याहजैसे प्रिय दर्शन वाला वह भरत राजा उस सुधाधवलो कृत स्नान घर से बाहर आया । (पडिणिक्खमित्ता जेणेव भोयणमंडवे तेणेव उवागच्छइ ) स्नान घर से बाहर आकर के फिर वह जहां भोजन शाला थी वहां पर आया (उयागच्छित्ता भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए अट्ठम भत्तं पारेइ) वहां आकर के उसने भोजन मंडप में सुखासन पर बैठ कर अष्ठभक्तकी पारणा की (पारिता भोयणमंडवाओ पडिणिक्खमइ) पारणा कर के फिर वह भोजन शाला से बाहर आया (पडि. णिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ) बाहर आकर के फिर वह जहां वाह्य उपस्थानशाला थी और उसमें भी जहां पर सिंहासन था वहां परआया ('उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरस्थाभिमुहे णिसीअइ) वहां आकर के वह पूर्वदिशा की ओर मुँह करके सिंहासन पर बैठगया (णिसीइत्ता अट्ठारससेणिप्पसेणोओ सद्दावेइ) वैठकर फिर उसने १८ श्रेणि प्रश्रेणियों को बुलाया-(सदाविता एवं वयासी) बुलाकर उसने ऐसा कहा -खिप्पामेव કરીને પછી ધવલમહામેઘથી નિષ્પન્ન ચન્દ્ર જે પ્રિયદશી તે ભરત રાજા તે સુધાધવલીકૃત स्नानगृहमांथी महा२ माव्या. (पडिणिक्वमित्ता जेणेव भोयणमंडवे तेणेव उवागच्छइ) स्नान घरमाथी मा२ नीजीन पछी त भयो न तो त्यां गये. (उवागच्छित्ता भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए अट्ठमभत्तं पारेइ) त्यो मावीन तले भ७५मा सुशासन B५२ मेह। मन त्या२ मा त म सतनी पा२।। ४२१. (पारित्ता भोयणमंडवाओ पडिणिक्खमइ) ५।२६।। रीने पछी मनशाणामांथा महा२ माव्या. (पडिणिक्खगिता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ) महा२ मावान पछी तयां भास्थानशामाता मन तभा पन्या सिहासन तु त्या माव्या. (उवागच्छिता सीहासणवरगए पुरस्थाभिमुहे णिसीअइ) त्या मावाने ते पूर्व दिशा त२५ भुप उशन सिंहासन ७५२ मेसी गयी. (णिसिइत्ता अठ्ठारस सेणिप्पसेणीओ सद्दावेइ) मेसीने पछी ते १८ श्रेणि-हिना खान माराया, (सद्दावित्ता एवं वयासी) गोसावी या प्रमाणे જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy