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________________ ४५६ सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्रे एत्ति वएज्जा ?'-तावत् कदा खलु एते आदित्य-ऋतु-चान्द्र-नाक्षत्राः संवत्सराः समादयः समपर्यवसिता आख्याता इति वदेत् ॥-तावदिति पूर्ववत् कदा-कस्मिन् समये खलु-इति वाक्यालङ्कारे एते-प्रथमोदिताः स्वस्वपरिभाषाभिः परिभाषिताः, आदित्य-ऋतु-चान्द्रनाक्षत्रा:-तत्तनामधेयाः समादयः-समप्रारम्भाः -युगपत्प्रवृत्ताः समपर्यवसिताः-समपर्यवसाना:-युगपदेव निवृत्ताश्च भवन्तीति आख्याताः-प्रतिपादिताः सन्तीति वदेत्-कथय भगवन्निति गौतमस्य प्रश्नस्ततो भगवानाह-'ता सर्टि एए आइच्चामासा, एगढेि एए उडुमासा, बावडिं एए चंदमासा, सत्तर्हि एए णखत्ता मासा, एए णं अद्धा दुवालसक्खुनकडा दुवालस भयिता, सर्टि एए आइच्चा संवच्छरा, एगर्टि एए उडुसंवच्छरा, बाव िएए चंदा संवच्छरा, सनर्टि एए णक्खत्ता संवच्छरा, तयाणं एए आइच्च-उडु-चंद-णक्खत्ता संवच्छरा समादीया समपज्जवसिया आहिएत्ति वएज्जा' तावत् षष्टिरेते आदित्या मासाः, एकषष्टिरेते ऋतुमासाः, द्वाषष्टिरेते चान्द्रमासाः सप्तषष्टिरेते नाक्षत्रमासाः, एषा खलु अद्धा द्वादशकृता द्वादशभक्ता पष्टिरेते आदित्याः संवत्सराः, एकपष्टिरेते ऋतुसंवत्सराः, द्वापष्टिहैं-(ता कया णं एए आइच्च उडुचंद-णक्खत्ता संवच्छरा समादीया समपज्जवसिया आहिएत्ति वएज्जा) किस समय ये पूर्वोक्त स्वस्व परिभाषा से परि. भाषित आदित्य-ऋतु-चांद्र-नाक्षत्र संवत्सर उस उस नामवाले संवत्सरों के साथ प्रारम्भ अर्थात् एक ही साथ प्रवृत्त तथा एक साथ ही निवृत्त होते हैं, सो हे भगवन् आप कहीए। इसप्रकार श्रीगौतमस्वामी के प्रश्न को सुनकर उत्तर में श्री भगवान कहते हैं-(ता सहि एए आइच्चा मासा, एगर्हि एए उडमासा, बावडिं एए चंदनासा, सत्तहि एए णक्खत्तमासा, एस णं अद्धा दुवालसक्खुत्तकडा दुवालसभाविता, सहि एए आइचा संवच्छरा, एगसर्टि एए उडु संवच्छरा, बावहि एए चंदा संवच्छरा, सत्तर्हि एए णवत्ता संवच्छरा, तया णं एए आइच्च-उडु-चंद-णक्खत्ता संवच्छरा, समादीया समपज्जवसिया आहिएत्ति वएजा) पांच वर्षवाले एक युग में साठ आदित्य मास कया ण एए आहच्च उडु-चंद-गक्खत्ता संवच्छरा समादीया समपज्जवसिया आहिएत्ति वएज्जा) ध्या समये । पूर्व प्रथित स्व २५ परिभाषाथी परिभाषित माहित्य ऋतुन्यांद्रनाक्षत्र સંવત્સર તેતે નામવાળા સંવત્સરોની સાથે પ્રવૃત્ત અને નિવૃત્ત થાય છે? તે હે ભગવાન આપ કહે આ પ્રમાણે શ્રીગૌતમસ્વામીના પ્રશ્નને સાંભળીને ઉત્તરમાં શ્રી ભગવાન हेछ (ता सदि एए आइच्चामासा, एगढेि एए उडुमासा, बावढेि एए चंदमासा, सत्तदि एए णक्खत्ता मासा एस गं अद्धा दुवालसक्खुतकडा दुवालस भाविता, सटिं एए आइच्चा संवच्छरा एगढेि एए उडुसंवच्छरा बावढेि एए चंदा संवच्छरा सत्तर्टि एए णक्खत्ता संवच्छरा तया णं एए आइच्च उडु-चंदणक्खत्ता संवच्छरा समादीया समपज्जनमिया आहिएत्ति वएज्जा) पांय ना ये युगमा स18 साहित्यमास डाय छे. मेस5 શ્રી સુર્યપ્રજ્ઞપ્તિ સૂત્ર: 2
SR No.006352
Book TitleAgam 16 Upang 05 Surya Pragnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1982
Total Pages1111
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_suryapragnapti
File Size77 MB
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