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________________ ८७० सूर्यप्रशसिसूत्रे प्रज्ञप्ताः ?, ॥ तावदिति पूर्ववत् खल्विति वाक्यालङ्कारे ज्योतिषेन्द्रस्य-ज्योतिषाधिपतेः ज्योतिषराजस्य-तेजसामधिराजस्य सूर्यस्य-प्रकाशरूपदेवस्य कति-कियत्यः अग्रमहिष्यःपट्टराज्ञः प्रज्ञप्ता:-प्रतिपादिताः सन्तीति कथय भगवन्निति गौतमस्य प्रश्नस्ततो भगवानाह'ता चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-सूरप्पभा आयवा अच्चिमाला पभंकरा' तावत चतस्रोऽयमहिष्यः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-सूर्यप्रभा आतपा अचिमालिनी प्रभाकरा ॥-तावदिति पूर्ववत् ज्योतिषेन्द्रस्य ज्योतिषराजस्य सूर्यदेवस्य खलु चतस्रोऽग्रमहिष्यः सन्ति, तासां नामानि यथा सूर्यप्रभानाम्नी प्रथमा अग्रमहिषी-पट्टराज्ञी अस्ति (१) आतपा नाम्नी च द्वितीया पट्टराज्ञी वर्तते (२) अर्चिमालिनीनाम्नी तृतीयाचास्ति (३) चतुर्थी च प्रभइरानाम्नी वर्तते (४)। 'सेसं जहा चंदस्स' शेषं यथा चन्द्रस्य, यथा चन्द्रस्य चतसृणामग्रमहिषीना मध्ये एकैकाप्यामहिषी चत्वारि चत्वारि देवीसहस्राणि परिवारं विकुक्तुिं प्रभवति, एवं च सर्वसंख्यया षोडशसहस्रराज्ञिपरिवारैः परिवृतेनान्तःपुरेण सार्द्ध चन्द्रारणो कइ अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ) ज्योतिषाधिपति ज्योतिषराज सूर्य की अग्रमहिषियां माने पराणियां कितनी कही गई है? सो हे भगवन कहिये इम प्रकार श्री गौतमस्वामी के प्रश्न को सुनकर उत्तर में श्री भगवान् कहते हैं-(ता चत्तारि अग्गमाहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-सूरप्पभा आयवा, अच्चिमाला, पभंकरा) ज्योतिषेन्द्र ज्योतिषराज सूर्य देव की चार अग्रमहिषियां कही है। उनके नाम इस प्रकार से है-सूर्यप्रभा नाम की पहली अग्रमहिषी है (१) आतपा नाम की दूसरी पहरानी कही है (२) अचिमाली नाम की तीसरी पट्टरानी है (३) प्रभंकरा नाम की चौथी अग्रमहिषि कही है (४) (सेसं जहा चंदस्स) शेष कथन चंद्र के कथन के समान है जिस प्रकार चंद्र की चार अग्रमहिषियों में एक एक अग्रमहिषी चार चार हजार परिवार को विकुक्ति करने में शक्तिशाली कही है इस प्रकार सब मिलाकर सोलह हजार पट्टराज्ञि के परिवार से युक्त अतः पुर के साथ चंद्रावतंस विमान में सुधर्मा सभा में गीत, अगमहिसीओ पण्णत्ता भो) ज्योतिपाधिपति ज्योति५२।४ सूर्यनी अमावस्या मेट। પટ્ટરાણી કેટલી કહેલ છે? તે હે ભગવન આપ કહો આ પ્રમાણે શ્રીગૌતમસ્વામીના प्रश्नने सलगीन उत्तरमा श्रीभगवान् हे छ.-(ता चतारि अगमहिसीओ पण्णत्ताओ त जहा-सूरप्पभा, आयवा अच्चिमाला पभ करा) यतिन्द्र न्यातिष२००१ सूर्य हवनी ચાર અગ્રમહિષી કહેલ છે. તેમના નામે આ પ્રમાણે છે. સૂર્ય પ્રભા નામની પહેલી અગમહિષી છે. (૧) આતપરા નામની બીજી પટ્ટરાણી કહી છે (૨) અચિમાલી નામની श्री पट्टराणी छ. (3) प्रम। नामनी याथी २५अमडिपी डी 2. (४) (सेसं जहा चंदस्स બાકીનું સઘળું કથન ચંદ્રના કથન પ્રમાણે છે. જે પ્રમાણે ચંદ્રની ચાર અમહિષિયમાં દરેક અગ્રમહિષી ચાર ચાર હજાર પરિવારને વિકૃવિત કરવામાં શક્તિવાળી કહી છે. આ પ્રમાણે બધી શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: 2
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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