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________________ चद्रप्राप्तिसूत्रे णायां विरोधः प्रज्ञक्ष एव लोके राहीनाधिकरूपत्वेन समुपलभ्यमानत्वात् । एवं सति भगवान् स्वमतं प्रदर्शयति-वयं पुण' इत्यादि । मूलम्-वयं पुण एवं वयामो-ता जंबुद्दीवे दीवे सरिया उदीणपाईणं उग्गच्छति पाईणदाहिणं आगच्छंति । पाईणदाहिणं उग्गच्छंति दाहिणपडीणं आगच्छति २। दाहिण पडीणं उग्गच्छंति पडीण उदीणं आगच्छति ३। पडीणउदीणं उग्गच्छंति उदीणपाईणं आगच्छति ४ ॥१॥ ___ता जया णं जबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे दिवसे भवइ तया णं उत्तरड्ढे वि दिवसे भवइ, जया णं उत्तरड्ढे दिवसे भवइ तया णं जबुद्दीवे दीवे मदरस्स पव्वयस्स पुरथिमपच्चत्थिमेण राई भवइ । जया णं जबुद्दीवे दीवे मदरस्स पव्वयस्स पुरथिमेणं दिवसे भवइ तया णं पच्चत्थिमेणं वि दिवसे भवइ, जया ण पच्चत्थिमेण दिवसे भवइ तया ण जबुहीवे दीवे मदरस्स पव्वयस्स उत्तरदाहिणेणं राई भवइ ।२। ता जया णं जबुद्दीवे दीवे दाहिणड्ढे उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं उत्तरड्ढे वि उक्कोसए अट्ठारसमुहत्ते दिवसे भवइ ।, जया ण उत्तरड्ढे उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ तयाणं जबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पचयस्स पुरथिमपच्चस्थिमेण जहणिया दुवालसमुहुत्ता राई भवइ । ता जया णं जबुद्दीवे दीवे मंदस्स पव्वयस्स पुरत्थिमेणं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया ण पच्चत्थिमेण वि उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ ।, जया णं पच्चत्थिमेणं उक्कोसए अट्ठारस्समुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं जवुद्दीवे दीवे मंदरस्स पबयस्स उत्तरदाहिणेणं जहणिया दुबालसमुहुत्ता राई भवइ । एवं अट्ठारसमुहुत्ताणतरे दिवसे भवइ, साइरेगा दुवालसमुहुत्ता राई भवई, सत्तरसमुहुत्ते दिवसे तेरसमुहुत्ता राई भवइ । सत्तरसमुहुत्ताणतरे दिवसे साइरेगा तेरसमुहुत्ता राई भवइ । सोलसमुहुत्ते दिवसे चउद्दसमुहुत्ता राई भवइ । सोलसमुहुाणंतरे दिवसे साइरेगा चउद्दसमुहुत्ता राई भवइ । पण्णरसमुहुत्ते दिवसे पण्णरसमुहुत्ता राई भवइ । पण्णरसमुहुत्ताणंतरे दिवसे साइरेगा पण्णरसमुहुत्ता राई भवइ । चउद्दसमुहुत्ते दिवसे सोलसमुहुत्ता राई भवइ । चउद्दसमुहुत्ता णंतरे दिवसे साइरेगा सोलसमुहुत्ता राई भवइ । तेरसमुहुत्ते दिवसे सत्तरसमुहुत्ता राई भवइ । तेरसमुहुत्ताणंतरे दिवसे साइरेगा सत्तरसमुहुत्ता राई भवइ । ता जया णं जबुद्दीवे दिवे दाहिणड्ढे जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं उत्तरड्ढे विजहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ । ता जया णं उत्तरड्ढे जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ तया णं जबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमेणं पच्चत्थिमेण उक्कोसिया
SR No.006353
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_chandrapragnapti
File Size23 MB
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