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________________ ९२४ सूर्यप्रशति सूत्रे क्षेत्रस्य व्यासमानं पृच्छति - 'ता पुक्खरवरेणं दीवे केवइयं समचक्कवालविवखंभेणं !" तावत् पुष्करवरः खलु द्वीपः कियता समचक्रवालविष्कम्भेन ? - कियान् व्यासः समचक्रवालक्षेत्रस्येति गौतमस्य प्रश्नस्ततः पुनरपि परिक्षेपं च पृच्छति - 'केवइयं परिक्खेवेणं ?,' कियता परिक्षेपेण ?, -कियां परिधिरित्यपि कथनीय इति । ततो भगवानाह - 'ता सोलसजोयणसहस्साई चक्कवाल विक्खंभेणं, एगा जोयणकोडी बाणउर्ति च सयसहस्साई अउणापण्णं च सहस्साई अह चरणउते जोयणसए परिक्खेवेणं आहिएति वएज्जा' तावत् षोडश योजनसहस्राणि (१६०००) चक्रवालविष्कम्भेन - चक्रवालक्षेत्रस्य व्यासः खलु षोडश योजन सहस्राणीत्यर्थः । तथा च परिधिः एका योजनकोटि : द्वानवतिश्च शतसहस्राणि -द्वानवतिलक्षाः योजनानां, ऊन पञ्चाशत् सहस्राणि अष्टानवति यजनशतानि - (१९२४९००००) एतावता परिक्षेपेण - परिधिना पुष्करवरो नाम द्वीपः आख्यात इति वदेत् || समचक्रवालसंस्थित होता है, विषमचक्रवालसंस्थित नहीं होता है । अब इसका समचक्रवाल क्षेत्र का व्यास मान के विषय में पूछते हैं - (ता पुक्खरवरेणं दीवे केवइयं समचक्कवालविक्खंभेण) पुष्करवर द्वीप कितना चक्र - वाल विष्कंभ से अर्थात् चक्रवाल क्षेत्र का व्यास मान कितना होता है ? इस प्रकार श्री गौतमस्वामी प्रश्न करके पुनः परिक्षेप के विषय में पूछते हैं(केवइयं परिक्खेवेणं) इस का परिक्षेप अर्थात् परिधि कितनी होती है ? इस प्रकार प्रश्न सुनकर उत्तर में श्री भगवान् कहते हैं- (ता सोलस जोयण सहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं एगा जोयणकोडी बाणउतिं च सय सहस्साई अणापणं च सहस्साइं अट्ठचरणउते जोयणसए परिक्खेवेणं आहिएत्ति एजा) सोलह हजार योजन (१६०००) चक्रवाल विष्कंभ से कहा है अर्थात् चक्रवाल क्षेत्र का व्यास मान सोलह हजार योजन का होता है । तथा उसकी परिधि एक करोड बिराणवे लाख उनचास हजार योजन इतना प्रमाण की છે. વિષમ ચક્રવાલ સસ્થિત હતેા નથી, હવે આના સમચક્રવાલ ક્ષેત્રના વ્યાસમાનના संधभां प्रश्न पूछे छे.- ( ता पुत्रखरवरेण दीवे केत्रइये समचकवाल विक्ख भण) पुष्५२१२द्वीप કેટલા ચક્રવાલ વિધ્યુંભથી કહેલ છે? અર્થાત્ ચક્રવાલ ક્ષેત્રનું બ્યાસમાન કેટલું થાય છે? આ પ્રમાણે શ્રીગૌતમસ્વામીએ પ્રશ્ન પૂછીને ફરીથી પરિક્ષેપના સબંધમાં પ્રશ્ન પૂછે છે.(केवइयं परिक्खेण) आनो परिक्षेष अर्थात् परिधि डेंटली होय हे ? या प्रभाना प्रश्नने सांलजीने उत्तरमां श्रीभगवान् उडे छे.- ( ता सालस जोयणसहस्साई चक्कवालविक्ख भेण एगा जोयण कोडी बाणउति च सहस्साई अउणापण्णंच सहस्साई अटु चउगउते जोयणसए परिक्खेवे आहिएत्ति बज्जा) सोणडलर योजन (१६०००) पास विष्णुलथी उडेल छे. અર્થાત્ ચક્રવાલ ક્ષેત્રનું બ્યાસમાન સેાળહજાર ચાજનનું થાય છે. તથા તેની પરિધિ એક કરોડ ખાલાખ ઓગણપચાસહજાર યોજન આટલા પ્રમાણની પરિધિવાળા પુષ્કરવર શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૨
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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