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________________ ९१८ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे एतासां गाथानां व्याख्या व्याख्याता एवेति ॥ अथ कालयवणसमुद्रसम्बन्धि उत्तरं'ता धातईसंडे दीवे कालोयणे णामं समुद्दे वट्टवलयागारसंठाणसंठिए जाव णो विसमा चक्कवालसंठाणसंठिए' तावत् धातकीखण्डे द्वीपे कालोदन नाम समुद्रो वृत्तः वलयाकार संस्थानसंस्थितः यावत-कियान प्रदेशः नो विषमचक्रवालसंस्थानसंस्थित इति भगवतः उत्तरं श्रुत्वा गौतमः प्रश्नयति-'ता कालोयणेणं समुद्दे केवइय चकवालविक्खंभेणं केवइयं परिक्खेवेणं आहिएत्ति वएज्जा ?' तावत् कालोदशः खलु समुद्रः कियता चक्रवालविष्कम्भेन कियता परिक्षेपेण आख्यत इति वदेत-कथय भगवन्निति गौतमस्य प्रश्नं श्रुत्वा भगवानाह-'ता कालोयणे णं समुद्दे अट्ठ जोयणसयसहस्साई चकवालविक्खंभेणं पण्णत्ते, एक्काणउतिं जोयणसयहस्साई सत्तरिं च सहस्साई छच्च पंचुत्तरे जोयणसए किंचि विसेसाहोते हैं। यह सब कथन पहले कथित हो ही गया है। __ अब कालोदधि समुद्र विषय कथन करते हैं-'ता धायई संडे दीवे कालोयणे णामं समुद्दे वह वलयागारसंठाणसंठिए जाव णो विसमचकवालसंठाण संठिए) धातकीखंड द्वीप में कालोदधि नाम का समुद्र वृत्तवलयाकार संस्थान से संस्थित यावत् समचक्रवाल संस्थानसंस्थित होता है, विषम चक्रवाल संस्थानसंस्थित नहीं होता है। इस प्रकार श्री भगवान् का कथन को सुनकर श्री गौतमस्वामी प्रश्न करते हैं-(ता कालोयणे णं समुद्दे केवइयं चक्कवालविखंभेणं केवइयं परिक्खेवेणं आहिएत्ति वएज्जा) हे भगवन् कालोदधि समुद्र कितने चक्रवाल विष्कंभ से तथा कितनी परिधिवाला कहा है ? सो कहिये ? इस प्रकार श्रीगौतमस्वामी के प्रश्न को सुनकर उत्तर में श्रीभगवान् कहते हैं-(ता कालोयणेणं समुद्दे अट्ठजोयणसयसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं पण्णत्ते एकाणउति जोयणसयसहस्साई सत्तरिं च सहस्साई छच्च पंचुत्तरे પહેલા કહેવાઈ ગયેલ છે. वे सोधि समुद्रना संधमा ४ा भावे .-(ता धायईसंडे दीवे कालोयणे णाम समुदे वट्टे वलयागारसंठाणसंठिर जाव णो विसमचकवालसंठाणसंठिर) धातही દ્વીપમાં કાલેદધિ નામને સમુદ્ર વૃત્તવલયાકાર સંસ્થાનથી સંસ્થિત યાવત્ સમચક્રવાલ સંરથાનથી સંસ્થિત હોય છે. વિષમચક્રવાલ સંસ્થાનથી સંસ્થિત હેતે નથી. આ પ્રમાણે श्रीभगवान ४थन सोमणीन. श्रीगौतमस्थाभी प्रश्न पूछे छे-(ता कालोयणे ण समुद्दे केवइयं चकवालविक्ख भेण केवइयं परिक्खेवेणं आहिएत्ति वएज्जा) भगवन् साहधि समुद्र ચક્રવાલ વિધ્વંભથી કેટલા પરિમાણવાળ તથા તે કેટલી પરિધિવાળે કહેલ છે? તે કહે मा प्रमाणे श्रीगौतमस्वामीना प्रश्नने सामनीने उत्तरमा श्रीमान् ४ छे-(ता कालोय. णेणं समुरे अदुजोयणसहरसाई चक्कघालविक्ख भेग पण्णत्ते एक्काणउति जोयणसयसहस्साई सत्तरिंच सहस्साइं छच्च पंचुत्तरे जोयणसर किंचिविसेसाहिए परिक्खेतेण आहिएत्ति वएज्जा) श्री सुर्यप्रति सूत्र : २
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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