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________________ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे त्यधिकशतद्वयरूपस्य परिवर्त्तनेनोपरितनस्य भाज्यराशेर्गुणकस्थाने निवेशो जातस्ते - नान्त्येन राशिना एककरूपेण मध्यमो राशिर्गुणितोऽपि तथैव तिष्ठति, ततश्चोपरितनगतेन सर्वास्थितहरस्वरूपेण एकविंशत्यधिकशतद्वयरूपेण स एव मध्यमो राशिर्गुणित: जाते द्वे को द्विचत्वारिंशल्लक्षाः पञ्चपष्टिः सहस्राणि अष्टौ शतानि इति - २४२६५८०० एतेषां त्रयोदशभिः सहस्रैः सप्तभिः शतैः पञ्चविंशत्यधिकै भागहरणेन लब्धानि अष्टषष्ट्यधिकानि सप्तदशशतानि १७६८ । एतावतो भागान् यत्र तत्र वा मण्डले मुहूत्तैकेन चन्द्रो गच्छतीति सिद्ध्यति ॥ अथ सूर्यस्य मुहूर्त्तचारसम्बन्धी प्रश्नः - 'ता एगमेगेणं मुहुत्तेणं सूरिए केवति - याई भागसयाई गच्छई' तावत् एकैकेन मुहूर्तेण सूर्य: कियन्ति भागशतानि गच्छति ! तावदिति पूर्ववत् भ्रमन् सूर्यः स्वकीयस्य मण्डलस्य कियन्ति भागशतानि गच्छत्येकेन मुहूर्त्तेनेति गौतमस्य प्रश्नस्ततो भगवानाह - 'ता जं जं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तस्स हरस्य शेष) इत्यादि नियम से छेद राशि का छेद करके दो सो इक्कीस का परिवर्तन करने से उपर की भाज्य राशि को गुणकस्थान में रखने से अन्त्य राशि एक से मध्य की राशि का गुणा करे तो भी उसी प्रकार रहता है । तत्पश्चात् ऊपर में रहे हुवे संख्या का सब के नीचे के स्थान में हरस्थान रूप दो सो इक्कीस से वह मध्य की राशि को गुणा करे तो दो करोड बयालीस लाख पैंसठ हजार एवं आठ सो होते हैं । २४२६५८०० | इनको तेरह हजार सात सो पचीस से भाग करने से सत्रह सो अडसठ होते हैं । इतने भागों में जिस किसी मंडल में एक मुहूर्त में चंद्र गमन करता है ऐसा सिद्ध होता है । ७३८ अब सूर्य के मुहूर्तचार के विषय में श्री गौतमस्वामी प्रश्न करते हैं - (ता एगमेगेणं मुहुत्तेणं सूरिए केवतियाई भागसयाई गच्छई) भ्रमण करता हुवा सूर्य अपने मंडल के कितने सौ भागों में एक मुहूर्त में गमन करता है ? इस प्रकार श्री गौतमस्वामी के प्रश्न को सुनकर उत्तर में श्री भगवान् कहते हैंपरिवर्त्य हरस्य शेषः) धत्याहि नियमथी छेदराशिना छेह उरवाथी सोमेश्वीसना परिवर्तन કરવાથી ભાયરાશિને ગુણકે સ્થાનમાં રાખવાથી અંતિમ રાશિ એકથી મધ્યની રાશિના ગુણાકાર કરે તે પણ એજ પ્રમાણે રહે છે. તે પછી ઉપર રહેલી સખ્યાના સૌથી નીચેના સ્થાનમાં હરસ્થાનમાં રહેલ ખસેએકવીસવાળી સખ્યાથી મધ્યની રાશિના ગુણાકાર કરવાથી બે કરોડ ખેતાલીસ લાખ પાંસઠહજાર અને આસા થાય છે. ૨૪૨૬૫૮૦૦) આના તેર હજારસાતસા પચીસથી ભાગ કરવાથી સત્તરસાઅડસઠ થાય છે. આટલા ભાગેામાં મડળમાં એક મુર્તીમાં ચંદ્ર ગમન કરે છે તેમ સિદ્ધ થાય છે. हवे सूर्यना मुहूर्त यार विषयभां श्रीगौतमस्वामी प्रश्न पूछे छे.- ( ता एगमेगेणं मुहुत्त सूरिए केवतियाई भागसयाई गच्छइ) भ्रमण उरतो सूर्य पोताना भजना डेटला સાભાગેામાં એક મુહૂતમાં ગમન કરે છે? આ પ્રમાણે શ્રીગૌતમસ્વામીના પ્રશ્નને સાંભળીને શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર : ૨
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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