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________________ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे सूत्रस्य मत्कृतायां मुनितोषिणीटीकायां विलोकनीया । क कस्मिन् स्थाने 'जंबद्दीवे दीवे' १ जम्बू द्वीपः-जम्बूद्वीपनामको द्वीपः प्रज्ञप्तः १ इत्यग्रेऽपि खलु शब्दो वाक्यालङ्कारे । अनेन जम्बूद्वीपस्य स्थानं पृष्टवान् १, 'के महलएणं भंते ! जंबूद्दीवे दीवे २' तथा-हे भदन्त जम्बूद्वीपो द्वीपः किं महालयः किं प्रमाणो महान् आलयः आश्रयो व्याप्यक्षेत्ररूपो यस्य स तथा कियत्प्रमाणकमहत्त्वविशिष्टाऽऽश्रयसम्पन्नः अनेन जम्बूद्वीपस्य प्रमाणं पृष्टवान् ।२। 'कि संठिए णं भंते ! जंबूद्दीवे दीवे ३' हे भदन्त ! जम्बूद्वीपो द्वीपः किं संस्थितः ? किं कीदृशं संस्थानम्-आकारो यस्य स किं संस्थानोऽस्ति ? एतेन जम्बूद्वीपस्य संस्थानं पृष्टवान् ।३। 'किमायारभाव पडोयारेणं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे ४' तथा-हे भदन्त ! जम्बूद्वीपो द्वीपः किमाकारभावप्रत्यवतार:-कः कीदृशः आकारभावप्रत्यवतारः-तत्राऽऽकारः स्वरूपं भावाः पृथिवीवर्षवर्षधर प्रभृतयस्तदन्तर्गताः पदार्थाः, तेषां प्रत्यवतार:-अवतरणं प्रकटीभावः इति यावत् यस्मिन् स तथा 'पण्णत्ते' प्रज्ञप्तः-कथितः । अनेन जम्बूद्वीपरय स्वरूपं तदन्तर्वति पदार्थाश्च पृष्टवान् ।४। इत्येवं प्रश्नचतुष्टये कृते तदुत्तर श्रवणपरायणतामुत्पादयितुं तस्य जगप्रसिद्ध गोत्रनामोच्चारण पूर्वकामन्त्रणेन क्रमेण भगवानुत्तरयति-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! गौतमगोत्रोत्पन्न ! इन्द्रभूते ! 'अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे' अयम् भी ऐसा ही जानना चाहिये, 'भदन्त" शब्द की विस्तृत व्याख्या आवश्यक सूत्र की मुनि तौषिणी टीका में की जा चुकी है, अतः वहां से इसे देख लेना चाहिये,"के महालए णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे ?,, तथा हे भदन्त ! जंबु द्वीप, नाम का द्वोप कितना विशाल कहा गया है ?,, 'किं संठिए णं जंबुद्दीवे दीवे ?' तथा-हे भदन्त ! इस जम्बूद्वीप का संस्थान कैसा कहा गया है ? "किमायार भावपडोयारे णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे ४,, ? तथा इस जम्बूद्वीप का आकार-स्वरूप कैसा कहा गया है ? और इसमें कौन से पदार्थ कहे गये हैं ? इसप्रकार से ये चार प्रश्न गौतम ने प्रभु से यहां पछे हैं इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-"गोयमा! हे गौतम गोत्रोत्पन्न ? इन्द्रभूते !" 'अयणं जंबूद्दीवे दीवे सब्बद्दीवसमुदाणं सव्वम्भंतराए,, यह जो प्रत्यक्ष से दृश्यमान द्वीप है कि जहां पर हम सब रहते है इसी का नाम जम्बूद्वीप है यह जम्बूद्वीप नाम का द्वीप समस्तद्वीप પણ એવી રીતે જ સમજવું જોઈએ. ભદત શબ્દની વિસ્તૃત વ્યાખ્યા આવશ્યક सूत्रनी भुनिताषी टीमा ४२वामा मावस छे. तेथी ते त्यांथी समझ सेवा के महालए ण भते जंबुद्दीवे दीवे ?" तय है महन्त ! सामूदा५ नामे द्वीप से विशाण भां मावस छ ? "कि संठिए णं जंबुद्दीवे २१ तेभ 3 महन्त ! मामूदापर्नु सस्थान उ वामां मावस छ ? "किमायारभावपडोयारे णं भंते ! जंबुद्दीवे ફ્રી ૪૭ તેમજ આ જંબુદ્વીપને આકાર-સ્વરૂપ-કે છે ? અને એમાં કઈ કઈ જાતના પદાર્થો છે ? આરીતે આ ચાર પ્રશ્નો ગૌતમે પ્રભુને અહીં પૂછયા છે. એનાં જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
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