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________________ प्रकाशिका टीका तृ० वक्षस्कार सू. ५ अष्टाव्हिकामहामहिमासमाप्त्यनन्तरीयकार्य निरूपणम् ५८३ सन्नाहयत - सज्जी कुरुत, ( चाउरघंटं आसरहं पडिकप्पेह) तथा चतस्रो घण्टा अवलम्बिता यत्र स तथा तादृशम् अश्वरथम्, अश्वबहनीयो रथः अश्वरथः तं प्रतिकल्पयत सज्जीकुरुत ( तिकट्टु मज्जनघरं अणुपविसइ) इतिकृत्वा मज्जनगृहमनुप्रविशति (अणुविसित्ता) अनुप्रविश्य (समुत्त तहेव जाव धबलमहामेह णिग्गए जाव मज्जणघराओ पडिणिकखम) समुक्त तथैव यावत् धवलमहामेघ निर्गतो यावत् मज्जनगृहात् प्रतिनिष्क्रामति, तत्र समुक्तजालाकुलाभिरामे इत्यादि विशेषणविशिष्टे स्नानमण्डपे नानामणिरत्नभक्तिचित्रे स्नानपीठे सुखेनोपविश्य स्नपितः स्नानानन्तरं च धवलमहामेघान्निर्गतः शशीव प्रियदर्शनो नरपतिः भरतः सुधाधवलीकृतात् मज्जनगृहात् प्रतिनिष्क्रामतीति भाव: (पडिणिक्खमित्ता) प्रतिनिष्क्रम्य ( हयगय रहपवरवाहण जाव सेणावर पहियकित्ति जेणेव बाहिरिया उवद्वाणसाला जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उपागच्छ) हयगजरथप्रवरवाहन यावत् सेनापतिप्रथितकीर्त्तिः यत्रैव बाह्योपस्थानशाला यत्रैव चातुर्धटोsवरथः तत्रैवोपागच्छति, व्याख्या च पूर्ववत् बोध्या (उवागच्छित्ता) उपागत्य (चाउग्घंटं आसरहं) चातुर्घण्टम् अश्वरथं दुरूढे आरोहति स्म इति ॥ ०५ ॥ हय. गज, रथ एवं श्रेष्ठ योधाओं से युक्त सेना को तैयार करों - ( चा उग्घंटं आसरहं पडिक पेह) तथा जिसमें चार घंटे टक रहे हों ऐसे अश्वरथ को - अश्वों द्वारा चलने वाले रथ को सज्जित करो (त्तिकट्टु ) इस प्रकार कहकर वे (मज्जणघरं अणुपविसइ) स्नान गृह में प्रविष्ट हो गये (अणुपविसित्ता समुत्त तहेव जाव घवल महामेहणिग्गए जाव मज्जणघराओ पडिणिक्खकइ) वहां जाकर वे पूर्वोक्त मुक्ता जाला कूल आदि विशेषणों से अभिराम स्नान मंडप में रखे हुए पूर्वोक्त" नानामणि भक्तिचित्र" विशेषणवाले स्नान पोठ पर आनन्द के साथ बैठ गए वहां पर उन्हे स्नान कराया गया - स्नान करने के बाद वे धवलमेघ से निर्गत चन्द्र मण्डल की तरह उस स्नान घर से बाहर निकले ( पडिणिक्खमित्ता हय गय रह पवर वाहण जाव सेणाबइ पहियकित्ती जेणेव बाहिरिया उवद्वाणसाला जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ) इन सूत्र पदों की , २थ ते वीर श्रेष्ठ योध्याथी युक्त सेना तैयार १२ । (चाउग्घटं आसरहं पडिक - प्पे ) ते नेम यार ઘટાએ લટકી રહ્યા હાય, એવા રથને અશ્વોથી ચલાવવામાં आवे सेवा रथ ने सक्ति १२, (त्ति कट्टु ) या प्रमाणे उहीने ते (मज्जणघरं अणुपविसइ) स्नान गृहमां प्रविष्ट थया (अणुपविसित्ता समुत्त तहेव जाव धवल महामेहणिग्गए जाव मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ) त्यां रहने ते पूर्वोक्त भुक्तान्स इज यहि विशे षाशोथी अभिराम स्नानमंडप मां भूसा पूर्वेति "नानामणि भत्तिचित्तं" विशेषशेोवाणा સ્નાન પીઠ ઉપર આનંદ પૂર્વક એસી ગયા. ત્યાં તેમને સ્નાન કરાવવામાં આવ્યું. સ્નાન કર્યા પછી તેઓ ધવલ મેઘથી નિર્વાંત ચન્દ્ર મડલની જેમ તે સ્નાનગૃહમાંથી બહાર નીકज्या. ( पडिणिक्aमित्ता हय गय रह पवर बाहण जाव सेणावर पहियकित्ती जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छद्द) ये सूत्रपहोनी જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
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