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________________ सूर्यप्रशप्तिसत्रे परिमाणमपि अष्टाविंशत्यादि संख्यानि नक्षत्रादीनि द्वादशभिर्गुणयित्वा तानि तानि च संख्यापरिमाणानि पृथक पृथक् समानेतव्यानीति ।। ___ अथ लवणसमुद्रे धातकीखण्डस्य स्वरूपं कथयति-'ता लवणसमुदं धातईसंडे णामं दीवे चट्टे वलयागारसंठिए तहेव जाव णो विसमचकवालसंठिए' तावत् लवणसमुद्रे धातकीखण्डनामद्वीपः वृत्तः-वत्तलाकारः वलयाकारसंस्थितः तथैव यावत् नो विषमचक्रवालसंस्थितः, इत्येतत् सर्व पूर्वोक्तवदेव ज्ञातव्यं किमत्र पुनर्लेखेन ग्रन्थगौरवाच्चेति ॥ अथात्रैव पुनरपि प्रश्नयति-'धातईसंडेणं दीवे केवइयं चक्कवालविक्खंभेणं केवइयं परिक्खेवेणं आहिएत्ति वएजा ?' धातकीखण्डे खलु द्वीपे कियता चक्रवालविष्कम्भेन-व्यासेन, कियता च परिक्षेपेन-परिधिना चेति आख्यातमिति वदेत् कथय भगवनिति गौतमस्य प्रश्नस्ततो यथार्थदर्शी भगवानाह-'ता चत्तारि जोयणसयसहस्साई चकवालविक्खंभेणं, इतालीसं जोयणसयगुणित करके उस उस प्रकार का संख्या परिमाण पृथक पृथक् समझ लेवें । अब लवणसमुद्र में धातकी खंड का कथन करते हैं-(ता लवणसमुई धायईसंडे णामं दीवे बढे वलयागारसंठिए तहेव जाव णो विसमचक्कवालसंठिए' लवणसमुद्र में धातकी खंड नाम का द्वीप वलयाकार से होता है तथा समचक्रवालसंस्थित होता है तथा यावत् विषमचक्रवालसंस्थित नहीं होता है, यह सभी कथन पूर्व के जैसा ही है। यहां पर प्रन्थ गौरवभय से पुनः नहीं कहते हैं। श्रीगौतमस्वामी पुनः प्रश्न करते हैं-(धायईसंडेणं दीवे केवइयं चकवालविखंभेणं केवइयं परिक्खेवेणं आहि एत्ति वएज्जा) हे भगवन् धातकी खंडद्वीप चक्रवालविष्कंभ अर्थात् व्यासमान से कितना है ? एवं परिक्षेप अर्थात् उस की परिधि कितनी कही गई है ? सो कहिये । इस प्रकार श्री गौतमस्वामी के प्रश्न को सुनकर श्री भगवान् कहते है-(ता चत्तारि जोयणसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं ईकतालीसं जोयणसयसहस्साई णवय ગુણાકાર કરીને તે તે પ્રકારનું સંખ્યા પરિમાણ પૃથક પૃથક સમજવું. ay समुद्रमा यातीनु थन ४२वामां आवे छे.-(ता लवणसमुदं धायई संडे णाम दीवे वट्टे वलयागारसंठिए तहेव जाव णो विसमचक्कवालसंठिए) सवार समुद्रमा ધાતકી ખંડ નામને દ્વીપ વલયાકારથી આવેલ છે. તથા તે સમાચકવાલ સંસ્થિત હેતે નથી. આ સઘળું કથન પૂર્વકથન પ્રમાણે જ છે. અહીં ગ્રન્થ ગૌરવ ભયથી ફરી કહેલ નથી. श्रीगौतमस्पाभी इशथी पूछे छ.-(धायईसंडे णं दीवे केवइयं चकवाल विक्खंभे ण केवइयं परिक्खेवेणं आहिएत्ति वएज्जा) भगवन पाती दी५ यपास विभ અર્થાત્ વ્યાસમાનથી કેટલો છે? અને તેની પરિધી કેટલા પ્રમાણુની છે? તે કહે આ प्रभारी श्रीगोतमस्वामीना प्रश्नने समणीने श्रीभगवान् ४ छ.-(ता चत्तारि जोयणसहस्साई चकवालविक्ख भेणं ईतालीसं जोयणसयसहस्साई णव य एगटे जोयणसए किंचिविसेसूणे શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: ૨
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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