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________________ ६४६ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे जात, इति समासवचनात् प्रकृतार्थों विज्ञेयः । एवमेव सर्वत्रापि प्रकृतिप्रत्ययार्थयोः संमृति वशादन्वर्थवाचिका भावना विधेया, ततः 'वेणुयाणुजोये' वेणुकानुजातः, वेणुसदृशो योगो द्वितीयः, वेणुः-वंशस्तदनुजातः-तत्सदृशः, वेणुकानुजातो-वेणुसदृशो योगो द्वितीयाख्यो वेणुकानुजातनामा विज्ञेयः । तत स्तृतीयो योगः खलु मश्च:-मञ्चसदृशः, द्वित्रादि भूमिका भावतोऽतिशायिवस्तु मञ्च इति व्यवहारे प्रसिद्ध एव शब्द स्तेन तृतीयो योगो मञ्चसदृश इति विज्ञेयः । चतुर्थों योगः 'मंचाइमंचे' मञ्चातिमञ्चः-मञ्चमतिशेते यो द्वितीयो मञ्चो द्विव्यादिभूमिका रूपो मञ्चातिमञ्चः कथ्यते, तत्सदृशो योग श्चतुर्थों योगः। 'छत्ते' छत्र-छत्रसदृशो योगः पञ्चमः, वर्षाऽऽतपादिवारणार्थ चक्राकारं वस्तु लोकप्रसिद्ध नाम छत्रं कथ्यते, तत्सदृशो योगः पश्चम इति । ततश्च षष्ठो योगः 'छत्तातिछत्ते' छत्रातिछत्र:-पूर्वोक्तलक्षणरूपात् छत्रात् उपरि अन्य छत्रभावतोऽतिशायि यच्छत्रं तत् छत्रातिसूर्य नक्षत्र जिस योग में रहते हैं वह वृषभानुजात कहा जाता है। इस प्रकार समास वचन से यह सामान्य अर्थ जाने । इसी प्रकार सर्वत्र प्रकृत्ति प्रत्यय की संसृति से योग्य अर्थ की भावना कर लेवें । तदनन्तर (वेणुयाणुजोए) वेणु समान दूसरा योग कहा है । वेणु माने बांसुरी उसके समान जो योग वह वेणुकानुजात नाम का दूसरा योग होता है। तीसरा योग (मंचे) मंच के समान दो या तीन हस्त भूमि भाग से ऊपर रहने वाली वस्तु को मंच कहते हैं । मंच यह व्यवहार में प्रसिद्ध ही है, अतः तीसरा योग का नाम मंच कहा जाता है। चतुर्थ योग (मंचाइमंचे) मंच के ऊपर जो दूसरा मंच हो दो तीन भूमिका रूप वह मंचातिमंच कहा जाता है, उसके समान जो योग वह मंचातिमंच नामका चौथा योग होता है । (छत्ते) छन्त्र के समान जो योग हो, वर्षा या धूप से रक्षण के लिये जो चक्राकार रूप वस्तु होती है जो लोक में छत्र इस प्रसिद्ध नाम से कहते है उसके समान जो योग वह छत्र नामका पांचवां योग कहा है। (छत्ताइछत्ते) पूर्वकथित छत्र के ऊपर જાત વેગ કહેવાય છે. આ પ્રમાણે સમાસના વચનથી આ સામાન્ય અર્થ સમજ એજ प्रमाणे मधे प्रकृतिप्रत्ययन समन्वयथी योग्य अर्थ नी भावना शसेवी. ते पछी (वेणुयाणु जोगे) वोगुनी समान मीन या घो छ. वाशु, ससे पांसजी तनी समान रे योग તે વેણુકાનુજાત નામને બીજે વેગ (૨) મંચની સમાન બે અગર ત્રણ હાથ ભૂમિ ભાગથી ઉપર રહેનાર વસ્તુને મંચ કહે છે. મંચ એ વ્યવહારમાં પ્રસિદ્ધજ છે. તેથી त्री योगनु नाम भय ४९ छ. या या (मंचाइमंच) भयनी ५२ रे मान्ने भय હોય બે ત્રણ ખાના રૂપ તે મંચાતિમંચ કહેવાય છે. તેની સરખો જે વેગ તે મંચાતિમંચ નામને ચોથે વેગ કહેવાય છે. (૪) છત્રના સરખે જે વેગ છે તે વરસાદ કે તડકામાં રક્ષણ માટે જે ગોળાકારરૂપ વસ્તુ હોય છે જેને લેકમાં છત્રએ પ્રમાણે નામ છે શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: 2
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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