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________________ ५८८ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे इत्यादि । 'जाव से रहवरस्स कुप्परा उल्ला' यावत् तस्य रथवरस्य कूपरी आद्रौँ स्याताम्, तत्र-रथवरस्य कूर्पराविव कूपरौ कूर्पराकारत्वात् रथचक्रावयवौ आद्रौँ भवेताम् 'तए णं से भरहे राया तुरगे निगिण्हई' ततः खलु स भरतो राजा तुरगान अश्वान् निगृह्णाति-स्थिरीकरोति 'निगिहित्ता' तुरगान् निगृह्य 'रहं ठवेइ' रथं स्थापयति 'ठवेत्ता स्थपयित्वा 'धणुं परामुसइ' धनुः परामशति स्पृशति गृहातीत्यर्थः 'तए णं' ततः खलु ततो-धनुः परामानन्तरं खलु स नरपतिः इमानि वक्ष्यमाणानि वचनानि 'भाणीय त्ति' अभाणीत् इति सम्बन्धः किं कृत्वा इत्याह-धनुगृहीत्वा धनुश्च किमाकारक तत्राह- तत् धनुः 'अइरुग्गयबालचंदइंदधणुसंकासं' अचिरोद्गतबालचन्द्रेन्द्रधनुः संकाशम्, तत्र अचिरोद्गतः तत्कालोदितः यो बालचन्द्रः -शुक्लपक्ष द्वितीयाचन्द्रस्तेन ओर मुँह करके मागध तीर्थ से होकर लवण समुद्र में प्रविष्ट हुआ था । (जाव से रहवरस्स कुप्परा उल्ला) जब वह लवणसमुद्र में प्रविष्ट हुआ तो वह इतना ही गहरा वहां था कि उसके रथ के पहियों के अवयव ही गीले हो पाये (तएणं से भरहे राया तुरगे निगिण्हई) भरत राजा ने अपने रथ के घोड़ों को रोक दिया (निगिण्हित्ता रहं ठवेइ) घोड़ों के रुकते ही रथ भी खड़ा हो गया (ठयेत्ता धणुं परामुसइ) रथ के खड़े होते ही भरत महाराजा ने अपने धनुष को उठाया (तएणं) इसके बाद उस भरत राजा मे इस प्रकार से कहा ऐसा यहां सम्बन्ध है । जिस धनुष को भरत राजा ने उठाया था उसकी विशेषता प्रकट करने के लिये सूत्रकार कहते हैं(अइरुग्गय बालचंद इंदधणुसंकासं दरियदप्पिय दढधणसिंगरइयसारं उरगवरपवरणवल पवर परपरहुयभमरकुलणीलगिद्धं ) उसका अकार अचिरोद्गत बालचन्द्र के जैसा एवं इन्द्र धनुष के जैसा था। यहां अचिरोद्गत बालचन्द्र से शुक्लपक्ष की द्वितीया का चन्द्र गृहीत हुआ है क्योंकि यहो पतला और विशेषरूप में वक्र धनुष के जैसा होता है । इसी तरह से वर्षाकाल के समय जो गगन में इन्द्रधनुष उद्गता हुआ दिखलाई देता है वह भी इन्द्रधनुष के जैसा ही सय समुद्रमा प्रविष्ट थयोता. (जाव से रहवरस्स कुप्परा उल्ला) यारे ते दाप સમદ્રમાં પ્રવિષ્ટ થયો ત્યારે તે આટલા જ. ઊંડો હતો કે તેનાથી તેના રથના ચક્રના અવેया सीना यशया. (तपणं से भरहे गया तुरगे निगिण्हई) भरत २012 यातना २थना घास। शी साधा. (निगिण्हित्ता रहं ठवेइ) बासी भटया तेथी २२ ५९ असे!२यो. (ठवेत्ता धणु परामुसइ) २५ से २यो त२१ २ २ पोताना धनुध्यने यु. (त एणं) प्यार माह ते भरत २१ मा प्रमाणे धु-वो मा स्थाने સંબંધ છે. જે ધનુષને ભરતરાજા એ ઉઠાવ્યું હતુ , તેની વિશેષતા પ્રકટ કરતા સૂત્રકાર हेछ-(अइरुग्गयबालचंदइंदधणुसंकासं दरियदप्पियदढघणसिंगरइयसारं उरगवर पवरणघल पवर परपाडुय भमरकुलगीलणिद्ध) तना मा२ अविरत पायो । તેમજ ઈદ્ર ધનુષ જે હતે. અહીં અચિરાગત બ લચંદ્રથી શુકલ પક્ષની દ્વિતીયાનો ચ દ્રગૃહીત થયો છે. કેમકે એજ પાતળે અને વિશેષ રૂપમાં વક્ર ધનુષ જેવો હોય છે. આ પ્રમાણે વર્ષકાળના સમયે જેમ ગગનમાં ઈન્દ્રધનુષ ઉદગત થતું જોવા માં આવે છે. તેમ ત જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
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