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________________ प्रकाशिका टीका तृ• वक्षस्कार सू. ४ भरतराज्ञः गमनानन्तरं तदनुचरकार्य निरूपणम् ५६५ निषेधेन न विद्यते देयम्, दातव्यं द्रव्यं यस्यां सा तथा ताम् न केनापि कस्मै अपि देयमित्यर्थः, अमेयामिति, क्रयविक्रयनिषेधेनैव अविद्यमानमातव्याम्, अभटप्रवेशा मिति, न विद्यते भटानां-राजपुरुषाणाम् आज्ञादायिनां प्रवेशः कुटुम्बगृहेषु यस्यां सा तथा ताम्, अदण्डकुदण्डिमामिति, दण्डेन लभ्यं द्रव्यं दण्ड यः कुदण्डेन निर्वृत्तं कुदण्डिमं-राजद्रव्यं तन्नास्ति यस्यां सा तथा ताम्, तत्र दण्डो यथापराधं राजग्राह्यं द्रव्यं कुदण्डस्तु राजकर्मचारिणां प्रज्ञाद्यपराधात् अपराधिनो महत्यपराधे अल्पम् अल्पापराधे चाधिकं यथोचितरहितं राजग्राह यं द्रव्यम् इति विज्ञेयम्, अधरिमामिति (अविद्यमानं धरिमम् ऋणद्रव्यं यस्यां सा तथा ताम् उत्तमर्णाधमेणाभ्याम् ऋणार्थम् अन्योन्यं न विवदनीयं मत्तः द्रव्यं नीत्वा मुत्कलनीयं दातव्यमित्यर्थः गणिकायरनाटकीय कलितामिति) गणिकावरैः विलासिनीप्रधानैः नाटकीयैः नाटकप्रतिबद्धपात्रः कलिता शोभिता या सा तथा ताम्, नाटकादि शोभितामित्यर्थः अनेकताला चरानचरितामिति, तत्र (अनेके ये तालाचराः प्रेक्षाकारि विशेषास्तैरनुचरितामआसेविताम् अनुद्धृतमृदङ्गामिति) अनु आनुरूप्येण मृदङ्गसम्बन्धि विधिना उद्धृताः वगैरह का जीतना होता है उसे भी आठ दिन के लिये बन्द कर दो जिस पर जिस का कुछ भी लेना देना हो उसे भो बन्द कर दो अथवा इस महोत्सव के होने तक कोइ रोजगार-व्यापार-आदि न करे ऐसी राजाज्ञा की घोषणा कर दो क्रय विक्रय के निषेध हो जाने के कारण कोई भी व्यक्ति नापने, गिनने आदि की वस्तु के लेन देन का व्य वहार न करे, आज्ञा प्रदान करने वाले राजपुरुषों का कुटुम्बी जनों के गृहों में प्रवेश न हो अपराध हो जाने पर दण्ड रूप में जो अपराध के अनुसार अपराधो से राजद्रव्य लिया जाता है वह न लियाजाचे राज्य कर्मचारीयों के द्वारा छोटे बड़े अपराध हो जाने पर जो उनसे जुर्माना के रूप में थोड़ा या बहुत इच्छानुसार दण्ड वसूल किया जाता है उसे न लिया जाये-कर्जदार से कर्ज देने वाला व्यक्ति अपने ऋण को वसूल करने के लिये विबाद न करे किन्तु वह द्रव्य मुझ से लेकर दिया जाये और ऊन के झगडे को शान्त कर दिया जाये । बिलासिनियों के नाटकीय पुरुषों द्वारा इस में खूब धार्मिक नाटक किया जाबे, इस उत्सव को देखने के लिये अनेक जन आवे रात दिन इस उत्सब में मृदङ्ग ध्वनि होती रहे, जो मालाएँ इस થાય ત્યાં સુધી કોઈ પણ જાતને વેપાર વગેરે થાય નહિ એવી રાજાજ્ઞાની ઘોષણા કરી. રા ય-વિજય ઉપર પ્રતિબંધ થઈ ગયા પછી કોઈ પણ માણસ માપી શકાય કે ગણી શકાય એવી બધી વસ્તુઓની આપ-લે બંધ કરી દે આજ્ઞા પ્રદાન કરનાર રાજ પુરુષો ને કુટુંબી જનોના ગૃહમાં પ્રવેશ ન થાય. અપરાધ થઈ જાય તો દંડ રૂપમાં જે અપરાધ મુજબ અપરાધી પાસેથી રાજદ્રવ્ય લેવામાં આવે છે, તે લેવાનું બંધ કરી દો. રાજ્ય કર્મચારીઓ વડે નાના-મોટા અપરાધ બદલ તેમની પાસેથી દંડ સ્વરૂપ જે તે કાંઈ પણ થોડું-ઘણું ઈચ્છા મુજબ દંડ વસૂલ કરવામાં આવે છે, તે લેવામાં ન જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્રા
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
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