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________________ २३४ ___ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे हितौ अनयोर्मध्ये बिसतन्तुरपि न प्रवेष्टुमर्हतीति भावः, लष्टचूचुकामेलको-लष्टौसुन्दरौ चूचुकामेलको कुचाग्रभागौ ययोस्तौ तथाभूतौ यमलौ तुल्यश्रेणिको युगलौ युग्मरूपौ वर्तितौ वर्तुलाकारौ अभ्युन्नती उत्तुङ्गो पीनरतिदौ पुष्टप्रीतिदौ, पीवरौ मांसलत्वात्पुप्टौ पयोधरौ-कुचौ यासां तास्तथा, 'भुयंग अणुपुव्व तणुअ गोपुच्छ वट्ट समसंहिय णमिय आइल्लललियवाहा' भुजङ्गानुपूर्व्य तनुक गोपुच्छ वट्ट समसंहितनताऽऽदेयललितबाहवः-- भुजङ्गानुपूर्व्यतनुको-भुजङ्गः सर्पस्तद्वत् आनुपूर्येण अधोऽधोभागक्रमेण तनुको प्रतली अ. तएव गोपुच्छवृत्ता गोपुच्छवद् वृत्तौ वर्तु लौ समौ परस्परं सदृशौ संहितो मध्यशरीरापेक्षयाऽविरलौ नतौ-नम्रौ स्कन्धदेशस्य नतत्वात् आदेयो-अतिशोभनतया कमनीयौ ललितो मनोहरौ बाहू भुजो यासां तास्तथा, 'तंबनहाओ' ताम्रनखाः ताम्रवर्णनखाः रक्तनखा इत्याशयः, 'मंसलग्गहत्थाओ' मांसलाग्रहस्ताः मांसलो पुष्टौ अग्रहस्तो हस्ताग्रभागी यासां ता. स्तथा, पोवर कोमलवरंगुलियाओ' पीवर कोमल वराङ्गुलीकाः पीवराः पुष्टाः कोमला मृदवः से मृणालतन्तु भी नहो निकल सकता है या मृणालतन्तु भी इन दोनों के मध्य में प्रवेश नहीं पासकता है। इन दोनों स्तनों के जो अग्रभाग होते हैं वे बडे सुन्दर होते हैं, ये दोनों स्तन समश्रेणि में रहे हुए होते हैं और युग्मरूप होते हैं इनका दोनों का आकार गोल होता है और ये वक्षस्थल पर आगे की ओर बहुत सुन्दर ढंग से ऊँचे उठे हुए होते हैं "पीनरतिदौ" ये स्थूल होते हैं और प्रीति देने वाले होते है तथा मांस से भरे हुए रहते है "भुअंग अणुपुब्बतणुअ गोपुच्छवट्टसमसंहिय णमिय आइज्जललियवाहा” इनकी दोनों भुजाएँ सर्प की तरह क्रमशः नीचे की ओर पतली हुई होती है अतएव वे गोपुच्छ की तरह गोल होती है परस्पर में वे समान एफसी होती है, मध्यशरीर की अपेक्षा ये संहित-अविरल होती हैं स्कन्ध देशके नत होने से ये नम्रझुकी हुई होती है आदेय होती है और मनको हरण करने वाली होती है । "तंबणहाओ, मंसलग्गहत्थाओ, पीवरकोमलवरंगुलियाओ, णिद्धपाणिरेहा, रविससिसंखचक्कसोत्थियसुविभत्तसुविरइयમળેલા હોય છે, એ એટલા પાસે પાસે હોય છે કે એ બન્નેનાં મધ્યમાંથી મૃણાલ તતું પણ નીકળી શકતું નથી અથવા તે એમના મધ્યમાં મૃણાલ તંતુ પણ પ્રવેશી શકતું નથી. એ બને સ્તનોના જે અગ્રભાગ હોય છે. તે બહુજ સુંદર હોય છે, એ બને સ્તન સમણિમાં હોય છે. અને યુગ્મ રૂપ હોય છે. એ બંનેની આકૃતિ ગોળ હોય છે भने पक्षस्थल प मागण मन सु२ री 28सा हाय छे "पीनरतिदों में स्थूल डाय छ भने प्रीति:२४ हाय छ तेम०४ मांसथी सुपुष्ट डाय छे. "मुअंग अणु पुष्वतणु अगोपुच्छवट समसहिय णमिय आइज्जललिय वाहा" मेमनी भन्ने सुतमे। सपना આ કમ નીચેની તરફ પાતળી હોય છે એથી તે ગેપુછની જેમ ગોળાકાર હોય છે. પર સ્પરમાં તે સમાને એક સરખી હોય છે. મધ્ય શરીરની અપેક્ષાએ એ–સંહિત અવિરલ હોય છે. સ્કન્ધદેશ નત હોવાથી એ નમ્ર-નમિત હોય છે. આદેય હોય છે. અને મનોહર हाय छे. "तंबणहाओ, मंसलग्नहत्थाओ, पीवरकोमलवरंगुलियाओ, णिद्धपाणिरेहा, रवि ससि संख चक्क सोस्थिय सुविभत्त सुविरइय पाणिलेहाओ" मेमना नपान। १९ ताम्र હોય છે. એમના હાથના અગ્રભાગ માંસલ–પુષ્ટ હોય છે, એમના હાથની આંગળી એ પી જમ્બુદ્વીપપ્રજ્ઞપ્તિસૂત્ર
SR No.006354
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1980
Total Pages992
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_jambudwipapragnapti
File Size62 MB
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