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________________ सर्यप्तिप्रकाशिका टीका सु० ९९ अष्टादश प्राभृतम् ८८३ वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा' तावत् एतेषां चन्द्र-सूर्य-ग्रह-नक्षत्र-तारारूपाणां कतरेभ्यः कतरेभ्योऽल्पानि वा बहुकानि वा तुल्यानि वा विशेषाधिकानि वा'-तावदिति-प्राग्वत् एतेषां -पूर्वोदितानां चन्द्रसूर्यग्रह-नक्षत्र तारारूपाणां मध्ये परस्परव्यवस्थाविचारे आपेक्षिकतया वा कतरेभ्यः कतरेभ्यः के वा के वा अल्पाः ?, के वा के वा बहका:-अधिकाधिकपारिवारिकाः, अधिकतेजस्विनः प्रकाशाधिकाश्च के वा के वा तुल्या-समाः-समानस्थितिगतिकाः ?, के वा के वा विशेषाधिका:-स्थितिगतिपरिमाणप्रकाशादौ अधिकाधिकान्तररूपाश्चेति कथय भगवन्निति गौतमस्य प्रश्नस्ततो भगवानाह-'ता चंदा य सूरा य एए णं दो वि तुल्ला सव्वत्थोवा' तावत्-चन्द्राश्च सूर्याश्च एते खलु द्वे अपि तुल्याः सर्वस्तोकाः वा' तावदिति पूर्ववत् चन्द्राश्च सूर्याश्च परस्परं तुल्या-आकारप्रकारपरिमाण तेजप्रकाशप्रभावप्रमाणाधिकारादौ तुल्याः-समानाः सन्ति, तथा च सर्वस्तोकाः-सर्वाल्पा:-ग्रह-नक्षत्र तारारूपेभ्योऽल्पपरिमाणाश्चेत्याख्याता इति स्वशिष्येभ्यः प्रतिपादनीय इति ॥ ‘एवं च णक्खत्ता संखिजगुणा सूरियगहणक्खत्ततारारूवाणं कयरे कयरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा) ये पूर्व कथित चंद्र-सूर्य ग्रह-नक्षत्र एवं ताराओं में परस्पर की व्यवस्था विचार की अपेक्षा से कौन कौन किन किन से अल्प होते हैं ? कौन किन से अधिक परिवारवाले, अधिक प्रकाशवाले होते हैं ? तथा कौन किन से समान स्थिति वाले होते हैं ? तथा कौन किससे स्थिति गति परिमाण प्रकाश आदि में अधिकाधिक रूपवाले होते हैं ? सो हे भगवन् आप कहिये । इस प्रकार श्रीगौतमस्वामी के प्रश्न को सुनकर उत्तर में श्री भगवान् कहते हैं-(ता चंदा य सूरा य एए णं दो वि तुल्ला सव्वत्थोवा) चन्द्र एवं सूर्य परस्पर में तुल्य होते हैं अर्थात् आकार प्रकार, परिमाण तेज प्रकाश प्रभाव प्रमाणाधिकारादिमें समान होते हैं तथा सर्व से स्तोक ग्रह नक्षत्र तारारूप से अल्प परिमाण वाला कहा है, ऐसा स्वशिष्यों को प्रतिपादित करके कहें। तथा (णक्खत्ता संखिजगुणा गहा संखिज्जगुणा तारा संखिज्जगुणा) चंद्र सूर्य अप्पा वा बहुयावा, तुल्ला वा, विसेसियाहिया वा) 2. पडेट डेस द्र-सूर्य-अ-नक्षत्र અને તારાઓમાં પરસ્પરની વ્યવસ્થાના વિચારમાં કોણ કોની અપેક્ષાથી અપ હોય છે? કે જેનાથી અધિક પરિવારવાળા અધિક પ્રકાશવાળા હોય છે? તથા કોણ કોની બરબરની સ્થિતિવાળા હોય છે? તથા કેણ કેનાથી સ્થિતિ ગતિ પરિમાણ પ્રકાશ વિગેરેમાં અધિકાધિકરૂપવાળા હોય છે ? તે હે ભગવન્ આપ કહે આ પ્રમાણે શ્રી ગૌતમસ્વામીના प्रश्नने सामजीन उत्तरमा श्रीभगवान् ४ छ.-(ता चंदा य सूरा य एए णं दो वि तुल्ला सव्वत्थोवा) | मने सूर्य ५२२५२ तुक्ष्य होय छे. अर्थात् मा॥२, ५२, परिभात પ્રકાશ, પ્રભાવ પ્રમાણાધિકારાદિમાં સરખા હોય છે. તથા સૌથી ઓછા ગ્રહ, નક્ષત્ર, તારારૂપથી અલ૫ પરિમાણવાળા કહેલા છે. આ પ્રમાણે શિષ્યને પ્રતિપાદન કરીને કહેવું श्री सुर्यप्रति सूत्र : २
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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