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________________ ५८० जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे त्तियं पच्चप्पिणाहि) मम एतामाज्ञप्तिकां प्रत्यर्पयेति (तएणं से बइढइरयणे भरहेणं रण्णा एवं वुत्ते समाणे हद्वतुट्ट चित्तमाणंदिए पोइमणे जाव अंजलिं कटु एवं सामी तहत्ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ) ततः खलु स वर्द्धकिरत्नो भरतेन राज्ञा एवमुक्तः सन् हृष्टतुष्ट चित्तानन्दितः प्रीतिमनाः यावत् पदात् करतलपरिगृहीतं दशनखं शिरसावत मस्तके अञ्जलिं कृत्वा एवं स्वामिन् तथेति इत्यु. तवा आज्ञया विनयेन वचनं प्रतिशणोति अङ्गी करोति (पडिसुणित्ता) प्रतिश्रुत्य स्वीकृत्य (भरहस्स रण्णो आवसहं पोसहसालं च करेइ) भरतस्य राज्ञ आवासं पौषधशालां च करोति (करित्ता) कृत्वा सम्पाद्य (एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणाति) एताम् उक्त विधाम् आज्ञप्तिकां राजाज्ञां क्षिप्रमेव प्रत्यर्पयति परावर्तयति (तए णं से भरहे राया आभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पच्चोरुह इ) ततः खलु स भरतो राजा आभिषेक्यात् हस्तिरत्नात् प्रत्यवरोहति अबत्तरति (पच्चोरुहित्ता) प्रत्यवरुह्य अवतीर्य सॉर काम हो जाने की खबर दो-(त एणं से वडूढइरयणे भरहेणं रण्णाएवं वुत्ते समाणे हद तुटू चित्तमाणदिए पीईमणे जाव अंजलि कट्टु एवं सामी तहत्ति सामी आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ ) इस प्रकार भरत के द्वारा कहा गया वर्द्धकिरत्न हृष्टतुष्ट होता हुआ अपने चित्त में आनन्दित हुआ उसके मनमें प्रीति जगी यावत् अंजलिको जोड़कर उसने फिर ऐसा कहा हे स्वामिन् ! जैसी आपने आज्ञा दी है उसो के अनुसार काम होगा इस तरह कहकर उसने प्रभु की आज्ञा को बडी विनय के साथ स्वीकार किया (पडिसुणित्ता भरहस्स रण्णो आवसहं पोसहसालं च करेइ) आज्ञा स्वीकार कर के फिर उसने वहां से आकर भरत राजा के निमित्त निवास स्थान और पौषधशाला का निर्माण किया (करित्ता एयमागत्तियं खिप्पामेव पच्चप्यिगति ) निर्माण कार्य समाप्त होते ही फिर उसने राजा की आज्ञायथावत् पालित हो चुकी है . इसकी खबर शीघ्र ही भरत राजा के पास पहुंचा दी। ( तएणं से भरहे राया आभिसेक्काओहत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ) भरत राजा अपनी कृताज्ञानुसार कार्य पूरा हुआ सुनकर अभिषेक सम्पन्न पानी सूयना साप. (त पणं से वडढइरयणे भरहेणं रन्ना एवं वुते समाणे हट्ठ-तुट्ठ चित्तमाणदिए पीईमणे जाव अंजलिं कट्टु पवं सामी तहत्ति सामी आणाए विणएणं वषण पाडगेइ) मा प्रमाणे मरत २० वडे मात ते पद्धन -तुट થતા પિતાના ચિત્તના આનંદિત થયો. તેના મનમાં પ્રીતિ ઉત્પન થઈ યાવત્ અંજલિ જેને પછી તેણે આ પ્રમાણે કહ્યું- હે સ્વામિન ! જે પ્રમાણે આપશ્રીએ અ ના કરી છે, તે મુજબ કામ સંપન્ન થશે આ પ્રમાણે કહીને તેણે પ્રભુની આજ્ઞાને બહુજ વિનય પૂર્વક स्वी२ ४२१. (पडिसुणित्ता भरहस्स रण्णो आवसहं पासहसालं च करेइ) भाज्ञा स्त्रीકાર કરીને પછી તેણે ત્યાંથી આવીને ભરત રાજા માટે નિવાસ સ્થાન અને પૌષધશાળ નું निर्माएर यु. (करित्ता एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चविणति) निर्माण सम्पन्न थतां तो ज्ञानु पालन २५ यूयुछे ते सगेनी २१ पासे ५डयाडी. (त एणं से भरहे राया आभिसेक्काओ हस्थिरयणाओ पच्चोरुहइ) सरत महाराज पातानी माश જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
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