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________________ सूर्यप्रशप्तिसूत्रे हितो सूरा महड्डिया रेहितो चंदा महड्डिया, सव्यप्पड्डिया तारा सव्वमहिड्डिया चंदा' तावत् ताराभ्यो महर्दिकानि नक्षत्राणि, नक्षत्रेभ्यो ग्रहाः महद्धिका, ग्रहेभ्यः सूर्या महर्टिकाः, सूर्येभ्यश्चन्द्राः महर्द्धिकाः, सर्वाल्पर्टिकास्ताराः सर्वमहर्द्धिकाश्चन्द्राः ॥ तावत् इति पूर्ववत् समृद्धिविषये खलु उत्क्रमस्थितयः सन्ति-यथा सर्वेभ्योऽल्पसमृद्धिवत्यस्ताराः सन्ति-तारा पुजे सर्वाल्पर्धिकाः समृद्धयः सन्ति, तदपेक्षया अधिक समृद्धयो नक्षत्रसमूहेषु, ततोप्यधिकसमृद्धयो ग्रहगणेषु, ततोप्यधिकसमृद्धयः सूर्येषु ततोप्यधिकसमृद्धयः, चन्द्रेषु । एतेनेत्थ सिद्धयति यत् सर्वापेक्षया अल्प समृद्धियत्यस्ताराः सन्ति, तथा च सर्वाधिक समूद्धयश्चन्द्राः सन्तीति स्वशिष्येभ्य उपदिशेदिति ॥ सू० ९५॥ अथ ताराविमानान्तरविषयं निरूपयति । मूलम्-ता जंबुद्दीवेणं दीवे तारारूवस्स य तारारूवस्स य एस णं केवइए अबाधाए अंतरे पण्णत्ते, ता दुविहे अंतरे पण्णत्ते, तं जहाबाघातिमे य णिवाघातिमे य, तत्थ णं जे से वाघातिमे से णं जहणणेणं दोणि बाव? जोयणसए उक्कोसेणं बारस जोयणसहस्साई दोणि बायाले जोयणसए तारारूवस्स तारारुवस्स य अबाधाए अंतरे पण्णत्ते, तत्थ उत्तर में श्रीभगवान् कहते हैं-(ता ताराहिंतो महडिया णक्खत्ता, णक्खत्तेहिंतो महड्डिया गहा, गहेहिंतो सूरा महड़िया सूरेहिंतो चंदा महडिया सव्वप्पड़िया तारा सव्वमहड़िया चंदा) श्रीभगवान् कहते हैं कि समृद्धि के बारे में उत्क्रम स्थिति होती है जैसे की सब से अल्प समृद्धिवाले तारागण होते है, उनसे अधिक समृद्धिवाले नक्षत्र समूह होते हैं, नक्षत्रों से अधिक समृद्धिचाले ग्रहगण होते हैं । उनसे अधिक समृद्धिवाला सूर्य होता है एवं सूर्य से अधिक समृद्धि वाला चंद्र होता है। इससे यह सिद्ध होता है की सब से अल्प समृद्धिवाले तारागण होते हैं, एवं सब से अधिक समृद्धिवाला चंद्र होता है, ऐसा स्वशिष्यों को उपदेश करें ।। सू० ९५ ॥ मा प्रभारी श्रीगौतभस्वामीना प्रश्नने सामान उत्तरमा श्रीमावान छ.-(ता ताराहि तो महढिया णक्खत्ता णक्न तेहि तो महड्ढया गहा, गहे हि तो सूरा महढिया सूरेहिं तो चंदा महडढिया सव्वपढिया तारा सव्वमहढिया चंदा) श्रीभगवान् ४ छ । समृद्धिना સંબંધમાં ઉલ્ટી સ્થિતિ હોય છે. જેમકે સૌથી અલ્પ સમૃદ્ધિવાળા તારાગણ હોય છે. તેનાથી અધિક સમૃદ્ધિવાળા નક્ષત્ર હોય છે. નક્ષત્રોથી અધિક સમૃદ્ધિવાળા ગ્રહગણ હોય છે. તેનાથી વધારે સમૃદ્ધિશાલી સૂર્ય હોય છે. અને સૂર્યથી પણ અધિક સમૃદ્ધિશાલી ચંદ્ર હોય છે. આથી એ સિદ્ધ થાય છેકે-સૌથી ઓછી સમૃદ્ધિવાળા તારાગણ હોય છે. અને સૌથી અધિકસમૃદ્ધિશાલી ચંદ્ર હોય છે. એ પ્રમાણે સ્વશિષ્યને ઉપદેશ કરો. સૂ. ૫ શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: 2
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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